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Thursday, November 8, 2018

रोमांचक सफर पर ले जाती ' टाइम मशीन '


खबर हॉलीवुड से है।  ' टाइटेनिक ' फिल्म से दुनिया भर में पहचान बना चुके लेनार्डो डी कैप्रिया विख्यात साइंस कहानी  लेखक एच जी वेल्स के कालजयी उपन्यास ' टाइम मशीन ' पर फिल्म निर्माण कर रहे है। लेनार्डो इस फिल्म के माध्यम से खुद को एक फिल्म मेकर के रूप में प्रस्तुत करने जा रहे है।  फिल्म का निर्देशन मशहूर निर्देशक एंडी मशेती करेंगे। फिल्म कितनी बड़ी होगी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म को हॉलीवुड के दो बड़े स्टूडियो , वार्नर ब्रदर्स और पैरामाउंट मिलकर बना रहे है। 
टाइम ट्रेवल सिनेमा के आगमन से पहले से ही जन समुदाय में उत्सुकता का सबब रहा है। ब्रिटिश विक्टोरियन युग में लिखे  गये   उपन्यास ' टाइम मशीन ' ने अनदेखे अनजाने भविष्य को लेकर जो कौतुहल जगाया था उसे सिनेमा को तो अपनी गिरफ्त में लेना ही था। टाइम  ट्रेवल पर जॉर्ज पाल द्वारा निर्मित पहली फिल्म ' टाइम मशीन ' 1960 में बनाई गई थी।  यह फिल्म एच जी वेल्स के उपन्यास का हूबहू सिनेमैटिक अवतार थी। ट्रिक फोटोग्राफी और स्टूडियो निर्मित भव्य सेट्स के अलावा इस फिल्म की एक और उल्लेखनीय विशेषता थी , इस फिल्म में एच जी वेल्स के पोते ने समय यात्रा पर जा रहे वैज्ञानिक के दोस्त की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म के बाद जितनी भी फिल्मे और टीवी धारावाहिक इस विषय पर बने उनमे वेल्स को तो क्रेडिट दिया परन्तु कथानक में निर्माता ने अपनी कल्पनाशीलता का भरपूर उपयोग किया। अधिकांश अमेरिकी टीवी धारावाहिकों ने इस उपन्यास के तथ्यों और घटनाक्रम को विस्तार देकर घर बैठे दर्शक को भी टाइम ट्रेवल के रोमांच से सरोबार किया। 2010 में  ए बी सी चैनल पर प्रसारित लोकप्रिय धारावाहिक ' लॉस्ट ' का अंतिम छठा सीजन टाइम ट्रेवल पर ही केंद्रित रहा था। 
2002 में अमेरिकन और ब्रिटिश सहयोग से बनी गाय पियर्स अभिनीत  ' टाइम मशीन ' ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी लागत का पंद्रह गुना धन कमाया परन्तु अपने कंप्यूटर जनित दृश्यों की भरमार और प्रेम कहानी के एंगेल की वजह से सिने  समीक्षकों और आलोचकों को प्रभावित नहीं कर सकी। एक दुर्घटनावश समय में आठ लाख वर्ष आगे निकल गए नायक के सामने कबीलाई युग में पहुँच गई  मानव सभ्यता को शिक्षित करने और नरभक्षी ' मार्लोक ' प्राणियों से मानव जाति को बचाने की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है फलस्वरूप उसकी टाइम मशीन नष्ट हो जाती है और वह भविष्य में ही  रह जाता है। 
  टाइम ट्रेवल पर रोबर्ट ज़ेमिकिस निर्देशित  हलकी फुल्की कॉमेडी  ' बैक टू द फ्यूचर ' विशेष उल्लेखनीय फिल्म है। 1985 में निर्मित इस फिल्म का हाई स्कूल का छात्र  नायक अपने बुजुर्ग इलेक्ट्रिक इंजीनियर  मित्र की कार में बैठकर तीस साल पीछे 1955 में चला जाता है। जहाँ उसकी मुलाक़ात हाई स्कूल में ही पढ़ रहे अपने माता पिता से होती है। फिल्म में 1955 का माहौल रचने के लिए  बारीक से बारीक बातों  का ध्यान रखा गया था।  ' बैक टू द फ्यूचर ' बहुत थोड़े बजट में बनी अमेरिका की सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्मों की सूची  में स्थान रखती है। इस फिल्म की छप्पर फाड़ सफलता ने  बैक टू द फ्यूचर 2 और  बैक टू द फ्यूचर 3 बनाने की राह आसान की थी। शेष दोनों  भाग भी काफी सफल रहे थे। 
 इस विषय पर हिंदी सिनेमा की हिचकिचाहट समझ नहीं आती। एक जैसे कथानक और एक  ढर्रे पर फिल्म बना रहे फिल्मकारों को काल यात्रा पर फिल्म बनाने का विचार क्यों नहीं आया , समझा जा सकता है। अधिकाँश लोग यह सोंचकर नए विषय को हाथ नहीं लगाते कि किसी और को प्रयास कर लेने दो अगर वह सफल हो गया तो हम भी कूद पड़ेंगे। 2010 में विपुल शाह ने अक्षय कुमार और ऐश्वर्या रॉय को लेकर ' एक्शन रीप्ले ' बनाई थी। बकवास स्क्रिप्ट और बेदम कहानी को सफल नहीं होना था और ऐसा ही हुआ भी। बस उसके बाद हिंदी सिनेमा में टाइम ट्रेवल की कोई बात नहीं करता। 
बॉलीवुड से इतर दक्षिण की क्षेत्रीय फिल्मों ने जरूर हॉलीवुड के सामने खड़े होने का साहस दिखाया है। तमिल , तेलुगु और कन्नड़ में पिछले  कुछ वर्षों में नए सब्जेक्ट पर शानदार फिल्मे बनी है। विडंबना यही है कि क्षेत्रीयता और भाषाई अवरोधों के कारण वे एक बड़े दर्शक वर्ग तक नहीं पहुँच पाती। 2015 में बनी तमिल फिल्म ' इन्द्रू नेत्रु नालाई ' टाइम ट्रेवल पर भारत में बनी मौलिक और बेहतरीन फिल्म है। इसी तरह मलयालम में सूर्या अभिनीत ' टाइम मशीन और कन्नड़ में अभिनेता अजित अभिनीत टाइम मशीन भी दर्शनीय फिल्मे है। 
भविष्य और अतीत की कांच की दीवारों के बीच वर्तमान फंसा हुआ है। न आप इधर जा सकते है न उधर। परन्तु  अपनी फंतासियों में मनुष्य ने इन दोनों ही अवरोधों को पार किया है और आभासी अनुभव का अहसास दिलाने में फिल्मे बड़ी मददगार साबित हुई है। 

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