
1931 में मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गाँव में जन्मे और गाडरवाड़ा में आकार लेने वाले इस व्यक्तित्व ने दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। शानदार वक्ता , दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रजनीश , फिर आचार्य रजनीश , फिर भगवान् रजनीश और अंत में ओशो। रजनीश ने हरेक धर्म के हर पहलु की सरल व्याख्या की , हिन्दू धर्म की कट्टरता के विरोधी रहे , हर मौजूद धर्म में कमिया गिनाई , धार्मिक पाखण्ड का मजाक उड़ाया , ध्यान और अध्यात्म को प्रोडक्ट की तरह बांटा , सर्वहारा और बहुसंख्यक वर्ग को कभी उपलब्ध नहीं हुए। उनके अनुयायी हमेशा उच्च वर्ग के भारतीय और भोतिक जीवन से ऊबे हुए संभ्रांत विदेशी रहे। उनके शिष्यों में प्रमुख नाम बॉलीवुड के महेश भट्ट , परवीन बॉबी , विनोद खन्ना अध्यात्म के ब्रांड एम्बेसडरकी तरह थे । सम्भोग से समाधि उनकी दार्शनिक विचारधारा का शुरूआती पहलु था। भारत के पुणे से लेकर अमेरिका के ऑरेगोन को ' रजनीशपुरम ' में बदल देने तक , एक सौ रॉल्स रॉयस के लवाजमे को साथ लेकर चलने वाले , तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन को चेलेंज कर दने की घटनाओ के बीच अपनी ही सचिव माँ आनंद शीला द्वारा करोडो डॉलर की हेराफेरी और अमेरिका से निष्काषित इस धर्म गुरु को इक्कीस से ज्यादा देशों ने राजनीतिक शरण देने से इंकार किया। अंततः भारत वापसी , वही पुणे आश्रम फिर फैलने फूलने लगा , आश्रम के फ़ूड कोर्ट का मेनू कार्ड गिनीस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल वजह एक सो पचास देशों का भोजन उपलब्ध कराना था । राजनेताओ से सीधा पंगा लेना रजनीश की फितरत में था। जनता सरकार के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई हमेशा उनके टारगेट पर रहा करते थे। रजनीश से खुन्नस निकालने के लिए उन्होंने जमीन खरीदने के नियम इतने कड़े कर दिए थे कि पुणे आश्रम के विस्तार के लिए रजनीश मुंह मांगे दाम पर एक फ़ीट जमीन नहीं खरीद पाए जबकि उस दौर में उनके तीस हजार विदेशी भक्त भारत में टिके हुए थे।

ऐसे रजनीश पर करण बायोपिक बनाना चाहते है। करण की काबलियत पर कोई शुबहा नहीं है परन्तु तीन घंटे की समय सीमा में रजनीश के जीवन के उतार चड़ाव और उनका बौद्धिक समेटना आसान नहीं है। जब विवाद का ही दूसरा नाम रजनीश हो तो यह काम और मुश्किल हो जाता है। वैसे भी हम जिस युग से गुजर रहे है वहां तिल का पहाड़ और राइ का ताड़ बनने में देर नहीं लगती। करण अपनी ही फिल्म ' ऐ दिल है मुश्किल ' में शिवसेना के सामने घुटने टेक चुके है फिर भला वे किसके दम पर उस रजनीश को फिल्मा पाएंगे जिन्हे स्थापित मान्यताओं को तोड़ने में मजा आता था , राजनेताओ और धार्मिक पाखंड पर तंज करना जिसकी स्वाभाविक आदत थी। फिल्मों से जुड़े आर्थिक जोखिम की समझ रखने वाला सामान्य व्यक्ति भी अब समझ सकता है कि इस तरह की फिल्म बनाना जान माल दोनों के लिए खतरनाक है। यह फिल्म कभी नहीं बनेगी। करण जौहर का यह ऐलान सनसनी पैदा करने और सुर्खियां बटोरने से ज्यादा कुछ नहीं है।
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