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वैज्ञानिकों की चिंता जायज है क्योंकि सवाल मानव के अस्तित्व से जुड़ा है । जब बात ऊंचाई से जुडी है तो कुछ सामाजिक संदर्भो से जुडी संस्थाओ की बात भी होनी चाहिये क्योंकि नैतिकता और आत्मसम्मान के शिखर भी लगातार ध्वस्त हो रहे है ।
दुनिया का सबसे बड़ा और अमीर भारतीय क्रिकेट बोर्ड पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवासन की हरकतों के चलते इतना विवादस्पद हो गया कि इसकी दुरस्ती में सुप्रीम कोर्ट को पसीना बहाना पड़ रहा है। पहलाज निहलानी के ' संस्कारी उसूलो ' ने सेंसर बोर्ड की छीछालेदार कराने में कसर नहीं छोड़ी । यही हाल महाभारत धारावाहिक के पात्र युधिष्ठिर धर्मेन्द्र चौहान ने पुणे फ़िल्म इंस्टिट्यूट का किया है । नोटबंदी के बाद सबसे ज्यादा उँगलियाँ रिज़र्व बैंक की निष्पक्षता पर उठी । ज्ञात इतिहास में रिज़र्व बैंक पर कभी चुटकुले नहीं बने थे ।
पदम् पुरूस्कार अपनी शुरआत से ही नकारात्मक चर्चा बटोरते रहे है ।हरेक सरकार ने इन्हें अपनों को रेवड़ी की तरह बांटा है । नाकाबिल शख्सियतों ने इन राष्ट्रीय पुरुस्कारों के दामन पर कालिख लगाकर इनका महत्व हल्का कर दिया है। मेघालय के राज्यपाल के अशालीन व्यवहार ने राजभवन की अस्मिता जमीन पर ला पटकी । पहली बार किसी राजभवन के कर्मचारियों को राष्ट्रपति से राज्यपाल को हटाने की गुहार लगानी पड़ी ।पूर्व में एन डी तिवारी यही कारनामा आंध्रप्रदेश राजभवन में कर निलंबित हो चुके है ।
नए शिखर कीर्तिमान बनाना संभव है परंतु पुराने को सहेजने कीजवाबदारी भी हरेक पीढ़ी की है । ताजा दौर ' भक्ति काल ' का है । नेहरू गांधी विरासत को ख़ारिज कर उग्रराष्ट्रवाद के बीज बोये जा रहे है । नेहरू जैकेट और गांधी चरखे से कद बढ़ाया जा रहा है स्कूल की किताबो को फिर से लिखा जा रहा है, पुराने नाम मिटाये जा रहे है । बोन्साई को बरगद की जगह लगाया जा रहा है । इतिहास बनाने के बजाय लिखा जा रहा है । इस दौर की यही विडंबना है ।
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