ताली थाली दीपोत्सव सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। अब कठोर यथार्थ पर लौटने का समय है। पूर्व आर बी आई गवर्नर रघुराम राजन ने 14 अप्रैल के बाद आने वाली समस्याओ के बारे में आगाह करते हुए एक विस्तृत ब्लॉग पोस्ट लिखी है। इस ब्लॉग की कुछ महत्वपूर्ण बाते - वे लिखते है कि 2008 -09 का आर्थिक संकट वैश्विक था जिसने हमारी मांग को तगड़ा झटका दिया था। लेकिन उस समय हमारे श्रमिक बेकार नहीं हुए थे , अधिकांश कम्पनियाँ पूर्व में बेहतर करती आ रही थी- उनका व्यवसाय कम हुआ लेकिन वे पटरी से नहीं उतरी , वित्तीय संस्थाए अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पा रही थी - लेकिन काम कर रही थी ! कुल मिलाकर वैश्विक तुलना के लिहाज से अर्थव्यवस्था साउंड थी। आज जब हम इस महामारी से लड़ रहे है तब आर्थिक परिदृश्य ठीक उलट है !
राजन आगे लिखते है कि अब लॉक डाउन के बाद के प्रभावों से निपटने की योजना बनाने का समय है। उनका सुझाव है कि पी एम ओ के अधिकांश नौकरशाह जो काम की अधिकता से त्रस्त चल रहे है उन्हें कुछ दिनों के लिए आराम दे दिया जाना चाहिए। संपूर्ण विपक्ष में से ऐसे लोगों को एकत्र किया जाना चाहिए जो 2008 -09 का आर्थिक संकट नजदीक से देख चुके है। इसी समय यह भी ध्यान रखना जरुरी है कि गरीब और नान सैलेरी वर्ग के लोग बगैर डायरेक्ट ट्रांसफर के भी अपना जीवन यापन कर सके। क्योंकि सिमित आर्थिक संसाधनों के चलते इस मदद को ज्यादा लम्बे समय तक नहीं चलाया जा सकता है ! इस तथ्य की अवेहलना का परिणाम हम अभी प्रवासी मजदूरों के पलायन में देख चुके है।
थोड़े समय के लिए भारत को रेटिंग कम होने की चिंता छोड़ देना चाहिए। अमेरिका यूरोप अपनी जी डी पी का दस प्रतिशत तक जरुरत मंदों पर खर्च कर रहे है। इससे उनकी रेटिंग पर कोई असर नहीं होता। हम भी कर सकते है - भले ही हमारी रेटिंग कम हो जाए , भले ही निवेशकों का विश्वास डगमगा जाये , लेकिन अपने देश को पटरी पर लाने के लिए हमें ज्यादा खर्च करना ही होगा। यह जानते हुए भी कि इस वर्ष हमारा राजस्व निम्नतम धरातल पर होगा - हमें ऐसे कदम उठाने ही होंगे ! रिज़र्व बैंक ने सिस्टम में पर्याप्त तरलता बनाये रखी है। उसे छोटे और मझोले व्यवसायों को उदारता से पूंजी उपलब्ध कराना होगा।
अपनी बात को समाप्त करते हुए वे कहते है कि संकट में ही भारत में सुधार लागू हुए है। उम्मीद है, यह त्रासदी हमें यह देखने में मदद करेगी कि एक समाज के रूप में हम कितने कमजोर हुए है ,और हमारी राजनीति आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी सुधारों पर ध्यान केंद्रित करेगी , जिनकी हमें सख्त जरुरत है !
राजन आगे लिखते है कि अब लॉक डाउन के बाद के प्रभावों से निपटने की योजना बनाने का समय है। उनका सुझाव है कि पी एम ओ के अधिकांश नौकरशाह जो काम की अधिकता से त्रस्त चल रहे है उन्हें कुछ दिनों के लिए आराम दे दिया जाना चाहिए। संपूर्ण विपक्ष में से ऐसे लोगों को एकत्र किया जाना चाहिए जो 2008 -09 का आर्थिक संकट नजदीक से देख चुके है। इसी समय यह भी ध्यान रखना जरुरी है कि गरीब और नान सैलेरी वर्ग के लोग बगैर डायरेक्ट ट्रांसफर के भी अपना जीवन यापन कर सके। क्योंकि सिमित आर्थिक संसाधनों के चलते इस मदद को ज्यादा लम्बे समय तक नहीं चलाया जा सकता है ! इस तथ्य की अवेहलना का परिणाम हम अभी प्रवासी मजदूरों के पलायन में देख चुके है।
थोड़े समय के लिए भारत को रेटिंग कम होने की चिंता छोड़ देना चाहिए। अमेरिका यूरोप अपनी जी डी पी का दस प्रतिशत तक जरुरत मंदों पर खर्च कर रहे है। इससे उनकी रेटिंग पर कोई असर नहीं होता। हम भी कर सकते है - भले ही हमारी रेटिंग कम हो जाए , भले ही निवेशकों का विश्वास डगमगा जाये , लेकिन अपने देश को पटरी पर लाने के लिए हमें ज्यादा खर्च करना ही होगा। यह जानते हुए भी कि इस वर्ष हमारा राजस्व निम्नतम धरातल पर होगा - हमें ऐसे कदम उठाने ही होंगे ! रिज़र्व बैंक ने सिस्टम में पर्याप्त तरलता बनाये रखी है। उसे छोटे और मझोले व्यवसायों को उदारता से पूंजी उपलब्ध कराना होगा।
अपनी बात को समाप्त करते हुए वे कहते है कि संकट में ही भारत में सुधार लागू हुए है। उम्मीद है, यह त्रासदी हमें यह देखने में मदद करेगी कि एक समाज के रूप में हम कितने कमजोर हुए है ,और हमारी राजनीति आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी सुधारों पर ध्यान केंद्रित करेगी , जिनकी हमें सख्त जरुरत है !
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