Wednesday, August 28, 2019

सनी लियॉन कल आज और कल !



यह लगातार तीसरा वर्ष है जब सनी लियोन गूगल सर्च के टॉप ट्रेंड में शीर्ष पर रही है। अगस्त माह के आरंभ में गूगल ने अपने सर्च इंजिन से दुनिया भर के इंटरनेट यूसर्स के साल भर के सर्च  ट्रेंड के डेटा सार्वजनिक किये है। गूगल एनालिटिक्स के आंकड़े शोधकर्ताओं और बड़ी कम्पनियों को यह समझने में मदद करते है कि लोगों की पसंद और उनकी खरीददारी का रुझान किन चीजों से प्रभावित हो रहा है। लोग किस सेलिब्रिटी से सम्मोहित हो रहे है। सबसे चौकाने वाला तथ्य यह है कि सर्च पैटर्न में भारत के प्रधानमंत्री और बॉलीवुड के सुपर सितारे सनी लियोन से काफी पीछे चल रहे है। और यह भी तब जबकि सनी अपने पोर्न करियर को 2013 में ही समेट चुकी है।
 करनजीत कौर वोहरा ( सनी लियोन ) भारतीय मूल की है और कनाडा के छोटे से कस्बे ' सार्निया ' की रहने वाली है। पोर्न इंडस्ट्री  में आने से पूर्व उन्होंने स्वयं ही अपना नया नामकरण किया।  लियोन  शब्द उन्होंने  इतालवी फिल्म निर्माता के नाम में से लिया है और सनी शब्द अपने भाई से। 
2012 से बॉलीवुड में शुरुआत करने के बाद से अब तक उनकी तेरह फिल्मे आ चुकी है। कुछ फिल्मों ने जबरदस्त व्यवसाय किया और कुछ कब आई कब गई पता नहीं चला। इसी तरह कन्नड़ और तमिल की कुछ फिल्मों में भी  उन्होंने गेस्ट भूमिकाए की परंतु इन सभी में उनके शरीर की नुमाइश ही थी। उनके अभिनय को लेकर कही भी कोई चर्चा नहीं हुई।
यूँ तो सनी का जीवन खुली किताब है परन्तु इंटरनेट पर उन्हें लेकर जो तीव्र उत्सुकता है उसके पीछे अतीत में उनपर फिल्माए गए वीडिओ के अलावा उनकी व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में भी जान लेने की उत्कंठा भी शामिल है। आज सनी एक बड़ी शख्सियत बन चुकी है। लोग उनके पास जाना चाहते है। उनके साथ सेल्फी और ऑटोग्राफ चाहते है।  उनके किसी भी कार्यक्रम को सिर्फ उनका नाम ही ' हाउस फूल ' बना देता है। सनी इस तथ्य को भली भाँति महसूस करती है।  उन्हें मालुम है कि उनकी सबसे बड़ी पूँजी उनकी देह है इसलिए वे अपनी शर्तो पर काम करती। अब तक उन्होंने जितनी भी हिंदी या कन्नड़ फिल्मों में अपनी झलक दिखलाई है उनसे अमेरिकन डॉलर में पारिश्रमिक वसूला है।अब तक  वे इस सच  को भी स्वीकार चुकी है कि उनके पीछे दौड़ने वाली भीड़ उन्हें कभी भी चरित्र भूमिकाओं या केंद्रीय भूमिका में स्वीकार नहीं करेगी लिहाजा उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस स्थापित कर दिया है।  पोर्न बिजनेस में कमाई के मामले में वे दुनियाभर में सातवे स्थान पर आती है ( 2. 5 मिलियन डॉलर पोर्न एक्टर के रूप में उनकी सालाना आमदनी थी। ) . 
 ' केवल भगवान् ही न्याय करेंगे - जिंदगी बहुत छोटी है और इसका जी भर आनंद लिया जाना  चाहिए ' ट्विटर पर उनका स्टेटस उनकी व्यवहारिक सोंच को दर्शाता है। सनी के जीवन पर विस्तार से रौशनी डालती डॉक्यूमेंट्री ' मोस्टली सनी ' 2016 में प्रदर्शित हो चुकी है जिसे दिलीप मेहता ने निर्देशित किया था।  दिलीप मेहता पूर्व में वृंदावन की विधवाओं की दारुण स्थिति पर ' फॉर्गोटन वुमन ' डॉक्यूमेंट्री बनाकर अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुके है। भारत को छोड़कर सारी  दुनिया में नेटफ्लिक्स द्वारा प्रदर्शित इस डॉक्यूमेंट्री में सनी लियॉन बेबाकी से अपने बचपन , जीवन और सपनो के बारे में बात करती है। वे बताती है कि उनका बचपन सुखद था। उनके माता पिता ने सिख धर्म की परम्पराओ का सम्मान करते हुए उन्हें बड़ा किया। पोर्न बिजनेस में जाने का फैसला उन्होंने सोंच समझ कर लिया था। उन्हें ऐसा करने के लिए किसी ने बाध्य नहीं किया था। आधुनिक कनाडा में रहने के बावजूद भी उनके माता पिता इस फैसले के खिलाफ थे। सनी स्वीकार करती है कि उनके पालकों की नाराजगी को ' पेंटहाउस ' मैगज़ीन की तरफ से मिला एक लाख डॉलर का चेक भी कम नहीं कर सका था। आज स्थिति यह है कि उनके रिश्तेदार और भारतीय समुदाय के लोग उन्हें भारतीय समुदाय के लिए कलंक मानते है ! बॉलीवुड स्टार बन चुकी सनी के भाई और पति डेनियल वेबर  के अलावा उनका कोई नजदीकी रिश्तेदार उनसे रिश्ता नहीं रखता है। 

 सनी इस डॉक्यूमेंट्री में एक पोर्न स्टार नहीं वरन  ' बिज़नस वुमन ' की तरह बात करती है। वे एक एक डॉलर और एक एक रूपये को सोच  समझ कर नए बिजनेस में इंवेस्ट कर रही है।  पिछले दिनों दुबई में उन्होंने अपनी परफ्यूम रेंज ' लस्ट ' लांच की है और जल्द ही  कॉस्मेटिक रेंज भी ला रही है। इंटरनेट पर उनके नाम से जो ट्रैफिक चल रहा है सनी उसे भी भुना रही है।  कई डायरेक्टर उन्हें सिर्फ इस बात के पैसे दे रहे है ताकि वे अपने ट्विटर अकाउंट से उनकी फिल्मो का जिक्र भर कर दे। एक वेब साइट उन्हें इरोटिक  शार्ट स्टोरी लिखने के लिए पैसा दे रही है।
दो देशों कनाडा और अमेरिका की नागरिक सनी ने भारत की नागरिकता नहीं ली है। वे यहाँ आज भी वर्क वीसा पर रह रही है परंतु भारतीय परम्पराओ और संस्कृति को उन्होंने तेजी से अपनाना आरम्भ कर दिया है। एक गोद  ली हुई बेटी और सरोगेसी से उत्पन्न दो जुड़वाँ बेटों के साथ सभी त्यौहार मनाते सनी के पारिवारिक फोटो समय समय पर इंटरनेट पर ध्यान आकर्षित करते रहे है।
अतीत की पोर्न स्टार , वर्तमान में  बॉलीवुड अभिनेत्री और बिजनेस वुमन सनी को बीबीसी ने सौ प्रभावशाली महिलाओ की सूची में शामिल कर सम्मान दिया है परंतु भारत पाकिस्तान और दक्षिण एशियाइ देशों के इंटरनेट यूजर उन्हें आज भी ' कामुक ' नजरों से निहार रहे है। उनका कल आज भी उनका पीछा कर रहा है ! 

Friday, August 23, 2019

रजनीगंधा सी महकती एक अभिनेत्री : विद्या सिन्हा

हर कलाकार  का पहला  सपना होता है कि उसकी भूमिका को लोग याद रखे। इस सपने को पूरा करने के लिए वे जीतोड़ प्रयास भी करते है।  भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे बहुतेरे अभिनेता अभिनेत्री हुए है जिन्होंने भरपूर पैसा कमाया और अपना शेष जीवन सुखद अतीत की यादों की जुगाली करते हुए बिताया। परंतु कुछ लोग ऐसे भी रहे है जिन्होंने अपने स्वर्णिम समय में पैसा तो नहीं कमाया लेकिन  चुनिंदा भूमिकाए कर पीढ़ियों की स्मृतियों में दर्ज हो गए। ऐसी ही एक अभिनेत्री थी विद्या सिन्हा।
सत्तर से अस्सी के दशक में हमेशा की तरह बड़े सितारों की फिल्मों का बोलबाला था। सुपर स्टार राजेश खन्ना का जलवा  था ( अमर प्रेम , बाबर्ची )   इसी समय एक कालजयी फिल्म ' आनंद ' में अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना एक दूसरे के सामने ख़म ठोंक रहे थे। देव आनद ( हरे रामा हरे कृष्णा )  एक अनूठे विषय को उठाकर छा चुके थे। जया भादुड़ी गुड्डी , अभिमान से अपनी आमद दर्ज करा रही थी। 'मेरा नाम जोकर ' में झुलस चुके राजकपूर ' बॉबी ' से दो नए सितारों ( डिम्पल , ऋषिकपूर ) को जन्म दे चुके थे। श्याम बेनेगल  'अंकुर' और ' निशांत'  से शबाना आजमी को निखार चुके थे। समय के इसी दौर ने एक सपने को ' पाकीजा ' के रूप में रजत पटल पर साकार होते देखा। कमाल अमरोही का जूनून और मीना कुमारी का अपनी बीमारी के बावजूद शानदार अभिनय आज न सिर्फ सिनेमाई इतिहास है वरन शोध का विषय भी है।
इन्ही बड़े नामों और फिल्मों के बीच 1974 में  दक्षिण मुंबई में स्थित आकाशवाणी के थिएटर में एक फिल्म रिलीज़ हुई। नाम था ' रजनीगंधा ' और  निर्देशक थे ख्यातनाम  बासु चटर्जी। नायक अमोल पालेकर , दिनेश ठाकुर और नायिका विद्या सिन्हा के बारे में इससे पहले कभी सुना नहीं गया था। सिर्फ एक प्रिंट से प्रदर्शित इस फिल्म की पब्लिसिटी भी कुछ खास नहीं हो पाई थी। इंदौर की लेखिका मन्नू भंडारी के डायरी की शक्ल में लिखे उपन्यास ' यही सच है ' पर आधारित 'रजनीगंधा ' सिर्फ माउथ पब्लिसिटी के भरोसे सुपर हिट होने जा रही थी। दो प्रेमियों में से किसे जीवन साथी बनाऊ ? की दुविधा में उलझी शहरी मध्यमवर्गीय नायिका की
भूमिका को विद्या सिन्हा ने सहजता से जीवंत  किया था। पड़ोस में रहने वाली लड़की की तरह दिखने वाली विधा की छवि इस फिल्म की वजह से बरसों तक सिने दर्शकों के दिलों दिमाग पर अमिट रहने वाली थी। ऐसा हुआ भी। छप्पर फाड़ सफलता के बावजूद विधा ने अपनी सौम्य और शालीन छवि को बरकरार रखा। दो लाख रूपये के बजट में बनी ' रजनीगंधा ' विद्या सिन्हा  को उस मुकाम पर ले गई जहाँ के लिए नायिकाएँ कल्पना ही करती रह जाती है।  महज सोलह वर्ष की उम्र में ' मिस बॉम्बे ' का खिताब जीत लेने वाली विद्या ने अपनी सफलता के दौर में राजकपूर की फिल्म ठुकरा कर सनसनी फैला दी थी। ' सत्यम शिवम् सुंदरम ' के लिए राजकपूर की पहली पसंद विद्या ही थी परंतु कम कपड़ों में अधढकी नायिका की भूमिका उनके गले नहीं उतरी। इस समय तक नायिकाएँ तंग शर्ट्स और बेलबॉटम में नजर आने लगी थी। लेकिन  विद्या सिन्हा ने इस दौर में भी अपने को शिफॉन और जॉर्जेट की साड़ियों में संजोये रखा। अपने कैरियर में मात्र तीस फिल्मे करने वाली इस अभिनेत्री ने ऐसे  समय फिल्म संसार को अलविदा कह दिया था जब वे उस दौर के शीर्ष नायकों ( संजीव कुमार , शशि कपूर , विनोद खन्ना , शत्रुघ्न सिन्हा आदि ) के साथ फिल्मे कर रही थी। वजह सिर्फ इतनी थी कि वे मातृत्व  सुख को महसूस करना चाहती थी। अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर इस अभिनेत्री ने दूरदर्शन के लिए दो यादगार धारावाहिक (सिंहासन बत्तीसी , दरार )  निर्मित किये साथ ही दो सफल क्षेत्रीय फिल्मों ( बिजली - मराठी एवं जीवो रबारा - गुजराती ) की निर्माता भी बनी।
कई बार यूँ भी देखा है , ये जो मन की सीमारेखा है , मन तोड़ने लगता है ' या  ' रजनीगंधा फूल तुम्हारे महके जीवन में ' या ' तुम्हे देखती हु तो लगता है जैसे युगो से तुम्हे जानती हु ' या ' न जाने क्यूँ होता है जिंदगी के साथ  -  गीत न सिर्फ मुकेश और लता मंगेशकर की वजह अमर हुए है वरन स्क्रीन पर विद्या की 'ग्रेसफुल भाव अभिव्यक्ति ने भी उन्हें अविस्मरणीय बना दिया है।
 यह विचित्र संयोग है कि देश की आजादी के साल (1947) जन्मी इस अभिनेत्री ने एन  आजादी की वर्षगांठ ( 15 अगस्त) पर दुनिया को अलविदा कहा।  

Saturday, August 10, 2019

मानवीय गलतियों से उपजा सिनेमा !

 गलतियां इंसान से ही होती है। इस कहावत में गलतियों के लिए माफ़ कर देने का भाव छुपा हुआ है। एलेग्जेंडर पोप के एक लेख में इस कहावत का पूरा भावार्थ स्पस्ट किया है कि बावजूद गलतियों के मनुष्य को क्षमा कर दिया जाना चाहिए। लेकिन मनुष्य की कुछ गलतिया ऐसी होती है जो सम्पूर्ण मानव जाति के लिए जख्म बन जाया करती है। उन्हें चाहकर भी माफ़ नहीं किया जा सकता। 
बीसवीं सदी मनुष्य के मशीनी  विकास को रफ़्तार देने वाली सदी मानी जाती है। इस सदी में मानव जाति ने अकल्पनीय आविष्कारों की मदद से मनुष्य के जीवन को सरल और सुविधाजनक बनाने का प्रयास किया है। इस सदी ने मशीनों पर मनुष्य की निर्भरता को बढ़ावा दिया फलस्वरूप मानवीय भूलों की वजह से हुए मशीनी हादसों में किसी प्राकृतिक प्रकोप के बनिस्बत कही अधिक लोग हताहत हुए। बीसवीं सदी की शुरुआत में ही ' टाइटेनिक ' जहाज के डूब जाने की वजह से एक साथ पंद्रह सौ से ज्यादा लोग काल के ग्रास बन गए थे। काफी बाद में जांच से यह निष्कर्ष सामने आया कि जहाज को जिस स्टील की चद्दरों से ढंका गया था उनमे लगे रिबेट  निहायत ही हलके किस्म के थे। इस दुर्घटना के बाद अमेरिका के प्रकाशन उद्योग में जबरदस्त उछाल आया। इस हादसे पर  सैंकड़ों किताबे लिखी गई जिसमे हरेक लेखक ने इस ढंग से वर्णन किया  मानो वह इस दुर्घटना का प्रत्यक्ष गवाह रहा था। हादसे के पिच्चासी बरस बाद जेम्स कैमरून ने इस दुर्घटना में प्रेम कहानी मिलाकर प्रभावशाली फिल्म ' टाइटेनिक ' (1997) का निर्माण किया।
  जिम्मेदारों की लापरवाही और शीर्ष पर बैठे प्रभावशाली लोगों की लोलुपता के चलते  घटित हुए हादसों में भोपाल गैस त्रासदी ऐसा हादसा है  जिसने दुनिया को औद्योगिक सुरक्षा के प्रति बरती जाने वाली ढिलाई से अवगत कराया था। यह  मानव जनित हादसा था जिसके निशान भोपाल की मौजूदा पीढ़ी पर आज भी दिखाई दे रहे है। इस दुर्घटना पर कई डॉक्यूमेंट्री और फिल्मे बनी है। उल्लेखनीय फिल्म ' ए प्रेयर फॉर रेन (2014 ) है जिसमे एक रिक्शा चालक के नजरिये से पुरे घटना क्रम को देखा गया है। ' भोपाल एक्सप्रेस (1999 ) भी प्रभावशाली फिल्म थी जिसमे एक नव दम्पति को केंद्र में रखकर हादसे को दर्शाया गया था। वास्तविकता को एकदम नजदीक से टटोलती बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ' वन नाईट इन भोपाल (2004) हरेक पीड़ित के हाल बयां करती है। 
भोपाल हादसे के महज दो बरस बाद ही दो मानवीय गलतियों से उपजे हादसों ने विश्व की दोनों ही महशक्तियों रूस और अमेरिका को अंदर तक हिला दिया था। 1986 की गर्मियों में अविभाजित रूस के प्रिप्याट शहर से सटे चेर्नोबिल परमाणु प्लांट में हुए विस्फोट ने पूरी मानव जाति को विनाश के  कगार पर ला खड़ा किया था। बाद की जांच में स्पस्ट हुआ कि प्लांट सुपरवाइजर अपने प्रमोशन के लिए किसी को बताये बिना कुछ टेस्ट कर रहे थे। इस तरह के हादसों से निपटने में सभी देश की सरकारे एक ही नीति अपनाती है - हादसों को छुपाना। सोवियत सरकार ने भी यही किया।  पांच लाख की आबादी वाला प्रिप्याट  भुताह शहर हो गया है परन्तु सरकारी आंकड़े आज भी महज इकतीस मौत पर अटके हुए है। हाल ही में इस हादसे के एक हफ्ते के घटनाक्रम को केंद्र में रखकर डोक्यू ड्रामा ' चेर्नोबिल ' का प्रसारण एच बी ओ टेलीविज़न पर हुआ है। पांच किस्तों में प्रसारित इस टीवी शो ने तत्कालीन सोवियत रूस के आम जीवन , साम्यवादी पार्टी की कार्यशैली और गुप्तचर संस्था केजीबी की जीवन के हरक्षेत्र में घुसपैंठ को परत दर परत उजागर किया है। इस हादसे पर बनी डॉक्यूमेंट्री ' द बैटल ऑफ़ चेर्नोबिल ' सबसे विश्वसनीय मानी जाती है। 
1986 की ही सर्दियों में अमेरिका का स्पेस शटल चैलेंजर उड़ान के महज 73 सेकण्ड बाद ही आकाश में फट गया। इस घटना में सातों अंतरिक्ष यात्री मारे गए क्योंकि उनके बच निकलने का कोई रास्ता नहीं सोंचा गया था। स्पेस एजेंसी नासा के लिए यह हादसा एक काला अध्याय है। इस घटना में मानवीय भूल का पक्ष यह था कि ठंडे तापमान के आंकड़े नहीं जुटाए गए थे लिहाजा शून्य से नीचे तापमान में उड़ान भरने से उत्पन्न समस्याओ पर कंप्यूटर गौर नहीं कर पाया परिणाम स्वरुप करोडो डॉलर और कीमती जिंदगियां पल में खाक हो गई। 1990 और 2013 में इस विषय पर दो काल्पनिक फिल्मे बन चुकी है।  नासा ने इस पुरे घटनाक्रम की वास्तविकता को दर्शाने के लिए ' द चैलेंजर डिजास्टर (2019) को तकनीकी और तथ्यात्मक मदद उपलब्ध कराई है। 
जब तक मनुष्य है तब तक उससे गलतियाँ होती रहेगी। गलतियों से सीखकर ही मानव जाति अगली पीढ़ी के लिए बेहतर दुनिया बनाने का प्रयास करेगी। 

दिस इस नॉट अ पोलिटिकल पोस्ट

शेयर बाजार की उथल पुथल में सबसे ज्यादा नुकसान अपने  मुकेश सेठ को हुआ है। अरबपतियों की फेहरिस्त में अब वे इक्कीसवे नंबर पर चले गए है। यद्ध...