कुछ कहानियों का अंत शुरुआत में ही तय हो जाता है। ऐसी कहानिया पाठकों की जिज्ञासा के तनाव को कम कर देती है। कुछ दर्शको का फिल्म के अनपेक्षित एंडिंग पर ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। दर्शको का एक बड़ा वर्ग ' हैप्पी एंडिंग ' वाली फिल्मे देखना ज्यादा पसंद करता है। इस तरह की फिल्मे बनाने वाले बड़जात्या घराने ( राजश्री पिक्चर्स ) ने दर्जनों फिल्मे बनाई है ( मेने प्यार किया , हम आपके है कौन , हम साथ साथ है , वगैहरा वगैहरा। बहरहाल , इस कॉलम में आज हम फिल्मो की बात नहीं करेंगे। बात होगी शिवसेना और उनके सांसद रविंद्र गायकवाड़ की। एक पखवाड़े पूर्व एयर इंडिया की फ्लाइट में इन सांसद महोदय ने एक सीनियर कर्मचारी को मनपसंद सीट न मिलने पर बुरी तरह पीट दिया था। सांसद को अपनी ताकत का अंदाजा था कि उनपर कोई चार्ज नहीं लगेगा। लिहाजा टीवी कैमरे पर उन्होंने दबंगई से अपनी वीरता का बखान भी किया। इन पंद्रह दिनों में गायकवाड़ पर दर्जनों लेख , संपादकीय लिख कर सैकड़ों टन अखबारी कागज़ बर्बाद हुआ। दर्जनों न्यूज़ चैनल ने अपने हजारो घंटे सांसद की मर्यादा और नैतिकता बताने में खर्च कर दिए। लेकिन सयाने जानते थे कि कुछ नहीं होगा , और वही हुआ भी। रविंद्र गायकवाड़ को माफ़ कर दिया गया। इस कहानी में किसी साधारण पैसेंजर को रख कर देखिये। क्या वह भी इसी तरह माफ़ कर दिया जाता ? शायद कभी नहीं !
अगर आप सोंचते है कि शिवसेना की धमकी '' मुंबई से एक भी विमान नहीं उड़ने देंगे '' की वजह से ऐसा हुआ है ? तो आप बिलकुल नादान है। शिवसेना इस समय जिस मुकाम पर है वहां से वह केंद्र सरकार की जब चाहे बांह मरोड़ सकती है। महाराष्ट्र में देवेंद्र फड़नवीस की सरकार सेना की बैसाखी पर टिकी हुई है। भाजपा के अश्व मेघ यज्ञ का घोडा जुलाई तक निर्विध्न दौड़ता रहे इसके लिए भी शिवसेना को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता। क्योंकि अगला राष्ट्रपति भाजपा का हो और शिवसेना साथ न हो तो बना बनाया खेल बिगड़ सकता है।
'' जो चाहते है पा कर रहते है '' शिवसेना की टैग लाइन हो सकती है। मराठी मानुस के नाम पर जब चाहा मुंबई को ठप कर देने वाली सेना की उपलब्धियों के फेहरिस्त लम्बी है। 2003 में सचिन तेंडुलकर को मिली फरारी कार पर तत्कालीन एन डी ए सरकार ने सवा करोड़ की एक्साइज ड्यूटी लगाईं तो सचिन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा से मिलने के बजाये ' मातो श्री ' पहुँच गए। हालांकि उनकी माली हालत तब भी इतनी थी कि वे ऐसी दस कार खरीद कर अपनी जेब से टैक्स भर सकते थे। बाल ठाकरे के एक टेलीफोन काल ने भारत सरकार को हिला कर रख दिया और सचिन को टेक्स में छूट मिल गई। जया बच्चन ने एक कार्यक्रम में मराठी के बजाय हिंदी में भाषण दिया। मंच पर राज ठाकरे भी थे। इस गुस्ताखी की सजा अमिताभ की इंग्लिश फिल्म '' द लास्ट लिअर ''के पोस्टरों और होर्डिंग को भुगतना पड़ी। विनम्र महानायक अपनी जिंदगी में पहली बार किसी से माफ़ी मांगते देखे गए।
इस लेख का 'लुब्बे लुआब ' यह है कि जाओ रविंद्र हमने तुम्हे तुम्हारी शर्तो पर माफ़ किया ! कानून आम लोगों के लिए है और तुम कानून से ऊपर हो।
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