एक दिलचस्प सच है झूठ बोलना । हम सभी अक्सर झूठ बोलते है । यूँ तो तो झूठ बोलना अच्छी बात नहीं मानी जाती परंतु कुछ परस्थितियों में झूठ की मदद से बिगड़े काम संवर जाते है । सामाजिक व्यवहार में कई बार झूठ का सहारा लेना जरुरी हो जाता है क्योंकि कड़वे सच से ज्यादा फायदेमंद मीठा झूठ हालात को संभाल लेता है ।
चूंकि हम समाज का हिस्सा है और हमारे जैसे लोगों से ही समाज को चलाने वाली संस्थाये बनती है तो उम्मीद की जाती है कि इन संस्थाओ में विराजित लोग ' आटे में नमक समाये ' जितना ही झूठ बोलेंगे , उससे ज्यादा नहीं ।
अफ़सोस ऐसा होता नहीं ! अदालतों में पवित्र ग्रंथ हाथ में लेकर भी लोग धड्ड्ले सच का क़त्ल करते रहते है । झुठो की पैरवी करते है । संसद में अपनी व्यक्तिगत जानकारी शेयर करने में भी कुछ लोगों को परेशानी होती है । गलत आंकड़ों के बल पर कई लोग राजयोग भोगते हुए सदाचारी बने रहते है ।
2014 में फेसबुक के जन्मदाता मार्क जुकरबर्ग भारत आये थे । वसुंधरा राजे सरकार ने उन्हें राजस्थान के एक गाँव का भ्रमण कराया जो कि पूर्णतया कंप्यूटर का उपयोग कर रहा था । जुकरबर्ग भारत की कामयाबी से झूम उठे । आज एक अखबार ने उस गाँव चंदौली का ' स्टिंग ऑपरेशन ' किया । गाँव के लोग कंप्यूटर के बारे में कुछ नहीं जानते । जुकेरबर्ग ने जो देखा था वह नन्यान्वे फीसदी झूठ था । एक अंतर्राष्ट्रीय झूठ । लालकिले की प्राचीर से अतिउत्साही मोदी ने घोषणा की कि उत्तर प्रदेश का एक गांव सत्तर साल में पहली बार बिजली से रोशन हो रहा है । उनके झूठ के पैर लंबे नहीं थे । सूरज ढलने से पहले ही खबर आगई कि अखिलेश यादव दो साल पहले ही उसे रोशन कर चुके थे । धर्म गुरु आसाराम जेल से निकलने के लिए इतनी बार झूठ बोल चुके है कि अदालत ने उनपर एक लाख रूपये का जुर्माना लगा दिया । हर खासो आम जिनकी पार्टियों में जाने को बेक़रार रहता था ऐसे सहारा श्री झूठ बोलने की वजह से सुप्रीम कोर्ट के खासे निशाने पर है ।
नब्बे के दशक के खाड़ी युद्ध के खलनायक सद्दाम हुसैन अमरीकी सरकार के लिये गले की फाँस बने हुए थे । अचानक मीडिया में उनके बारे में खुलासा होने लगा कि उन्होंने व्यापक विनाश के रासायनिक हथियार बना लिये है । चूँकि अमेरिका ने अपने आपको दुनिया का तारणहार मान रखा है तो ईराक को नेस्तनाबूत करना न्यायोचित मानने में किसी को भी परेशानी नहीं हुई । देढ़ लाख इराकी , पांच हजार अमेरिकी जान जाने के बाद आज तक वे सामूहिक विनाश के हथियार किसी को नहीं मिले । तत्कालीन इराकी कठपुतली सरकार को भी नहीं , जिसकी डोर वाइट हाउस के हाथों में थी ।
फणीश्वर नाथ रेणु की लिखी कहानी ' मारे गए गुलफाम ' पर आधारित फ़िल्म ' तीसरी कसम ' का भोलाभाला नायक आज भी रेडियो सिलोन पर गुहार लगाता मिल जाता है '' सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है '' लोग इस मनभावन गीत कोआज भी गुनगुनाते जरूर है परंतु अमल में नहीं लाते ।
चूंकि हम समाज का हिस्सा है और हमारे जैसे लोगों से ही समाज को चलाने वाली संस्थाये बनती है तो उम्मीद की जाती है कि इन संस्थाओ में विराजित लोग ' आटे में नमक समाये ' जितना ही झूठ बोलेंगे , उससे ज्यादा नहीं ।
अफ़सोस ऐसा होता नहीं ! अदालतों में पवित्र ग्रंथ हाथ में लेकर भी लोग धड्ड्ले सच का क़त्ल करते रहते है । झुठो की पैरवी करते है । संसद में अपनी व्यक्तिगत जानकारी शेयर करने में भी कुछ लोगों को परेशानी होती है । गलत आंकड़ों के बल पर कई लोग राजयोग भोगते हुए सदाचारी बने रहते है ।
2014 में फेसबुक के जन्मदाता मार्क जुकरबर्ग भारत आये थे । वसुंधरा राजे सरकार ने उन्हें राजस्थान के एक गाँव का भ्रमण कराया जो कि पूर्णतया कंप्यूटर का उपयोग कर रहा था । जुकरबर्ग भारत की कामयाबी से झूम उठे । आज एक अखबार ने उस गाँव चंदौली का ' स्टिंग ऑपरेशन ' किया । गाँव के लोग कंप्यूटर के बारे में कुछ नहीं जानते । जुकेरबर्ग ने जो देखा था वह नन्यान्वे फीसदी झूठ था । एक अंतर्राष्ट्रीय झूठ । लालकिले की प्राचीर से अतिउत्साही मोदी ने घोषणा की कि उत्तर प्रदेश का एक गांव सत्तर साल में पहली बार बिजली से रोशन हो रहा है । उनके झूठ के पैर लंबे नहीं थे । सूरज ढलने से पहले ही खबर आगई कि अखिलेश यादव दो साल पहले ही उसे रोशन कर चुके थे । धर्म गुरु आसाराम जेल से निकलने के लिए इतनी बार झूठ बोल चुके है कि अदालत ने उनपर एक लाख रूपये का जुर्माना लगा दिया । हर खासो आम जिनकी पार्टियों में जाने को बेक़रार रहता था ऐसे सहारा श्री झूठ बोलने की वजह से सुप्रीम कोर्ट के खासे निशाने पर है ।
नब्बे के दशक के खाड़ी युद्ध के खलनायक सद्दाम हुसैन अमरीकी सरकार के लिये गले की फाँस बने हुए थे । अचानक मीडिया में उनके बारे में खुलासा होने लगा कि उन्होंने व्यापक विनाश के रासायनिक हथियार बना लिये है । चूँकि अमेरिका ने अपने आपको दुनिया का तारणहार मान रखा है तो ईराक को नेस्तनाबूत करना न्यायोचित मानने में किसी को भी परेशानी नहीं हुई । देढ़ लाख इराकी , पांच हजार अमेरिकी जान जाने के बाद आज तक वे सामूहिक विनाश के हथियार किसी को नहीं मिले । तत्कालीन इराकी कठपुतली सरकार को भी नहीं , जिसकी डोर वाइट हाउस के हाथों में थी ।
फणीश्वर नाथ रेणु की लिखी कहानी ' मारे गए गुलफाम ' पर आधारित फ़िल्म ' तीसरी कसम ' का भोलाभाला नायक आज भी रेडियो सिलोन पर गुहार लगाता मिल जाता है '' सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है '' लोग इस मनभावन गीत कोआज भी गुनगुनाते जरूर है परंतु अमल में नहीं लाते ।
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