ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ कुछ भले लोग भी भारत आये थे। उन्ही में से एक थे ' जॉन लॉकवूड किपलिंग ' -महान लेखक रुडयार्ड किपलिंग के पिता। बॉम्बे के जे जे स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के परिसर में जन्मे रुडयार्ड किपलिंग ने यायावरी जीवन जिया। उन्होंने भारत में पत्रकारिता करते हुए एक दशक बिताया था । इस अवधि में उन्होंने एक अफवाह सुनी ' मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में एक बालक को भेड़ियों के झुण्ड ने पाला पोसा ' किपलिंग ने पहली नजर में इस खबर को सिरे से ख़ारिज कर दिया। उनके नजरिये से ऐसा होना संभव नहीं था।
भारत के मोगली का जन्म यूँ अमेरिका में हुआ - जंगल बुक नाम से।
मनुष्य का मस्तिष्क मिटटी से भी ज्यादा उर्वर है। अवचेतन में दबा कोई विचार कब विस्तार ले लेता है कहा नहीं जा सकता। वर्षों बाद जब किपलिंग अमरीका में निवास कर रहे थे (1893-94 ) तब उनकी कल्पना ने उस कपोल खबर को आकर देना
आरम्भ किया। इस समय तक किपलिंग स्थापित लेखक हो चुके थे और ब्रिटिश लिटरेचर को समृद्ध कर रहे थे। खबर भारत की थी परन्तु कहानियों में वह सात समंदर पार वर्मांट डलास में रूप लेने लगी थी।
' जंगल बुक ' सर्वकालिक लोकप्रिय बाल साहित्य में शीर्ष पर है। इसकी कहानियों के सभी पात्र जंगली जानवर है जिनमे मानवीय अच्छाइयाँ और बुराइयां दोनों मौजूद है। जंगल बुक कोई एक कहानी नहीं है वरन दर्जनों कहानियों को एक दूसरे से गूँथ कर बनाया गुलदस्ता है। बच्चों को नेतिक शिक्षा से परिचय कराने के लिए इससे बेहतर संग्रह नहीं है। इन कहानियों के बारे में यह भी कहा जाता है कि किपलिंग ने इन्हे अपनी 6 वर्षीय बेटी 'जोस्फी ' के लिए लिखा था।
'जंगल बुक 'को हॉलीवुड ने भी डटकर भुनाया। 20 सदी की शुरुआत में सिनेमा ने जन्म लिया और उसकी किशोर अवस्था में ही रुडयार्ड किपलिंग की कहानियों का फिल्मीकरण आरम्भ हो गया था।
जंगल बुक की ही वजह से पहले भारतीय अभिनेता को हॉलीवुड ने सर आँखों पर बैठाया था , ये थे केरल में जन्मे ' साबू दस्तगीर ' . एक डॉक्युमेंट्री फिल्म निर्माता अपनी फिल्म the elephant boy के लिए ऐसे लड़के की तलाश में थे जो फिल्म में कुशल महावत का रोल कर सके। साबू को देखते ही उन्हें लगा कि यह वही है जिसकी उन्हें तलाश थी। पहली ही फिल्म ने साबू को सितारा हैसियत दी और जंगल बुक पर आधारित अगली कई फिल्मों में उनकी व्यस्क ' मोगली ' की छवि इस कदर लोकप्रिय हुई कि साबू को अमरीकी नागरिकता मिल गई।
आज 75 साल बाद भी हॉलीवुड उन्हें उसी रूप में याद करता है। साबू की स्मृति को चिर स्थायी बनाने के लिए लॉस एंजेलस में बने ' वाक ऑफ़ फेम ' में एक सितारा साबू के नाम पर भी लगाया गया है।
भारत के मोगली का जन्म यूँ अमेरिका में हुआ - जंगल बुक नाम से।
मनुष्य का मस्तिष्क मिटटी से भी ज्यादा उर्वर है। अवचेतन में दबा कोई विचार कब विस्तार ले लेता है कहा नहीं जा सकता। वर्षों बाद जब किपलिंग अमरीका में निवास कर रहे थे (1893-94 ) तब उनकी कल्पना ने उस कपोल खबर को आकर देना
आरम्भ किया। इस समय तक किपलिंग स्थापित लेखक हो चुके थे और ब्रिटिश लिटरेचर को समृद्ध कर रहे थे। खबर भारत की थी परन्तु कहानियों में वह सात समंदर पार वर्मांट डलास में रूप लेने लगी थी।
' जंगल बुक ' सर्वकालिक लोकप्रिय बाल साहित्य में शीर्ष पर है। इसकी कहानियों के सभी पात्र जंगली जानवर है जिनमे मानवीय अच्छाइयाँ और बुराइयां दोनों मौजूद है। जंगल बुक कोई एक कहानी नहीं है वरन दर्जनों कहानियों को एक दूसरे से गूँथ कर बनाया गुलदस्ता है। बच्चों को नेतिक शिक्षा से परिचय कराने के लिए इससे बेहतर संग्रह नहीं है। इन कहानियों के बारे में यह भी कहा जाता है कि किपलिंग ने इन्हे अपनी 6 वर्षीय बेटी 'जोस्फी ' के लिए लिखा था।
'जंगल बुक 'को हॉलीवुड ने भी डटकर भुनाया। 20 सदी की शुरुआत में सिनेमा ने जन्म लिया और उसकी किशोर अवस्था में ही रुडयार्ड किपलिंग की कहानियों का फिल्मीकरण आरम्भ हो गया था।
जंगल बुक की ही वजह से पहले भारतीय अभिनेता को हॉलीवुड ने सर आँखों पर बैठाया था , ये थे केरल में जन्मे ' साबू दस्तगीर ' . एक डॉक्युमेंट्री फिल्म निर्माता अपनी फिल्म the elephant boy के लिए ऐसे लड़के की तलाश में थे जो फिल्म में कुशल महावत का रोल कर सके। साबू को देखते ही उन्हें लगा कि यह वही है जिसकी उन्हें तलाश थी। पहली ही फिल्म ने साबू को सितारा हैसियत दी और जंगल बुक पर आधारित अगली कई फिल्मों में उनकी व्यस्क ' मोगली ' की छवि इस कदर लोकप्रिय हुई कि साबू को अमरीकी नागरिकता मिल गई।
आज 75 साल बाद भी हॉलीवुड उन्हें उसी रूप में याद करता है। साबू की स्मृति को चिर स्थायी बनाने के लिए लॉस एंजेलस में बने ' वाक ऑफ़ फेम ' में एक सितारा साबू के नाम पर भी लगाया गया है।