गलतियां इंसान से ही होती है। इस कहावत में गलतियों के लिए माफ़ कर देने का भाव छुपा हुआ है। एलेग्जेंडर पोप के एक लेख में इस कहावत का पूरा भावार्थ स्पस्ट किया है कि बावजूद गलतियों के मनुष्य को क्षमा कर दिया जाना चाहिए। लेकिन मनुष्य की कुछ गलतिया ऐसी होती है जो सम्पूर्ण मानव जाति के लिए जख्म बन जाया करती है। उन्हें चाहकर भी माफ़ नहीं किया जा सकता।
बीसवीं सदी मनुष्य के मशीनी विकास को रफ़्तार देने वाली सदी मानी जाती है। इस सदी में मानव जाति ने अकल्पनीय आविष्कारों की मदद से मनुष्य के जीवन को सरल और सुविधाजनक बनाने का प्रयास किया है। इस सदी ने मशीनों पर मनुष्य की निर्भरता को बढ़ावा दिया फलस्वरूप मानवीय भूलों की वजह से हुए मशीनी हादसों में किसी प्राकृतिक प्रकोप के बनिस्बत कही अधिक लोग हताहत हुए। बीसवीं सदी की शुरुआत में ही ' टाइटेनिक ' जहाज के डूब जाने की वजह से एक साथ पंद्रह सौ से ज्यादा लोग काल के ग्रास बन गए थे। काफी बाद में जांच से यह निष्कर्ष सामने आया कि जहाज को जिस स्टील की चद्दरों से ढंका गया था उनमे लगे रिबेट निहायत ही हलके किस्म के थे। इस दुर्घटना के बाद अमेरिका के प्रकाशन उद्योग में जबरदस्त उछाल आया। इस हादसे पर सैंकड़ों किताबे लिखी गई जिसमे हरेक लेखक ने इस ढंग से वर्णन किया मानो वह इस दुर्घटना का प्रत्यक्ष गवाह रहा था। हादसे के पिच्चासी बरस बाद जेम्स कैमरून ने इस दुर्घटना में प्रेम कहानी मिलाकर प्रभावशाली फिल्म ' टाइटेनिक ' (1997) का निर्माण किया।
जिम्मेदारों की लापरवाही और शीर्ष पर बैठे प्रभावशाली लोगों की लोलुपता के चलते घटित हुए हादसों में भोपाल गैस त्रासदी ऐसा हादसा है जिसने दुनिया को औद्योगिक सुरक्षा के प्रति बरती जाने वाली ढिलाई से अवगत कराया था। यह मानव जनित हादसा था जिसके निशान भोपाल की मौजूदा पीढ़ी पर आज भी दिखाई दे रहे है। इस दुर्घटना पर कई डॉक्यूमेंट्री और फिल्मे बनी है। उल्लेखनीय फिल्म ' ए प्रेयर फॉर रेन (2014 ) है जिसमे एक रिक्शा चालक के नजरिये से पुरे घटना क्रम को देखा गया है। ' भोपाल एक्सप्रेस (1999 ) भी प्रभावशाली फिल्म थी जिसमे एक नव दम्पति को केंद्र में रखकर हादसे को दर्शाया गया था। वास्तविकता को एकदम नजदीक से टटोलती बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ' वन नाईट इन भोपाल (2004) हरेक पीड़ित के हाल बयां करती है।
भोपाल हादसे के महज दो बरस बाद ही दो मानवीय गलतियों से उपजे हादसों ने विश्व की दोनों ही महशक्तियों रूस और अमेरिका को अंदर तक हिला दिया था। 1986 की गर्मियों में अविभाजित रूस के प्रिप्याट शहर से सटे चेर्नोबिल परमाणु प्लांट में हुए विस्फोट ने पूरी मानव जाति को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया था। बाद की जांच में स्पस्ट हुआ कि प्लांट सुपरवाइजर अपने प्रमोशन के लिए किसी को बताये बिना कुछ टेस्ट कर रहे थे। इस तरह के हादसों से निपटने में सभी देश की सरकारे एक ही नीति अपनाती है - हादसों को छुपाना। सोवियत सरकार ने भी यही किया। पांच लाख की आबादी वाला प्रिप्याट भुताह शहर हो गया है परन्तु सरकारी आंकड़े आज भी महज इकतीस मौत पर अटके हुए है। हाल ही में इस हादसे के एक हफ्ते के घटनाक्रम को केंद्र में रखकर डोक्यू ड्रामा ' चेर्नोबिल ' का प्रसारण एच बी ओ टेलीविज़न पर हुआ है। पांच किस्तों में प्रसारित इस टीवी शो ने तत्कालीन सोवियत रूस के आम जीवन , साम्यवादी पार्टी की कार्यशैली और गुप्तचर संस्था केजीबी की जीवन के हरक्षेत्र में घुसपैंठ को परत दर परत उजागर किया है। इस हादसे पर बनी डॉक्यूमेंट्री ' द बैटल ऑफ़ चेर्नोबिल ' सबसे विश्वसनीय मानी जाती है।
बीसवीं सदी मनुष्य के मशीनी विकास को रफ़्तार देने वाली सदी मानी जाती है। इस सदी में मानव जाति ने अकल्पनीय आविष्कारों की मदद से मनुष्य के जीवन को सरल और सुविधाजनक बनाने का प्रयास किया है। इस सदी ने मशीनों पर मनुष्य की निर्भरता को बढ़ावा दिया फलस्वरूप मानवीय भूलों की वजह से हुए मशीनी हादसों में किसी प्राकृतिक प्रकोप के बनिस्बत कही अधिक लोग हताहत हुए। बीसवीं सदी की शुरुआत में ही ' टाइटेनिक ' जहाज के डूब जाने की वजह से एक साथ पंद्रह सौ से ज्यादा लोग काल के ग्रास बन गए थे। काफी बाद में जांच से यह निष्कर्ष सामने आया कि जहाज को जिस स्टील की चद्दरों से ढंका गया था उनमे लगे रिबेट निहायत ही हलके किस्म के थे। इस दुर्घटना के बाद अमेरिका के प्रकाशन उद्योग में जबरदस्त उछाल आया। इस हादसे पर सैंकड़ों किताबे लिखी गई जिसमे हरेक लेखक ने इस ढंग से वर्णन किया मानो वह इस दुर्घटना का प्रत्यक्ष गवाह रहा था। हादसे के पिच्चासी बरस बाद जेम्स कैमरून ने इस दुर्घटना में प्रेम कहानी मिलाकर प्रभावशाली फिल्म ' टाइटेनिक ' (1997) का निर्माण किया।
भोपाल हादसे के महज दो बरस बाद ही दो मानवीय गलतियों से उपजे हादसों ने विश्व की दोनों ही महशक्तियों रूस और अमेरिका को अंदर तक हिला दिया था। 1986 की गर्मियों में अविभाजित रूस के प्रिप्याट शहर से सटे चेर्नोबिल परमाणु प्लांट में हुए विस्फोट ने पूरी मानव जाति को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया था। बाद की जांच में स्पस्ट हुआ कि प्लांट सुपरवाइजर अपने प्रमोशन के लिए किसी को बताये बिना कुछ टेस्ट कर रहे थे। इस तरह के हादसों से निपटने में सभी देश की सरकारे एक ही नीति अपनाती है - हादसों को छुपाना। सोवियत सरकार ने भी यही किया। पांच लाख की आबादी वाला प्रिप्याट भुताह शहर हो गया है परन्तु सरकारी आंकड़े आज भी महज इकतीस मौत पर अटके हुए है। हाल ही में इस हादसे के एक हफ्ते के घटनाक्रम को केंद्र में रखकर डोक्यू ड्रामा ' चेर्नोबिल ' का प्रसारण एच बी ओ टेलीविज़न पर हुआ है। पांच किस्तों में प्रसारित इस टीवी शो ने तत्कालीन सोवियत रूस के आम जीवन , साम्यवादी पार्टी की कार्यशैली और गुप्तचर संस्था केजीबी की जीवन के हरक्षेत्र में घुसपैंठ को परत दर परत उजागर किया है। इस हादसे पर बनी डॉक्यूमेंट्री ' द बैटल ऑफ़ चेर्नोबिल ' सबसे विश्वसनीय मानी जाती है।
1986 की ही सर्दियों में अमेरिका का स्पेस शटल चैलेंजर उड़ान के महज 73 सेकण्ड बाद ही आकाश में फट गया। इस घटना में सातों अंतरिक्ष यात्री मारे गए क्योंकि उनके बच निकलने का कोई रास्ता नहीं सोंचा गया था। स्पेस एजेंसी नासा के लिए यह हादसा एक काला अध्याय है। इस घटना में मानवीय भूल का पक्ष यह था कि ठंडे तापमान के आंकड़े नहीं जुटाए गए थे लिहाजा शून्य से नीचे तापमान में उड़ान भरने से उत्पन्न समस्याओ पर कंप्यूटर गौर नहीं कर पाया परिणाम स्वरुप करोडो डॉलर और कीमती जिंदगियां पल में खाक हो गई। 1990 और 2013 में इस विषय पर दो काल्पनिक फिल्मे बन चुकी है। नासा ने इस पुरे घटनाक्रम की वास्तविकता को दर्शाने के लिए ' द चैलेंजर डिजास्टर (2019) को तकनीकी और तथ्यात्मक मदद उपलब्ध कराई है।
जब तक मनुष्य है तब तक उससे गलतियाँ होती रहेगी। गलतियों से सीखकर ही मानव जाति अगली पीढ़ी के लिए बेहतर दुनिया बनाने का प्रयास करेगी।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंग दान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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