Saturday, January 13, 2018

चीन अब रेडियो के माध्यम से भी घुस आया है घर में

जो लोग आज भी रेडियो के कायल है और  उन्हें जिस समस्या से जूझना पड़ रहा है उसे टीवी के दर्शक नहीं समझ सकते। रेडियो की शॉर्टवेव फ्रीक्वेंसी पर बाल बराबर अंतर से चीनी कार्यक्रमों की भरमार हो गई है। आप सुबह बीबीसी सुनने के लिए ट्यून करते है या रेडियो सीलोन पर पुराने गीत सुनना चाहते है या दोपहर में शहद घुली उर्दू सर्विस के कार्यक्रम सुनना चाहते है तो सबसे पहले आपको नासा के वैज्ञानिकों के परफेक्शन की तरह रेडियो की सुई को सेट करना होता है। एक डिग्री के दसवे भाग बराबर भी सुई इधर उधर हुई कि चीनी आपके घर में घुसपैठ कर जाते है। पांच बरस पहले ऐसा नहीं था।  जब से चीन ने अपने आप को वैश्विक स्तर पर पसारने की महत्वाकांक्षा को आकार दिया है तब से उसने कोई भी विकल्प नहीं छोड़ा है।  
डोनाल्ड ट्रम्प के  ' अमेरिका फर्स्ट ' आव्हान के बाद चीन के सपनों में पंख लग गए है।  वन बेल्ट वन रोड , डोकलाम में सड़क , पाकिस्तान , श्रीलंका में बंदरगाह , नेपाल अफगानिस्तान को भारी वित्तीय मदद , भारत को घेरने के  चीनी मंसूबों की छोटी सी फेहरिस्त है। भारतीय प्रायद्वीप में अपनी उपस्तिथि बढ़ाने के लिए  चीनी अपने सस्ते प्रोडक्ट के अलावा मुफ्त की रेडियो तरंगों का भी सहारा ले रहे है। अलसाये हिमालय के उस पार से रेडियो तरंगे नेपाल पहुँचती है और नेपाल में स्थापित 200 से अधिक रेडियो स्टेशन अंग्रेजी , हिंदी , नेपाली , और मैंडरिन भाषा में उन्हें भारतीय आकाश में फैला देते है। भारत में घटने वाली घटनाये हो या अंतराष्ट्रीय - चीनी अपने समाचारों में अपना दृष्टिकोण मिला कर परोस देते है। बीबीसी अंग्रेजी और  हिंदी के कार्यक्रमों की तरह चीनी कार्यक्रमों  का लहजा इतना सटीक और मिलता जुलता  होता है कि बरसों से इन्हे सुनने वाला श्रोता भी चकरा जाता है। 
2011 में भारत और चीन में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की संख्या नौ हजार के आसपास थी। भारत  पिछले पांच सालों से इसी संख्या पर टिका हुआ है परन्तु चीन ने हॉलीवुड को टक्कर देने की रणनीति पर चलते हुए इस संख्या को चालीस हजार पर पहुंचा दिया है। चीनी फिल्म उद्योग हॉलीवुड की फिल्मों की वजह  से पनप नहीं पा रहा था। चीनियों ने घरेलु माहौल को सुधारते हुए हॉलीवुड की बराबरी करने का प्रयास किया है।चीन इस तथ्य से भी परिचित है कि गुणवत्ता के स्तर पर वह अमेरिकन फिल्मों के सामने टिक नहीं सकता लिहाजा  मौजूदा वक्त में हॉलीवुड की नवीनतम फिल्मों को चीन में भारी इंट्री फीस चुकाकर प्रवेश दिया जा रहा है। चीनियों को फिलहाल बॉलीवुड से कोई खतरा नजर नहीं आता क्योंकि दोनों देशों की सांस्कृतिक पृष्टभूमि  एक दूसरे से उलट है। इसलिए रेडियो के जरिये भारत के घरों  में प्रवेश किया जा रहा है।  
2016 में प्रकाशित वैश्विक बॉक्स ऑफिस की रिपोर्ट के आंकड़ों से भी  चीनी महत्वाकांक्षा को समझा जा सकता है। वैश्विक सिनेमा का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन  इस वर्ष 38. 6 अरब डॉलर था जिसमे चीन की बड़ी हिस्सेदारी थी। इस सर्वे में हॉलीवुड दूसरे और बॉलीवुड तीसरे क्रम पर रहा। 
भारत को अब अपनी सीमाओं के साथ अदृश्य रेडियो तरंगों का भी ख्याल रखना

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