Sunday, June 17, 2018

लय ताल और फुटबॉल



विश्वकप फुटबॉल के मुकाबले रूस में आरम्भ हो चुके है। आगामी  15 जुलाई तक पाँचों महाद्विपों में इस तेज और खूबसूरत से लगने वाले खेल का जूनून दूसरी गतिविधियों पर ग्रहण लगा देगा। जब आप किसी स्टार खिलाडी को गेंद से अटखेलियां करते देखते है तो सोंचने पर मजबूर हो जाते है कि यह फुटबॉल ही है या कुछ और ! वे इसे एकदम से पास नहीं करते। वे इसे थोड़ी देर दुलारते है जैसे कोई संगीतज्ञ अपने सम पर पहुँचने से पहले धुनों को  साध रहा होता है। हमारे देश में ऐसे मौके कम ही आते है जब फूटबाल का कोई मैच अनजाने ही दिख जाए। यहां मैच देखने के लिए आपको किसी ख़ास चैनल को तलाशना होता है।  क्रिकेट की तरह भारत में  यह  खेल टेलीविजन पर  सर्वसुलभ नहीं है। अगर आपने फुटबॉल का एक भी मैच नहीं भी देखा है और दोनों ही टीमें आपके लिए अपरिचित है तो भी यह खेल आपको अपने साथ बहा ले जाता है।
नब्बे मिनिट के इस खेल में रोमांच के साथ गर्व , उल्लास और निराशा के अवसर कई बार आते है। किसी भी दर्शक के लिए इन अनुभवों से एक साथ गुजरना ही इस खेल के प्रति वैश्विक दिवानगी की वजह बना है। मनोभावों के  इतने  जबरदस्त उतार चढ़ाव की खूबियों के चलते ही इस खेल पर दुनिया में किसी और खेल की बनिस्बत सबसे ज्यादा फिल्मे बनी है। अकेले हॉलिवुड में ही फुटबॉल को केंद्र में रखकर निर्मित फिल्मों और टीवी शोज को एक जीवन में देख पाना संभव नहीं है। चुनिंदा अच्छी फुटबॉल  फिल्मों के लिए फिल्म प्रेमी  जब भी गूगल से सहायता लेते है तो उसकी सैकड़ों फेहरिस्तों में दो बेस्ट फिल्मे जरूर होती है। पहली ' बेंड इट  लाइक बेकहम ' और दूसरी ' ऑफ़साइड ' . 
भारतीय मूल की केन्या में जन्मी और अब ब्रिटिश नागरिक गुरिंदर चड्ढा की रोमेंटिक कॉमेडी ' बेंड इट लाइक बेकहम ( 2002 ) एक अठारह वर्षीय पंजाबी लड़की के फुटबॉल प्रेम  पर आधारित है।  जो अपने दकियानूसी परिवार की ईच्छा के खिलाफ जाकर लोकल टीम में खेलती है। बाद में उसका सिलेक्शन टॉप लीग में होता है। अपने समय मे किंवदंती बने ब्रिटिश फुटबॉलर डेविड बेकहम के नाम और उनकी प्रसिद्द फ्री किक से  प्रेरित यह फिल्म आज भी लोकप्रिय है। 
इसी तरह ईरानी फिल्मकार जफ़र पनाही की  ' ऑफ साइड ' (2006 ) फुटबॉल पर बनी अनूठी फिल्म है। इस फिल्म में फुटबॉल का एक भी दृश्य नहीं है। ईरान में महिलाओ को फूटबाल मैच  देखने की मनाही है। इस तथ्य के बावजूद पांच  लड़किया वर्ल्ड कप क्वालीफाई  के लिए हो रहे ईरान बहरीन मैच के दौरान लड़कों के वेश में स्टेडियम में प्रवेश कर जाती है। पुलिस इन लड़कियों को पहचान कर पकड़ लेती है।  मैच खत्म होने के बाद इन्हे थाने ले जाना तय होता है। इस दौरान इन्हे एक बाड़े में रोक दिया जाता है। पुलिस वाले भी खिन्न है कि वे भी मैच नहीं देख पा रहे है। एक गार्ड गेट के सुराख से मैच देखकर आँखों देखा हाल सुनाता जाता है। एक मजेदार दृश्य में एक लड़की टॉयलेट जाने की इच्छा जताती है , चूँकि स्टेडियम में लेडिस टॉयलेट नहीं है तो पुलिस जेंट्स  टॉयलेट से लोगों को धक्के मारकर निकालती है। ऑफ साइड ' कॉमेडी फिल्म होने के बावजूद खेल का पूरा रोमांच महसूस कराती है। पनाही ने दर्शकों के शोर और कमेंट्री सूना रहे गार्ड की मदद से ही फूटबाल का माहौल रच डाला है। ईरान सरकार ने इस फिल्म को सत्ता विरोधी माना और जफ़र पनाही को छे वर्ष के लिए जेल भेज दिया था। इतना ही नहीं उन पर बीस साल तक फिल्म निर्माण पर भी रोक लगा दी गई थी जिसे बाद में अंतर्राष्टीय हस्तक्षेप के बाद हटाया गया। 
भारत में गोवा और कोलकता में ही इस खेल को विशेष रूप से  पसंद किया जाता है। देश में  फूटबाल के बड़े मुकाबलों को भी पर्याप्त मीडिया  कवरेज नहीं मिलता इसलिए आम भारतीय भी  इस खेल को लेकर उदासीन ही रहे है। यही वजह है कि बॉलीवुड का भी इस पर  ध्यान नहीं गया। प्रकाश झा के निर्देशकीय कैरियर की शुरआत करने वाली -राजकिरण , दीप्ति नवल अभिनीत  ' हिप हिप हुर्रे ( 1984 ) और जॉन अब्राहम -अरशद वारसी अभिनीत ' दे धना धन गोल ' (2007 ) के अलावा बॉलीवुड में फुटबॉल के लिए कुछ भी नहीं है। 

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