तंदरुस्त रहना उतना ही स्वाभाविक है जितना किसी बीमारी से पीड़ित होना। हमारे सारे प्रयास स्वस्थ बने रहने के लिए होते , फिर भी हम किसी न किसी बिमारी की चपेट में आ ही जाते है। जीवन में बहुत कुछ हमें नियंत्रण में लगता है परन्तु असहायता का अहसास तब होता है जब हमें पता चलता है कि अंदर ही अंदर कोई रोग हमारी सजगता को धता बताकर जड़े जमा रहा है। हमारे प्रियजन या हमारे नायक जब किसी रोग से ग्रसित होते है तो हमारे पैरो तले जमीन खिसक जाती है। हमने अप्रितम सौंदर्य की देवी मधुबाला को उस बीमारी से घुलते देखा जिसका निदान आज एकदम सामान्य है। हमने दिलीप कुमार की स्मृति को ज्वार भाटे की तरह आते जाते देखा। किंवदंती बन गए ट्रेजेडी किंग की सबसे बड़ी ट्रेजेडी यह है कि जीवन की संध्या में उनकी सारी स्मृतियाँ उनका साथ छोड़ गई। अब वे किसी को पहचान नहीं पाते। लाखों लड़कियों को अनूठा हेयर स्टाइल देने वाली साधना एक ऐसी बीमारी से ग्रस्त हुई जिसने सबसे पहले उनकी बेहद सुन्दर आँखों को अपना शिकार बनाया। जिन्हे देखकर ही दर्शकों में सिहरन दौड़ जाया करती थी वे खलनायक प्राण ऊंचाई पर पहुँचते ही कांपने लगते थे। जिनकी फिल्मे थियेटर से उतरने का नाम नहीं लेती थी वे राजेंद्र कुमार , करियर के शिखर पर शादी के लिए फिल्मों को नकार देने वाली नूतन , नेहरूजी के कहने पर आजीवन सफ़ेद कपडे पहनने वाली नरगिस- इन सभी को हमने कैंसर से हारते देखा है। सदाबहार देव आनंद और हमारे प्रिय 'जानी ' राजकुमार भी असाध्य बीमारी से पीड़ित थे।
हमारी त्रासदी यह है कि हमारे अवचेतन में ' हैप्पी एंडिंग ' गहरे से चस्पा हो गया है। हम अपने नायकों को अंत में मुस्कुराते लौटते देखना पसंद करते है। सिल्वर स्क्रीन पर भी उनका बिछोह हमें उदास कर जाता है। जब रियल लाइफ में उनके साथ कुछ अनसोचा गुजरता है तो हम बैचेन हो जाते है। हम भूल जाते है कि वे भी उसी मिटटी के बने है जिसने हमें भी गढ़ा है। हमने बेहद सुंदर मनीषा कोइराला , कनाडाई मूल की लीजा रे और हॉटशॉट क्रिकेटर युवराज सिंह को मौत के पंजों से वापस लौटते भी देखा है।इन लोगों के बारे में अक्सर सुनने को मिलता है कि ये लोग अपनी जीवटता और ' विल पावर ' की बदौलत वापस लोटे है।ये लोग अब सामान्य जीवन जी रहे है। यह तथ्य कई लोगों को प्रेरित कर रहा है। यहां यह भी गौरतलब है कि साधन बिना विलपावर ज्यादा देर नहीं चल सकता। अभी हवा में खबर है कि इरफ़ान खान भी किसी घातक बीमारी की चपेट में आगये है। शायद प्रकृति हम जैसों को बताना चाहती कि उसकी नजर में आम और ख़ास एक समान है।
हमारे नायकों को होने वाली बीमारी का एक उजला पक्ष यह भी है कि आम लोग उस बीमारी को लेकर तात्कालिक रूप से जाग्रत हो जाते है। ठीक वैसे ही जैसे ' तारे जमीन पर ' के बाद सारा देश ' डिस्लेक्सिआ ' को लेकर बहस करने लगा था या ठीक वैसे ही हॉलीवुड फिल्म ' रेन मेन ' के बाद दुनिया मानसिक रुग्ण रोगियों के प्रति एकदम से विनयशील हो गई थी।
हास्य अभिनेता जिम केरी की सफलतम फिल्म ' ब्रूस ऑलमाइटी '(2003 ) दुःख सुख के दर्शन को दिलचस्प तरीके से समझाने का प्रयास करती है। नायक ब्रूस अपनी समस्याओ के साथ दुनिया की तकलीफे भी हल करना चाहता है। भगवान् नायक को अपनी शक्तियां सौंप कर सात दिन के लिए छुट्टी पर चले जाते है। ब्रूस लाख जतन करता है परन्तु किसी को भी खुश नहीं कर पाता। उलटे हालात बिगड़ जाते है। अंत में उसे समझ आता है कि महज दैवीय शक्तियों के भरोसे जीवन नहीं चलता मनुष्य को अपनी समस्याओ से खुद ही दो चार होना पड़ता है।
विफलताओं , समस्याओ और बीमारियों का एक ही निदान है कि भावुकता को दर किनार कर इनका साहस के साथ सामना किया जाए।
हाल ही जुदा हुए भौतिक वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग रील और रियल लाइफ दोनों में ही अपनी जीवटता से दुनिया को प्रेरित करते रहे हैं ।
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