Tuesday, April 18, 2017

आधा किलोमीटर दूर मयकदा



हमारे देश में हास्य और आनद की सीमा शुष्क राजनेता और अदालते तय करते है। कैसे कपडे पहनना है कैसा भोजन करना है , क्या नहीं करना है जैसी बाते हमारे वोटो से चुने गए जनप्रतिनिधि तय करते है।  कोई भी नियम कायदा लागू करने में इतनी हड़बड़ाहट होती कि उसके प्रभावों पर कोई पूर्व अध्यन नहीं किया जाता। गत  नवंबर में आई नोट बंदी और एक अप्रैल को राजमार्गो पर आई  शराब बंदी से सरकार और अदालतों की यही कमजोरी सामने आई है . वैश्विक रिसर्च संस्था ' क्रिसिल ' ने शराब की दुकानों और शराब परोसने वाली होटलो को राज मार्ग से पांच सो मीटर दूर जाने के आदेश के बाद उत्पन्न प्रभावों का अध्ययन किया है। क्रिसिल आमतौर पर शेयर बाजार में कंपनियों और निवेशकों को आसन्न संकट और जोखिम की चेतावनी देने का काम करती है। क्रिसिल का यह आकलन देश के
प्रीमियम होटल और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर ( सेवा सत्कार उद्योग ) के लिए किया गया है।
इस रिपोर्ट के अनुसार देश के 12 प्रमुख शहरो में सुप्रीम कोर्ट का आदेश गाज बनकर गिरा है। देश के 384 बड़े होटल ( 3 स्टार , 5 स्टार ) इस निर्णय से हलकान हुए है। क्रिसिल ने प्रभावित होटलों को प्रतिशत में समझाया है। सर्वाधिक प्रभावित पुणे रहा है जहाँ 71 प्रतिशत होटल राजमार्ग पर होने से शराब नहीं परोस पाएंगे। कोलकता के राष्ट्रीय  राजमार्ग 12 पर 69 प्रतिशत , आगरा के 67 प्रतिशत , चेन्नई के 48 प्रतिशत होटलों की आय इस आदेश के बाद गिरकर आधी रह गई है।  इस फहरिस्त मे दिल्ली , मुंबई,  हैदराबाद ,बंगलौर भी शामिल है।  अकेले महाराष्ट्र में इस निर्णय के बाद आठ लाख लोग रोजगार से वंचित हो गए है। देश में रोजगार उपलब्ध कराने वाले क्षेत्रों में पर्यटन और  सत्कार उद्योग चार करोड़ नौकरिया पैदा  करता है। इस क्षेत्र के साथ अगर छेड़छाड़ नहीं होती तो यह उद्द्योग 2 प्रतिशत की दर से बढ़ते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में महत्वपूर्ण योगदान देता। 
माननीय अदालत ने इस निर्णय को लागू करते समय कुछ पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया। उनके निर्णय में यह भी है कि ये दुकाने या होटल अपने स्थान परिवर्तन का विज्ञापन भी नहीं करेगी। अदालत को इस बात का संज्ञान होना चाहिए कि  'गूगल मैप ' पचास मीटर के दायरे में आने वाली जगहों और स्थानों की सटीक जानकारी दे देता है। उसे वह कैसे रोकेगी ? अधिकांश वाहन जी पी एस से लेस होते है। 
देश में प्रतिवर्ष 464789  सड़क दुर्घटनाये होती है जिसमे शराब से होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या महज ढेड़ प्रतिशत है।  इस ढेड़ प्रतिशत को कड़े  दंडात्मक प्रावधानों से रोका जा सकता था। सरकार स्वास्थ और शिक्षा पर जो पैसा खर्च करती है उसमे बहुत बड़ा हिस्सा शराब से प्राप्त राजस्व का होता है।इस नुक्सान की भरपाई कैसे होगी , माननीय अदालत को इस पर भी गौर करना चाहिए था। 

2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंजू बॉबी जॉर्ज और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. सम्भवतः इस निर्णय का लाभ अभी समझ में नहीं आ रहा है

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