समय समय पर कुछ प्रयोगधर्मी फिल्मकार अपने क्राफ्ट से दर्शकों को चौकाने का प्रयास करते रहे है। दक्ष और अनुभवी कई फिल्मकारों ने इस तरह का जोखिम या तो अपने करियर की शुरुआत में ले ही लिया था या तब जब उमके पाँव चिकनी सिनेमाई जमीन पर गहरे जम चुके थे। जरुरी नहीं है कि सारे नवीन प्रयोगों की शुरुआत हॉलीवुड से ही हुई हो। कुछ मील के पत्थर भारतीय फिल्मकारों ने भी स्थापित किये है किंतु उनके बारे में भारतीय दर्शक कम ही ही जानते है । ऐसा ही एक अनूठा प्रयोग एक्टर प्रोडूसर सुनील दत्त ने अपनी कई सफल फिल्मों के बाद किया था। ' मुझे जीने दो ' और ' गुमराह ' की सफलता से लबरेज सुनील दत्त ने 1964 में ' यादे ' का निर्माण किया था। इस फिल्म के निर्देशक और अभिनेता भी वे खुद ही थे। इस फिल्म की विशेषता थी इसमें एक मात्र किरदार का होना। 100 मिनिट की इस फिल्म में सुनील दत्त ने एक ऐसे व्यक्ति की भूमिका निभाई थी जिसे घर आने पर पता चलता है कि उसका परिवार उसे छोड़कर जा चूका है। अपने एकालाप में वह खुद को तसल्ली दने की कोशिश करता है कि जल्द ही हालत सुधर जाएंगे और सब कुछ ठीक हो जाएगा। नायक के निराशा , पश्चाताप और कुंठा के पलों को सुनील दत्त ने बखूबी जीवंत किया था। ब्लैक एंड वाइट में बनी इस फिल्म में ध्वनि , प्रकाश और अँधेरे के संयोजन से मनोभावों का चित्रण उल्लेखनीय था। इस उपलब्धि के लिए उस वर्ष का फिल्म फेयर सिनेमटोग्राफी अवार्ड और नेशनल अवार्ड ' यादें ' ने अर्जित किया था। चूँकि यह प्रयास मील का पत्थर था तो ' गिनिस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड ' का भी ध्यान इस तरफ जाना था। उपलब्धियों की इस वैश्विक किताब ने ' यादें ' को पहली इकलौती एक अभिनेता वाली फिल्म की अपनी सूचि में शामिल कर सम्मानित किया।
यादें ने दुनिया को फिल्मों की एक नयी श्रेणी और अनूठे फिल्म मेकिंग के तरीके से अवगत कराया था। इसकी प्रेरणा से हॉलीवुड ने भी विगत वर्षों में कई दिलचस्प और दर्शनीय ' एक पात्र ' वाली फिल्मे निर्मित की है। हॉलीवुड सिनेमाई इतिहास में सबसे लोकप्रिय और सफल फिल्मकार स्टीवन स्पीलबर्ग ने अपनी पहली फिल्म ' डुएल ' (1971) इकलौते पात्र डेनिस वीवर की मदद से बनाई थी। कैलिफ़ोर्निया की सुनसान घाटियों में नायक की कार एक दैत्याकार ट्रक से कुचलने के प्रयास से अपने को बचाने की कवायद के कथानक पर आधारित थी। साठ के दशक में अपनी सुंदरता और अभिनय से वैश्विक लोकप्रियता हासिल कर चुकी ' इंग्रिड बर्गमन ' ने ' द ह्यूमन वॉइस (1966) में एक ऐसी महिला का किरदार निभाया था जिसका प्रेमी उसे विवाह के ठीक एक दिन पहले किसी अन्य महिला के लिए छोड़ देता है। मात्र इक्यावन मिनिट की टेलीविजन के लिए बनी फिल्म भावनाओ का ऐसा ज्वार निर्मित करती है जिसके साथ बहने से दर्शक खुद को रोक नहीं पाता। एक मात्र पात्र अभिनीत फ्रेंच फिल्म ' द मैन हु स्लीप (1974) किसी व्यक्ति का बाहरी दुनिया से क्षणे क्षणे दूर होते जाने की प्रक्रिया को विस्तार से चित्रित करती है। यधपि कुछ फिल्मों में एक से ज्यादा पात्र रहे है परन्तु पूरी फिल्म केंद्रीय पात्र के आस पास ही घूमती है। रोबर्ट ज़ेमिकिस निर्देशित और टॉम हेंक अभिनीत ' कास्ट अवे (2000) ऐसी ही फिल्म है जिसका नायक निर्जन टापू पर फंसकर चार साल बिताता है। डेनी बॉयल निर्देशित '127 अवर (2010) आई एम् लीजेंड (2007) ग्रेविटी (2013 ) कुछ ऐसी फिल्मे है जिसमे दो तिहाई से ज्यादा समय तक कैमरा एक ही पात्र पर केंद्रित रहता है।
2005 में कन्नड़ फिल्म ' शांति ' गिनीस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल होने वाली दूसरी फिल्म बनी। बारागुरु रामचन्द्रप्पा लिखी और निर्देशित इस फिल्म की इकलौती किरदार कन्नड़ अभिनेत्री भावना थी। इकलौती कास्ट की श्रेणी में तमिल फिल्म ' कर्मा (2015) ने एक कदम आगे बढ़कर नया प्रयोग किया। मर्डर मिस्ट्री के कथानक और शानदार बैकग्राउंड संगीत की मदद से दर्शक को पलक भी न झपका देने को मजबूर कर देने वाली इस फिल्म का क्रेडिट सिर्फ एक लाइन का है। लेखक , निर्माता , निर्देशक और अभिनेता - आर अरविन्द। दो पात्रो के बीच घटित एक घंटे के वार्तालाप पर आधारित इस फिल्म को दूसरी बार देखने पर महसूस होता है कि एक ही अभिनेता ने दोनों भूमिका निभाई है। लगभग इसी तरह एक पात्र के इर्दगिर्द घूमती शुजीत सरकार की 2008 में निर्मित अमिताभ बच्चन अभिनीत ' शूबाइट ' 2019 में दर्शको तक पहुँच सकती है। कानूनी विवादों में फंसी इस फिल्म का कथानक यूनिवर्सल अपील लिए है इसलिए समय का अवरोध इसके कथानक को बासी नहीं होने देगा।
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