राग दरबारी ' शास्त्रीय संगीत का महत्वपूर्ण राग है। इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि संगीत सम्राट मिंयां तानसेन ने इसे बनाया था। मुग़ल सम्राट अकबर ने इसका नामकरण किया था। दरबार में गाया बजाया जाने वाला राग स्वाभाविक रूप से राग दरबारी ही कहा जायगा। इस राग के माध्यम से गायक वादक विराट या सम्राट की शान में कसीदे काढ़ते है। इस राग को मर्दाना राग भी कहा जाता है क्योंकि अमूमन इसे पुरुष ही साधते है। यह राग सबसे मधुरतम माना जाता है क्योंकि प्रशंसा या स्तुति में प्रयोग होने वाले शब्द प्रायः कोमल होते है। गजलों और सैंकड़ों हिंदी फिल्मों के गीत इसी राग पर आधारित है - ' हम तुम से जुदा होके मर जाएंगे रो रो के ' ( एक सपेरा एक लुटेरा ) ' सुहानी चांदनी राते हमें सोने नहीं देती -( मुक्ति ) ' देखा है पहली बार साजन की आँखों में प्यार -( साजन ) ' पग घुंघरू बाँध मीरा नाची थी -( नमकहलाल ) जैसे कुछ लोकप्रिय गीत है।
1965 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर श्री लाल शुक्ल उतर प्रदेश के कई जिलों में पदस्थ रहे थे। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के रूप में उन्हें ग्रामीण समाज और व्यवस्था में व्याप्त भ्र्ष्टाचार , भाई भतीजावाद , रिश्वत , सत्ता का संघर्ष , जातिवाद जैसी समानांतर व्यवस्था को नजदीक से देखने का मौका मिला। इन अनुभवों के आधार पर उन्होंने दर्जनों कहानियां लिखी और उन्हें एक कड़ी में पिरोकर ' राग दरबारी ' जैसे महान व्यंग्य उपन्यास को आकार दिया। इस बरस 2018 में यह उपन्यास अपने उदभव के पचास वर्ष पूर्ण कर रहा है। किसी भी साहित्यिक रचना का सौ पचास वर्ष की अवधि को पार कर जाना सामान्य बात है। परन्तु ' राग दरबारी ' के लिए यह आधी सदी इसलिए उल्लेखनीय है कि उपन्यास में वर्णित घटनाएं आज भी जस की तस घटित हो रही है। उपन्यास जब लिखा जा रहा था तब वह काल्पनिक नहीं था। वह इक्कीसवी सदी के वर्तमान की भविष्यवाणी थी। इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता है -इसे किसी भी पन्ने से पढ़ना आरम्भ किया जा सकता है। कई साहित्यकार इसे 'आधुनिक महाभारत 'भी कहते है। उपन्यास का कथानक शिवपाल गंज नाम के गाँव में घूमता है। यहां के वासी अपने आपको ' गंजहे ' कहलाने पर गर्व करते है। इस उपन्यास से गुजरते हुए पाठक को महसूस होता कि भारत के हर शहर , हर कसबे में एक शिवपालगंज है।
राग दरबारी का कथानक ताजा ताजा स्वतंत्र हुए भारत की आकांक्षाओं और आदर्श सपनो के साथ चलती विसंगतियों का वर्णन करता है। गिरते नैतिक मूल्य , राजनीति का पतन , संसाधनों की बन्दर बाँट , शोषित और शोषक की रस्साकसी , गबन , घोटाले, शिक्षा , चरित्रहनन ,आदि का चुटीला वर्णन करते हुए रागदरबारी असली भारत दिखाता है। नब्बे के दशक में ' दूरदर्शन ' ने सरकारी नियंत्रण में होने के बाद भी इस उपन्यास को धारावाहिक के रूप में प्रस्तुत किया था। यह बहुत साहस की बात थी। आज किसी भी सरकार से इस तरह के ' दुस्साहस ' की अपेक्षा नहीं की जा सकती। ओमपुरी ने इस धारावाहिक में सूत्रधार ' रंगनाथ ' की भूमिका निभाई थी। अन्य भूमिकाओं में आलोक नाथ , राजेश पूरी , सुधीर दहलवी , मनोहर सिंह एवं जरीना वहाब थे।
राग दरबारी हर काल में सामयिक है। नई कहानियों का रोना रोने वाले फिल्मकारों के लिए इस उपन्यास में असीम संभावनाए है। भारतीय दर्शक पलायनवादी सिनेमा / टेलीविज़न का आदी हो चूका है। विसंगतिया रोजाना घटित हो रही है और दर्शक आज भी सिल्क , शिफॉन और स्विट्ज़रलैंड में खोया हुआ है। दर्शकों को आधुनिक समय की कड़वी हकीकतों से परिचित कराने के लिए ' राग दरबारी ' से बेहतर माध्यम नहीं हो सकता।
@jnrajneesh