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Tuesday, September 11, 2018

ना उम्र की सीमा हो ना हो जन्म का बंधन !


पिछले बरस जब फ्रांस ने अपने नए राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रॉन  को चुना तो वे अलग ही कारण से ख़बरों की सुर्ख़ियों में छा गए थे।  वजह - उनकी पत्नी ब्रिगेट चौंसठ वर्ष की थी और वे महज उनचालीस के ही थे । हमारी आदत हो गई है पति की उम्र पत्नी से ज्यादा देखने की। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और मलेनिआ ट्रम्प में 24 वर्ष का अंतर है। पत्नी से कही अधिक उम्र का पति अमूमन सारी दुनिया में कुछ किन्तु परंतु के सहारे सामाजिक रूप से स्वीकार्य है। परन्तु इसका उल्टा होना थोड़ा चौका देता है। पिछले हफ्ते पूर्व मिस वर्ल्ड और बॉलिवुड की शीर्ष अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने अपने से ग्यारह वर्ष छोटे अमेरिकी गायक निक जोंस से सगाई की तो किसी ने उनकी उम्र के अंतर को लेकर  विशेष  टिका टिप्पणी नहीं की परंतु आश्चर्य जरूर व्यक्त किया । भारतीय समाज भी अब  इस तरह के विवाह में उम्र के अंतर को थोड़े संशय के साथ   स्वीकारने लगा है। पारम्परिक विवाह से उलट , जिसमे लड़के की उम्र हमेशा लड़की से ज्यादा रहती आयी थी , अब बड़ी उम्र की लड़कियां युवा लड़कों से ब्याही जाने लगी है।  खासकर फिल्मों और सेलिब्रिटी के विवाहों में यह चलन आम होने लगा है । उम्र के इस असंतुलन पर बनी फिल्मों का सिलसिला सत्तर के दशक से हिन्दी फिल्मों में आरंभ हुआ है । 1977 में आयी फिल्म ' दूसरा आदमी ' में परिपक्व  राखी और युवा ऋषि कपूर संभवतः पहले नायक नायिका थे जिन्होंने फिल्मों में इस परंपरा की शुरुआत की थी। उस दौर में इस तरह की कास्ट अपवाद थी परन्तु अब दृश्य पूरी तरह बदल गया है। आमजन की मानसिकता बदलने में निश्चित रूप से सिनेमा की कहानियों और उन्हें निभाने वाले नायक नायिकाओ ने विशेष भूमिका अदा की है। शाहरुख़ खान ने अपने कैरियर की शुरुआत में अधिक उम्र की नायिका दीपा साही के साथ  ' माया मेमसाब ' (1993) और श्री देवी के साथ  ' आर्मी ' ( 1996 ) की थी।  2001 में फरहान अख्तर ने अपने निर्देशन में ' दिल चाहता है ' के रूप में आधुनिक भारत के युवाओ की जीवन शैली और प्रेम को लेकर उनकी पसंद को फोकस किया था। फिल्म के तीन नायकों में से एक का झुकाव परिपक्व महिला  की तरफ होता है। आमिर और प्रीति जिंटा की प्रेम कहानी के बावजूद अक्षय खन्ना और डिंपल कपाड़िया का शालीन प्रेम ' दिल चाहता है '  को एक पायदान ऊपर ले जाता है। डिम्पल कपाड़िया ने युवा नायक से प्रेम की ऐसी ही भूमिका ‘लीला’ में भी निभाई थी, जबकि ‘लीला’ में उनकी सहअभिनेत्री दीप्ति नवल ने ‘फ्रीकी चक्र’ नामक फ़िल्म में अपने से कई साल छोटे युवा नायक के साथ प्रेम करने वाली महिला का चरित्र निभाया था।
 अयान मुकर्जी के निर्देशन में बनी ' वेक अप सिड ' ( 2009 ) में नायक नायिका ( रणवीर कपूर , कोंकणा सेन ) की  उम्र का अंतर प्रेम में आड़े नहीं आता। जगजीत सिंह ने अपने  कालजयी गीत  ' ना उम्र की सीमा हो न जन्म का बंधन , जब प्यार करे कोई तो केवल देखे मन '  से जंग लगी रवायतों को सिरे से नकारते हुए  फिल्मकारों और समाज को अपने दायरे से बाहर झाँकने को प्रेरित किया था ।  भारत के पहले शो मेन राजकपूर ने अपनी क्लासिक ' मेरा नाम जोकर ' में  एक किशोर लड़के के मन मे अपनी टीचर को लेकर चल रही आसक्ति के अंतर्द्वंद्व को खूबसूरती के साथ उकेरा था । बाद में इसी विचार को विस्तार देकर उन्होंने ' बॉबी ' (1972) बनाई । एक किशोर के  किसी युवती के प्रति आसक्त हो जाने को सनसनी बनाकर परोसने का प्रयास निर्देशक के शशिलाल नायर ने ' एक छोटी सी लव स्टोरी (2002) बनाकर किया । फिल्म का स्क्रीन प्ले पंकज कपूर ने लिखा था और नायिका थी मनीषा कोइराला। अच्छे सब्जेक्ट को गलत तरीके से हैंडल किया जाय तो फिल्म का कैसे  कबाड़ा हो सकता है, एक छोटी सी लव स्टोरी इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थी।
हॉलिवुड से चला यह चलन अब बॉलीवुड में भी सामान्य मान लिया गया है । गंभीर और लोकप्रिय पत्रिका ' सायकोलोजी टुडे ' के आंकड़े इस तथ्य की पुष्टि करते है । इस पत्रिका के अनुसार 1964 से 2015 तक इस तरह के विवाह में चोसठ फीसदी की बढ़ोतरी हुई है । दूल्हा वही जो दुल्हन मन भाये जैसी शादियों के उदाहरण फिल्मों से लेकर खेल और कॉरपोरेट  जगत  तक बहुतायत से मौजूद हैं । शकीरा , एलिजाबेथ टेलर , टीना टर्नर , डेमी मुर , पेगी कोलिन से लेकर हमारी ऐश्वर्या राय ,  प्रिटी जिंटा, उर्मिला मातोंडकर , फरहा खान , शिल्पा शेट्टी , अधाना अख्तर , अंजलि तेंदुलकर  , बिपाशा बसु - जैसे नाम समुद्र में तैरते हिमखंड के ऊपरी भाग की तरह है । कुल मिलाकर
रिश्तो की अहमियत तभी तक है जबतक वे अच्छे बंधन में बंधे रहे  , और अच्छे संबंधों में उम्र का अंतर कोई फर्क पैदा नही करता । अगर आप बालिग है , एक दूसरे से प्रेम करते है , जीवन के बहाव में कम्फ़र्टेबल है तो उम्र एक संख्या से ज्यादा मायने नही रखती ।     

उपरोक्त लेख भास्कर समूह की मासिक पत्रिका ' अहा जिंदगी ' के सितम्बर अंक में प्रकाशित हुआ है।                

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