Tuesday, April 14, 2020

मेरी डायरी का एक पन्ना 


समय के साथ बदल जाना समय की भी मजबूरी है ।
मुझे कई लोगों से शिकायत है। कई लोगों को मुझसे शिकायत है। हर कोई मुझसे सहमत नहीं होता। होना भी नहीं चाहिए।  में भला कब हर किसी से राजी होता हु। इस विश्वव्यापी आपदा से मुझे फायदा हुआ है लेकिन में परपीड़क ( सैडिस्ट ) नहीं हु। इन इक्कीस दिनों में किताबों की संगत भरपूर मिली है।  कई अधपढी किताबे पूरी हो गई है। दो दिन में एक किताब का स्कोर चल रहा है। गर्व करने लायक किताबों का भंडार है मेरे पास । कुछ मित्रों की मदद से इ -बुक्स का काफी जमावड़ा हो गया है। मेरे  अमेजन किंडल पर क्लासिक किताबे भरी हुई है।  टीवी न्यूज़ देखना बरसों पहले बंद कर चूका हु। हाई पीच पर चीखते समाचार वाचक बहुत इर्रिटेटे करते है।  समझ नहीं आता लोग कैसे झेलते है। कभी कभी ऐसा लगता है जैसे कोई मदारी अपना मजमा जमा रहा है। वेब पोर्टल सी एन एन , बीबीसी , अलजज़ीरा , प्रिंट , वायर , क्विंट , स्क्रॉल - न्यूज़ के साथ व्यूज में भी बेहतर है। इंदौर के एक मित्र रोजाना अखबारों के इ एडिशन उपलब्ध करा रहे है।  सोशल डिस्टैन्सिंग तोड़ते लोगों को डंडे से दुरुस्त करते पुलिस के वीडियो एकबारगी मनोरंजन कर जाते है। तफरी करने वालो और काम से निकलने वालों के बीच अंतर जानने का पुलिस के पास भी तो  यंत्र नहीं है।
 इन दिनों फिल्मे भी बहुत देख रहा हु। अमेजन पर टीवी शो और डॉक्यूमेंट्री का खजाना है। यूट्यूब की तो कोई बराबरी कर ही नहीं सकता। पुण्य प्रसून , विनोद दुआ , संजय पुगलिया , ध्रुव राठी , आकाश बनर्जी , अखिलेश भार्गव जैसे लोग समय के साथ तालमेल बैठाने में बेहद मददगार साबित हो रहे है। इतना सब होते हुए भी कुछ लोगों से मिल बैठ बात करने का मन करता है। फोन कॉल और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग बढ़िया है लेकिन प्रत्यक्ष सामने होने का सुख नहीं , उसकी तुलना नहीं की जा सकती !
समय चाहे कितना भी खराब हो उसकी सबसे बड़ी कमजोरी उसका चलायमान होना है। बीत जाने के अलावा उसकी कोई नियति नहीं है। यही बात हमें राहत देती है। मुसीबते इससे पहले भी धरती पर आई थी। आती रहेंगी। बस जरुरत है सावधान , चौकन्ने और विवेकशील रहने की।
मनुष्य कुल मिला कर जीने और परस्पर प्यार करने के लिये ही जन्मा है और कोई भी उससे उसका यह हक नहीं छीन सकता।
( इस लेख का पहला और अंतिम वाक्य मेरा नहीं है। बीच के सारे विचार मेरे अपने है ) 


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