Wednesday, March 23, 2016

अकस्मात यूँ ही ...

अचानक ही तो घटता है  जीवन 
और मौत भी 
अचानक ही आती है। 
इन दोनों के बीच 
मै 
भ्रम पाले रहता हु ता उम्र 

कर्ता  होने का ,
जतन  करता हु 
प्रेम करने का  
संतुलन बनाता हु रिश्तों में 
और  जिन्दा रखता हु सपनो को। 
क्योंकि मुझे मालुम है 
वह कभी भी  घट सकती  है  
ठीक वैसे ही 
जैसे  जग जाती है उम्मीद ,
हो जाता है  प्रेम 
और  पसर जाती है  खुशिया 
अचानक। 



Monday, March 21, 2016

सच में मुझे नहीं मालूम

मुझे नहीं मालुम
यह क्या है ?
तुम जो चाहे  नाम दो इसे /
अपलक तुम्हे ताकना
और आँखें बंद कर लेना /
 हवा में तुम्हारी गंध
महसूसना और
गहरी सांस भर लेना /
कागज पर यूँ ही
कुछ लकीरें खींच देना
और उसमे तुम्हारा चेहरा
तलाशना /
सच में मुझे नहीं मालूम
यह क्या है /
  तुम हो तो
ये साल , महीने , दिन
जिंदगी लगते है /
जैसे समंदर के  किनारे
नावों की वजह से
भरोसेमंद लगते है।



 

Friday, March 18, 2016

प्रिय विजय माल्या जी...

प्रिय विजय माल्या जी
               ओ मानस के राजहंस !! लिख रहा हु पत्र तुम्हे समझाने को  कही  तुम ही न आजाना मुझे  समझाने को। 
 किसी भी सेलिब्रिटी को यह मेरा पहला पत्र है। आशा है आप जहां भी होंगे कुशल होंगे। आपके यूँ अकस्मात् चले जाने से कई बातों के मायने बदल गए है। हमारे शहर से भी कई लोग आपकी तरह पैसा लेकर गायब हुए है।  अब तक उन्हें उनके नाम से ही जाना जाता था। परन्तु आपने उन्हें अपना नाम दे दिया।  अब उन्हें आपके नाम से जाना जाता है कि फंला विजय माल्या हो गया। आपको एक न एक दिन जाना ही था। शेयर बाजार की अच्छी समझ रखने  वाले मेरे एक मित्र को अक्सर ताज्जुब होता था कि आखिर ये आदमी पहाड़ जैसा कर्ज लेकर कितने दिन गुलछर्रे उड़ाएगा ? क्योंकि आपकी कंपनियों के शेयर रसातल पर जाए जा रहे थे। उसने भी आपकी एयर लाइन्स के दो हजार शेयर महंगे दाम पर खरीद रखे थे। अब आजकल वह आपके बारे में वे शब्द इस्तेमाल करता है जिन्हे सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पहलाज निहलानी ने प्रतिबंधित कर बीप बीप का उपयोग करने का फरमान जारी किया हुआ है। बुरा मत मानियेगा।
                 कल ही में आपके बारे में ' गूगल ' कर रहा था। आपने देश के लिए कुछ अच्छे काम भी किये है। आप देश की धरोहर विलायत से वापस लाये है। टीपू सुलतान की तलवार और पूज्य बापू का चोरी गया चश्मा आप निलामी में खरीद कर वापस भारत लाये। इस बात के लिए सारा देश आपका अहसानमंद है। आप अगर एक बार बापू के चश्मे से झाँक कर देख लेते तो शायद आपका जीवन बदल गया होता। लोग तो  ' गांधी ' सरनेम लगाने से तर गए है। खैर  छोड़िये !! जो हो न सका उसका क्या रंज।
                                भारत सरकार आपको मुस्तैदी से खोज रही है।  ठीक वैसे ही जैसे एक समय ललित मोदी को खोज रही थी। मुझे उम्मीद है आप कभी पकडे नहीं जायेंगे क्योंकि जो लोग अपने को ' देश का चौकीदार ' कहकर सत्ता में आये थे , अब उनकी प्राथमिकताए बदल गई है। लोग आपके बारे में अभी भी बाते कर रहे है। करने दीजिये। इस अवाम के पास भरपूर वक्त है गप्पे मारने का। विषय भी इतने है कि कोई बोर नहीं होता।  राजनीती , फिल्म , पाकिस्तान , क्रिकेट , असहिषुणता , देशभक्ति , भारत माता , सनी लियोनी , आदि इत्यादि।
                                       अब आप बगैर ' नाथ मोरे ' के हो गए है। लिहाजा अपने स्वास्थ का ध्यान रखिये।  हमारे पैसे को जिसे आप अपना समझ कर ले गए है , दबा छुपा कर खर्च कीजिये।  चौबीस घंटे चलने वाले समाचार चैनल इस तरह की शान शौकत पर बहुत हाय तौबा मचाते है।
                                  इस पत्र का जवाब देना जरुरी नहीं है।  रेखा भाभी को नमस्ते कहिये।
                                                                                                                             आपका
                                                                                                                        रजनीश जैन

                      

Tuesday, March 15, 2016

Lost Movie :समय में गुम होती फिल्मे

आज से ठीक 85 वर्ष पूर्व ( 14 मार्च 1931 ) भारत की पहली बोलती फिल्म '' आलम आरा '' बॉम्बे के मैजेस्टिक सिनेमा में रिलीज़ हुई थी।  इसमें सात गाने थे और डायलॉग भी उम्दा थे। दुनिया की पहली ' सवाक ' फिल्म  '' ''  '' जैज़ सिंगर '' ( 1927  अमेरिका  ) के ठीक चार साल बाद भारत दूसरा देश बना था जो ' साइलेंट ' फिल्मो के दौर से बाहर आया था। आज पीछे मुड़ के देखते है तो पाते है कि ' आलम आरा ' का सिर्फ पोस्टर नेशनल आर्काइव ( national archive pune ) पुणे में संरक्षित ( preserve ) है। इस फिल्म का प्रिंट कब नष्ट हो गया किसी को नहीं मालुम !!
                      ऐसा नहीं है कि साइलेंट फिल्मो के प्रिंट सुरक्षित नहीं रखे गए। वह दौर ऐसा था जब संभवतः उस समय के निर्माताओ में पचास/ सौ साल आगे की सोच विकसित नहीं हुई होगी।  यधपि अमेरिका में 1960 के दशक से ही इन फिल्मों के संरक्षण का काम आरम्भ हो गया था। इसकी बड़ी वजह वे आंकड़े थे जिन्होंने अमेरिकी समाज के जागरूक तबके को जैसे नींद से  जगा  दिया था। अमेरिका में 1929 के पूर्व बनी 90 प्रतिशत फिल्मों के प्रिंट साल संभाल में लापरवाही के चलते नष्ट हो गए थे। इस दौर में फिल्मों के प्रिंट cellulose nitrate से बनाये जाते थे जो अत्यंत ज्वलनशील था और जिस पर गर्म जलवायु का जल्दी असर होता  था जिसकी वजह से  प्रिंट जल्द ख़राब जाते थे।
                              भारत में इन फिल्मों को  सहेजने का प्रयास 1980 के आसपास हुआ जब अमेरिका में यह बात एक आंदोलन का रूप ले चुकी थी।  साइलेंट युग की 1700 फिल्मों में से  मात्र  6 फिल्मे हमारे नेशनल आर्काइव में मौजूद है।जबकि हॉलीवुड 27000 से ज्यादा क्लासिक और लुप्तप्राय फिल्मों को अगली पीढ़ी के लिए सहेज चूका है।
 हमारी ऐतिहासिक धरोहर लगभग शुन्य हो चुकी है। अब अमिताभ बच्चन ने इस मुहीम से खुद को जोड़कर संरक्षण के प्रयासों को रफ़्तार प्रदान की है।


Saturday, March 5, 2016

Awards to A Forgotten man :ढलान पर खड़े आदमी को पुरूस्कार

बरसों पहले सेवानिवृत हो चुके भारत कुमार उर्फ़ मनोज कुमार अंततः सिनेमा के शीर्ष सम्मान दादा साहेब फालके ' अवार्ड से नवाजे गए। यह हमारे सिस्टम की विडम्बंना है या हमारा राष्ट्रीय चरित्र जो हमें समय पर निर्णय नहीं लेने देता  ? हम एक ऊर्जावान कलाकार को तब सम्मानित करते है जब कुछ नया कर गुजरने की उसकी उम्र  गुजर चुकी होती है।
                                राजकपूर को  यह अवार्ड उन हालातों में मिला जब उनकी चेतना लुप्त हो रही थी। वे महसूस ही नहीं कर पाये की इस शीर्ष पुरूस्कार का अहसास कैसा होता है। दिलीप कुमार की स्मृतियाँ लोप हो गई और वे स्लेट की तरह साफ़ हो गए तब जाकर वे इस सम्मान के योग्य हो पाये। यही हादसा शशिकपुर के साथ हुआ। ये लोग शारीरिक तौर पर इतने अक्षम हो चुके है कि अपने हाथ से एक घूंट पानी भी नहीं पी सकते। कल्पना कीजिये कि  अपने करियर के शिखर पर अगर इनकी सुध ली जाती तो उसकी ऊर्जा इन्हे और कितना सर्वश्रेष्ठ देने को प्रेरित करती ? गौर तलब है की अभिनेता सिर्फ लाइमलाइट और दर्शकों की तालियों से   ऊर्जा ग्रहण करते है।  एक समय बाद पैसा और वैभव उनके लिए गौण हो जाते है।
                                  एक समय बाद नेशनल अवार्ड और फाल्के अवार्ड शायद मनोज कुमार की याद नहीं दिला पाये परन्तु देश भक्ति पर आधारित उनकी फिल्मो के गीत उन्हें ताउम्र अमर रखेंगे।  हमारा स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र उनके जोशीले गीतों के  बगैर  अधूरा है।
 एक फिल्मकार के लिए इससे बड़ा अवार्ड और क्या हो सकता है भला !!

                                   

Thursday, March 3, 2016

An Iconic Bungalow : एक याद का यूँ मिट जाना

 कहने को हमारी सभ्यता पांच हजार साल पुरानी है परन्तु अतीत के कई स्मृति चिन्हों को हम सहेज नहीं पाये , यह सिद्ध हो चूका है। हमारी लापरवाही का आलम यह है कि महज चार सौ बरस पहले बना ताजमहल अपना दूधिया रंग छोड़ पीला होने लगा है। दो हजार साल पुरानी सम्राट अशोक की शिला अगर जंग रहित है तो यह उस समय की दूरंदेशी का परिणाम है , इसमें हमारा कोई योगदान नहीं है।
                         प्रसिद्ध लोगो से जुडी वस्तुओ और स्मारकों को संरक्षित करना अगर सीखना हो तो हमें बगैर शर्म किये पश्चिम की और  देखना चाहिए।  अमेरिका में म्यूजियम कल्चर किस कदर आम जीवन में पैठ बना चुकी है उसका अंदाजा sothby या christi जैसी बड़ी नीलाम संस्थाओ में जुटने वाली भीड़ से लगाया जा सकता है।  किसी फिल्म स्टार के नेपकिन या पुरानी कार के लिए लोग लाखों डॉलर खर्च देते है। यही इकलौता देश है जहां सरकारी संग्रहालयों से ज्यादा व्यक्तिगत संग्रहालय है। मास्को में एक रेलवे प्लेटफार्म की घडी की सुइयां  आज भी उस समय पर रुकी हुई जिस   समय महान लेखक लियो टॉलस्टॉय का निधन हुआ था। जर्मनी ने हिटलर के नरसंहार  दौर की एक एक कील को भी संभाल रखा है।
हम न तो बापू का   चश्मा संभाल पाये  न ही टीपू सुलतान की चीजे।  इस लेख का सिर्फ   उद्देश्य यह  बताना है कि भारत अपने  पहले सुपर स्टार की धरोहर को भी नहीं सहेज पाया है। सत्तर के दशक ने राजेश खन्ना को लोकप्रियता की उस मुकाम पर देखा था जो बिरलो को ही नसीब हुई है। उनका बंगला '' आशीर्वाद '' उन्ही की तरह प्रसिद्ध  था। राजेश खन्ना स्वयं चाहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद उसे संग्राहलय बना दिया जाए।  अफ़सोस यह हो न सका।  इस बंगले के नए मालिक ने इसे ध्वस्त कर बहुमंजिला बिल्डिंग बनाने का निर्णय लिया है।
राजेश खन्ना की तरह उनका बंगला भी अब  सिने प्रेमियों की यादों में शुमार रहेगा !!

दिस इस नॉट अ पोलिटिकल पोस्ट

शेयर बाजार की उथल पुथल में सबसे ज्यादा नुकसान अपने  मुकेश सेठ को हुआ है। अरबपतियों की फेहरिस्त में अब वे इक्कीसवे नंबर पर चले गए है। यद्ध...