ऑक्सफ़ोर्ड शब्दकोष के अनुसार इंसिडेंट ( घटना ) का मतलब -कुछ हो रहा है या कुछ हुआ है , है। घटनाए मनुष्य के साथ जुडी हुई है , एक तरह से वे जीवन का अंग बन चुकी है। तमाम सावधानियों के बाद भी वे घटती रहती है। जिन घटनाओ के कारणों का समाधान मिल जाता है वे संदर्भो के रूप में इतिहास में जोड़ दी जाती है और जो अनसुलझी रह जाती है वे समय बीतने के बावजूद भी शीतकाल की धुंध की तरह रहस्यमयी आवरण लपेटे रहती है।
ठीक पांच वर्ष पूर्व मलेशिया एयरलाइन के जहाज एम् एच 370 का अपने 189 यात्रियों सहित अचानक से गुम हो जाना तकनीक के शिखर पर खड़े विश्व की असफलता का बिरला उदहारण है। ऐसी घटना जिसकी कल्पना सिर्फ आभासी दुनिया में ही संभव है - एक बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह बनकर आधुनिक विकास के दंभ को चुनौती दे रही है।
दर्शनशास्त्र के विद्धानों का मानना है कि हमेशा से ही अनगिनत विचार हमारे आसपास के वातावरण में मौजूद रहे है। मस्तिष्क की तरंगो की हद में आते ही ये विचार मनुष्य की कल्पना को जाग्रत करने का काम करते है। इन्ही विचारो को विस्तार देकर रचनात्मक माध्यमों से लेखन नाटक शिल्प जैसे अभिव्यक्ति के साधन साकार होते है। सुनने में अजीब लग सकता है कि ' टाइटेनिक ' के दुर्घटना ग्रस्त होने के दो दशक पूर्व ही एक अंग्रेज पत्रकार डब्ल्यू टी स्टेड ने अपने काल्पनिक उपन्यास ' द सिंकिंग ऑफ़ मॉडर्न लाइनर (1886) में टाइटेनिक के साथ हुए हादसे और परिस्तिथियों का सटीक वर्णन कर दिया था। स्टेड के उपन्यास में जहाज लिवरपुल से न्यूयोर्क के सफर पर ढाई हजार यात्रियों को लेकर रवाना होता है। जहाज का वजन , लम्बाई चौड़ाई , लाइफ बोट्स की संख्या ,लगभग समान थी। 1898 में अमेरिकी लेखक मॉर्गन रॉबर्ट्सन का लिखा ' द रेक ऑफ़ द टाइटन ' और मॅकडॉनेल बेड किन के लिखे उपन्यास ' द शिप्स रन्स
(1908) ने जहाज की गति 22 नॉट बताई थी जो एकदम सटीक थी। इन तीनो ही कहानियों में जहाज उतरी अटलांटिक सागर में ही डूबता बताया था। डब्लु टी स्टेड ने तो एक तरह से अपने कहानी से अपनी नियति तय कर दी थी। 1912 में टाइटेनिक हादसे के शिकार मृतकों में उनका भी नाम था !
नाइजेरियन धर्मगुरु टी बी जोशुआ ने 2013 में भविष्यवाणी की कि एक एशियाई देश का विमान अपने यात्रियों के साथ गायब हो जाएगा। उस समय उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया। शायद उनका इशारा एम् एच 370 की और ही था। आज भी यह पूरी तरह से स्पस्ट नहीं हुआ है कि विमान में सवार उन जिंदगियों का क्या हश्र हुआ है। विमानन नियमों के अनुसार जब तक किसी विमान का मलबा नहीं मिलता तबतक उसे गुमशुदा ही माना जाता है !
विकटतम परिस्तिथियों में भी जीवन की आस नहीं छोड़ना मनुष्य की बुनियादी प्रवृति है। इतिहास साक्षी है कि दुर्गम वातावरण में भी मानव जाति ने खुद को बचाए रखा है। मनुष्य की इस जीवटता को केंद्र में रखकर रोबर्ट ज़ेमेकिस ने अदभुत फिल्म बनाई ' कास्ट अवे (2000) नायक थे टॉम हेंक। एक अकेले व्यक्ति के प्लेन क्रैश के बाद एक वीरान द्धीप पर चार साल तक फंसे रहने और जीवित रहने के संघर्ष की यह प्रेरणा दायी कहानी भविष्य में होने वाली घटनाओ के पूर्वानुमान लगाने के लिए मानस तैयार कर देती है।कास्ट अवे ' सिर्फ अपने कथानक के लिए ही नहीं वरन अन्य बातों के लिए भी सराही जाती है। एक सौ तैतालिस मिनिट अवधि की इस फिल्म में आधे घंटे तक एक भी संवाद नहीं है। इस फिल्म का अंतिम द्रश्य सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ दस द्रश्यों में शामिल किया गया है।
कास्ट अवे ' की भव्य सफलता ने इसी विषय पर टीवी धारावाहिक ' लोस्ट ' (2004 से 2010 ) का मार्ग प्रशस्त किया। स्क्रीन राइटर जेफ्री लाइबर फिल्मकार जैकब अब्राम और डेमोन लिंडेलोफ ने एक सुनसान द्धीप पर एक यात्री विमान के क्रैश होने और बचे हुए यात्रियों की जद्दोजहद की काल्पनिक कहानी बुनी। अमेरिकी टेलीविज़न पर प्रसारित इस धारावाहिक में अनोखी बात यह थी कि इसके हरेक पात्र की एक बैकस्टोरी थी जिसे ' फ़्लैश इन 'तकनीक से दर्शाया गया था।
मनुष्य की कल्पना को ज्योतिष विज्ञान ने मान्यता नहीं दी है। परन्तु अघटित घटनाओ को फिल्मों के विषय बनाना भविष्यवाणी करने जैसा ही है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व नींद दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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