हिंदी भाषी दर्शको के लिए कमल हासन का नाम अब नया नहीं रहा। परन्तु ठीक सेंतीस साल पहले (1981) जब ' एक दूजे के लिए ' रिलीज़ हुई थी तब स्टाइलिश मूंछ और मासूम से चेहरे वाले इस अभिनेता ने हिंदी दर्शकों को दिवाना बना दिया था। भाषाई दिवार और सीमित संचार माध्यम की वजह से बहुत काम लोग जानते थे कि हिंदी फिल्मों में अपनी पारी आरम्भ करने वाला यह नैसर्गिक अभिनेता इस हिंदी फिल्म के साथ अपने फ़िल्मी सफर की सौवी फिल्म कर रहा है। एक दूजे के लिए ' कमल की ही 1978 में बनी तेलुगु फिल्म का रीमेक थी। चार वर्ष की उम्र से कैमरे का सामना कर रहे कमल हसन ( कुछ लोग हासन भी लिखते है ) बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। उनके नाम के साथ एक्टर , डायरेक्टर , प्रोडूसर , गीतकार , स्क्रीन राइटर , आसानी से चस्पा किया जा सकता है। तीन नेशनल अवार्ड और उन्नीस फिल्मफेयर अवार्ड उनके नाम के साथ लगे विशेषणों को सार्थक करते है। करन थापर के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने नाम में जुड़े हासन शब्द की व्याख्या करते हुए बताया था कि यह मुस्लिम नाम नहीं है। हासन संस्कृत के हास्य से बना है। उनके नाम का मतलब होता है ' मुस्कुराता कमल .
भारत में ' सिनेमाई संस्कृति ' के अभाव के चलते गैर हिंदी भाषी अच्छी फिल्मों को भी राष्ट्रीय स्तर पर दर्शक तब तक नहीं मिलते जब तक कि वे फिल्मे किसी बड़े पुरूस्कार के लिए नॉमिनेट नहीं हो जाती। कमल की अधिकांश बेहतरीन तमिल , तेलुगु फिल्मे हिंदी दर्शको की पहुँच से बाहर रही है। उनकी दर्जन भर हिंदी या हिंदी में डब हुई फिल्मे ' टिप ऑफ़ द आइसबर्ग ' कही जा सकती है। चरित्र में अंदर तक उतर जाने के जुनून ने कमल को आलोचना का भी सामना कराया है। ' अप्पू राजा ' के बोने पात्र द्वारा हिंसा या ' हिन्दुस्तानी ' के बुजुर्ग द्वारा भृष्ट सरकारी मुलाजिमों की ह्त्या के प्रसंग को समीक्षकों ने तीखे स्वर में नकारा।
फ्रांस के सर्वोच्य सम्मान ' द नाईट ऑफ़ द आर्डर ऑफ़ आर्ट्स एंड लेटर्स ' से सम्मानित दक्षिण के इस सुपर स्टार को विविध भूमिकाओं को करने के साहस के लिए भी आलोचकों के तंज झेलने पड़े है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे एक्टिंग कम और स्वांग ज्यादा करते है। समीक्षक उनकी खूबियों में आँखों और चेहरे को उनकी सबसे बड़ी ताकत मानते है। ' सदमा ' (1983 ) के एक दृश्य में जब नायिका उन्हें अपने साथ हुए दुराचार के बारे में बताती तब कमल अपनी बेबसी और गुस्सा सिर्फ आँखों से ही व्यक्त कर देते है। ' सागर (1986 ) में अमीर दोस्त के लिए अपने प्यार का त्याग करते हुए आप उन्हेंसदैव याद रख सकते है। । 1987 में आई उनकी ब्लैक कॉमेडी ' पुष्पक ' को भला कौन भूल सकता है। होने को यह फिल्म दक्षिण भारत से थी परन्तु दुनिया की सभी भाषा में इसे समझा जा सकता था। यह साइलेंट फिल्म थी। इस तरह की फिल्म करने का साहस सिर्फ कमल हसन ही कर सकते थे। फिल्म में डायलॉग न हो तो चेहरे और आँखों से ही बात को आगे बढ़ाया जा सकता है। सर्वश्रेष्ठ में विश्वास करने वाला यह एक्टर अपनी भूमिकाओं को लेकर काफी संवेदनशील रहा है। अपनी भूमिकाओं से दर्शकों को किसी और भारतीय एक्टर ने इतना नहीं चौकाया जितना कमल हसन ने चौकाया है। हॉलीवुड फिल्म ' मिसेज डॉउट फायर ' के भारतीय संस्करण ' चाची 420 ' में महिला का किरदार जिस सुंदरता और शालीनता से उन्होंने निभाया है वह बेमिसाल है। जहाँ डबल और ट्रिपल रोल किसी एक्टर के लिए मील के पत्थर होते है वहां कमल ने ' दशावतरम ' में दस भूमिकाओं में खुद को उतार कर अन्य अभिनेताओं के लिए असंभव चुनौती की लकीर खींच दी है। यही नहीं उनके द्वारा किये गए कई डबल रोल भी किसी अन्य एक्टर के लिए खासे चुनौतीपूर्ण रहे है। अपने समकालीन अभिनेताओं के लिए कमल ने ऐसे मानक स्थापित कर दिए है जिन्हे छूना मात्र ही उल्लेखनीय हो जाता है।
नित नयी भूमिकाओं में खुद को उतार देने वाले कमल प्रेम के मामले में थोड़े बदकिस्मत रहे। वे एक नारी से कभी प्रेम नहीं कर पाये। उन्होंने तीन विवाह किये और तीनों की परिणीति तलाक के रूप में हुई। वाणी गणपति , सारिका , और गौतमी इस गतिमान एक्टर के जीवन में ठहर न सकी। हाल ही में कमल नयी भूमिका में सामने आये है। वैसे फिल्मों से इतर सामाजिक रूप से सक्रियता के संकेत उन्होंने ट्वीटर पर अपनी मुखरता से महसूस कराना काफी पहले आरम्भ कर दिए थे। दक्षिण के सितारों के फैन क्लब सिर्फ आभासी दुनिया में सक्रीय नहीं होते वे वास्तविकता में भी अपनी उपस्तिथि दर्ज कराते है। कमल हसन दक्षिण के पहले सितारे है जिन्होंने अपने फैन क्लब को सामाजिक कल्याण के कामों से जुड़ने को प्रेरित किया है। कमल समाज को शायद कुछ वापस लौटाना चाहते है , इसीलिए उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी ' मक्कल निधि मायम ' की शुरुआत की है।सामजिक न्याय के इकलौते अजेंडे से आरम्भ होने वाली कमल हसन की पार्टी ने मौजूदा राजनीतिक परिद्रश्य में फ़िलहाल तो हलचल मचा दी है। मेहनत से तराशी गई फिल्म की स्क्रिप्ट और अनसोची घटनाओ और पल पल बदलती परिस्तिथियों से लबरेज राजनीतिक राह में जमीन आसमान का फर्क होता है। दक्षिण भारत की आबो हवा अब तक तो राजनेता बन रहे फ़िल्मी सितारों को सूट करती रही है। कमल अपनी इस नई भूमिका को कितना प्रभावशाली बनाते है देखना दिलचस्प होगा।
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