अमिताभ बच्चन ने अपने जीवन में बहुत उतार चढ़ाव देखे है। वे दिवालिया होने की कगार से वापस लोटे है। एक समय शिखर पर होने के बाद उन्होंने बेरोजगारी भी झेली है। राजनीति को केंद्र में रखकर बनी फिल्म ' इंकलाब ' के लिए उन्होंने प्रतिदिन एक लाख रूपये की फीस पर काम किया है जो उस दौर (1984 ) में बड़ी खबर थी। ' सत्ते पे सत्ता ' फिल्म के लिए राज सिप्पी ने उन्हें फीस न देकर एक बँगला भेंट किया था जिसे हम आज ' प्रतीक्षा ' के नाम से जानते है। उन पर बोफोर्स तोप दलाली का आरोप भी लगा था जिसे उन्होंने लम्बी कानूनी लड़ाई से धोया। बचपन से ही वे सत्ता के निकट रहे है। श्रीमती इंदिरा गांधी से लेकर लगभग सभी प्रधान मंत्रियों से उनके नजदीकी संबंध रहे है। चाहे थोड़े समय के लिए प्रधान मंत्री बने इंद्र कुमार गुजराल हो या देवेगौड़ा। सिर्फ विश्वनाथ प्रताप सिंह से उनकी कभी नहीं बनी। वे मृत्यु के निकट जाकर भी लोटे है।
अपनी फिल्मों से अमिताभ ने ' एंग्री यंग मेन ' का नाम कमाया था और अपनी जिजीविषा से ' महानायक ' का। अब बरसों बाद उन्हें गुस्से में देखा जा रहा है। इस बार उनका गुस्सा स्क्रीन पर नहीं वास्तविक जिंदगी में फूटा है। सदी के महानायक इसबार ' कॉपीराइट एक्ट 1957 ' की कुछ शर्तों से नाराज है। इस अधिनियम के अनुसार किसी भी लेखक या रचनाकार की मृत्यु के 60 वर्ष बाद उसकी किसी भी कृति पर उस लेखक या उसके वारिस का व्यक्तिगत अधिकार नहीं रह जाता। कॉपीराइट की शर्ते अलग अलग देशों में अलग अलग है। ब्रिटेन में यह अवधि 70 साल की है तो यूरोपियन देशों में 95 साल की व् अमेरिका में सौ वर्षों की। अमिताभ के पिता डॉ हरिवंशराय बच्चन की समस्त कृतियों ( मधुशाला सहित ) शेक्सपीअर के नाटकों का हिंदी अनुवाद के कॉपीराइट इस समय महानायक के पास है। भारतीय कॉपीराइट अधिनियम के अनुसार अमिताभ को इन रचनाओं पर से अपना अधिकार छोड़ना होगा। डॉ बच्चन की अधिकाँश रचनाए भारत के अलावा अन्य विदेशी भाषाओ में अनुदित होकर बड़ी मात्रा में रॉयल्टी कमाती है। अमिताभ के नजरिये से इस महान साहित्यिक विरासत को गंवा देना भावनात्मक नुक्सान ज्यादा है।
यहाँ एक प्रसंग का उल्लेख करना जरुरी है जो दर्शाता है कि अमिताभ अपनी विरासत को लेकर कितने संवेदनशील है। 2012 में ' गूगल ' की टीम ने अमिताभ से मुलाक़ात कर डॉ बच्चन की समस्त रचनाओं को ' पब्लिक डोमेन ' पर डालने की इजाजत मांगी थी परन्तु उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। अमिताभ अपने पिता की धरोहर के नैसर्गिक वारिस है। उनका उग्र हो जाना स्वाभाविक भी है। परन्तु आज जिस मुकाम पर वे खड़े है वहां उनसे विशाल उदार व्यक्तित्व की अपेक्षा की जाती है। महानायक को विलियम शेक्सपीअर , फ्रेंज काफ्का , सर आर्थर कॉनन डायल , ओ हेनरी , एच् जी वेल्स ,जैसे उदाहरणों पर गौर करना चाहिए जिनका साहित्य ' प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग '( gutenberg.org ) जैसे पब्लिक डोमेन पर सारी दुनिया को मुफ्त में सहज उपलब्ध है। अगर डॉ बच्चन इस कतार में शामिल होते है तो यह हरेक भारतीय के लिए गर्व की बात होगी।
महानायक उम्र के इस पड़ाव पर भी सक्रिय है और भरपूर कमा रहे है। अगर वे रॉयल्टी के मोह को त्याग देते है तो उनके ' डाई हार्ड ' प्रशंसकों में उनका कद और बड़ा हो जाएगा। इस दिशा में उनका पहल करना एक मिसाल बन सकता है। परदे पर सर्वहारा की लड़ाई लड़ने वाले अमिताभ को ' स्वार्थी ' बनते देखना कोई पसंद नहीं करेगा।
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