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Thursday, July 2, 2015

Sanjay Story :political biopic in india

आत्म कथाओ का अपना आकर्षण है। जब इन कहानियों को फिल्म का कैनवास मिलता है तब किताबों से कही अधिक दर्शक इन्हे मिल जाते है। एक अजीब संयोग हुआ है।  गत सप्ताह एक साथ दो बायोपिक की बाते सुनाई दी है।  भारत की  लोकप्रिय पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी और उनके विवादास्पद पुत्र संजय गांधी के जीवन  पर फिल्म बनाने के अधिकार खरीद लिए गए है। फिल्मकार मनीष गुप्ता ने जहां इंदिरा गांधी ( उनके उस दौर में उन्हें मिसेज गांधी के नाम से सम्बोधित किया जाता था ) पर अपनी स्क्रिप्ट तैयार कर सोनिया गांधी को पढ़ने के लिए भेजी है वही ' इकनोमिक टाइम्स ' की खबर कहती है कि सुनील वोहरा ने प्रख्यात पत्रकार विनोद मेहता की दो किताबो के अधिकार ख़रीदे है। पहली है the sanjay story  और दूसरी है ' मीना कुमारी '
 सुनील वोहरा ने विगत में कुछ शानदार फिल्मे दी है।   'गेम्स ऑफ़ वासेपुर  ' ने उन्हें उल्लेखनीय सफलता दिलाई है और अनुराग वासु को स्थापित निर्देशकों में शामिल कराया है ।  2013 में उनकी फिल्म ' शहीद ' ने दो   नेशनल अवार्ड जीते है , लिहाजा संजय गांधी पर बनने वाली फिल्म ज्यादा उत्सुकता जगाती है।
                                 सुनील वोहरा की कंपनी वोहरा ब्रदर्स  टीम ने the sanjay story की स्क्रिप्ट पर काम   आरम्भ कर दिया है। उन सभी लोगों से मुलाक़ात तय की जा रही है जिन लोगों ने संजय गांधी के साथ वक्त गुजारा है। संजय भले ही विवादास्पद रहे परन्तु उनका जीवन  काफी घटना प्रधान रहा है। the sanjay story में विनोद मेहता ने काफी तथ्य उजागर किये है।  संजय की विघवा श्रीमती मेनका गांधी इस फिल्म से असहज हो सकती है। क्योंकि इस पुस्तक में उनके युवा काल का विस्तार से वर्णन किया गया है कि वे किस तरह राजीव और इंदिरा गांधी के सामने धड्ड्ले से सिगरेट पीया करती थी। गर को यह बात फिल्म का हिस्सा बनती है  तो शर्मिंदगी का अंदाजा लगाया जा सकता है। यही नहीं अम्बिका सोनी , रुकसाना सुल्ताना , विद्याचरण शुक्ल , आदि के भी गुलाबी  दिनों का जिक्र सामने आ सकता है। दिलचस्प होगा यह देखना कि सुनील वोहरा इस फिल्म को कैसे सिल्वर स्क्रीन पर लाते है। 
                                बायोपिक बनाना कभी भी किसी फिल्मकार के लिए आसान नहीं रहा है। रिचर्ड एटनबरो ने बीस साल तक  'गांधी ' फिल्म पर काम किया था तब कही जाकर वे कालजयी फिल्म दे पाये थे। इसी तरह की मेहनत ओलिवर स्टोन को अपनी फिल्म जे ऍफ़ के ( अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ केनेडी ) के लिए करना पड़ी थी। उपरोक्त दोनों ही फिल्मे आत्म कथा श्रेणी की बेहतरीन फिल्मे मानी जाती है। 
                        ऐसा नहीं है की यह दुरूह काम है। इस तरह के प्रोजेक्ट में अथाह धन और समय लगता है और फिल्मकार का आग्रह व्यावसायिक सफलता का भी होता है जिसके चलते वह उस फिल्म में कुछ काल्पनिकता का भी तड़का लगा देता है। ' भाग मिल्खा भाग ' ( धावक मिल्खा सिंह ) ' पानसिंग तोमर ' बेंडिट क्वीन '( फूलन देवी ) की सफलता इस बात का सुन्दर उदाहरण है।  

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