नब्बे मिनिट के इस खेल में रोमांच के साथ गर्व , उल्लास और निराशा के अवसर कई बार आते है। किसी भी दर्शक के लिए इन अनुभवों से एक साथ गुजरना ही इस खेल के प्रति वैश्विक दिवानगी की वजह बना है। मनोभावों के इतने जबरदस्त उतार चढ़ाव की खूबियों के चलते ही इस खेल पर दुनिया में किसी और खेल की बनिस्बत सबसे ज्यादा फिल्मे बनी है। अकेले हॉलिवुड में ही फुटबॉल को केंद्र में रखकर निर्मित फिल्मों और टीवी शोज को एक जीवन में देख पाना संभव नहीं है। चुनिंदा अच्छी फुटबॉल फिल्मों के लिए फिल्म प्रेमी जब भी गूगल से सहायता लेते है तो उसकी सैकड़ों फेहरिस्तों में दो बेस्ट फिल्मे जरूर होती है। पहली ' बेंड इट लाइक बेकहम ' और दूसरी ' ऑफ़साइड ' .
भारतीय मूल की केन्या में जन्मी और अब ब्रिटिश नागरिक गुरिंदर चड्ढा की रोमेंटिक कॉमेडी ' बेंड इट लाइक बेकहम ( 2002 ) एक अठारह वर्षीय पंजाबी लड़की के फुटबॉल प्रेम पर आधारित है। जो अपने दकियानूसी परिवार की ईच्छा के खिलाफ जाकर लोकल टीम में खेलती है। बाद में उसका सिलेक्शन टॉप लीग में होता है। अपने समय मे किंवदंती बने ब्रिटिश फुटबॉलर डेविड बेकहम के नाम और उनकी प्रसिद्द फ्री किक से प्रेरित यह फिल्म आज भी लोकप्रिय है।
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भारत में गोवा और कोलकता में ही इस खेल को विशेष रूप से पसंद किया जाता है। देश में फूटबाल के बड़े मुकाबलों को भी पर्याप्त मीडिया कवरेज नहीं मिलता इसलिए आम भारतीय भी इस खेल को लेकर उदासीन ही रहे है। यही वजह है कि बॉलीवुड का भी इस पर ध्यान नहीं गया। प्रकाश झा के निर्देशकीय कैरियर की शुरआत करने वाली -राजकिरण , दीप्ति नवल अभिनीत ' हिप हिप हुर्रे ( 1984 ) और जॉन अब्राहम -अरशद वारसी अभिनीत ' दे धना धन गोल ' (2007 ) के अलावा बॉलीवुड में फुटबॉल के लिए कुछ भी नहीं है।
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