उगते सूरज के देश जापान में पिछले दिनों विचित्र घटना हुई। जापान के सम्राट अकिहितो ने पद त्यागने की इच्छा जाहिर की। सिसमिक झोन पर बसे जापान के निवासियों के लिए यह खबर बड़े भूकंप से कम नहीं थी।टेक्नोलॉजी का शिखर छू रहे देश के लोगों का इस तरह भावुक हो जाना अजीब लगता है। परंतु यही इस देश की विशेषता भी है। गौतम बुद्ध भारत में जन्मे परंतु जापान ने उन्हें आत्मसात किया। तरक्की की इन्तेहा ,अध्यात्म की गहराई और परम्पराओ का निर्वहन -आधुनिक जापान की जीवन शैली है।
जन मान्यता के अनुसार सम्राट अकिहितो के पूर्वज सूरज देवी के वंशज माने जाते है।(भारत में सूरज को देवता मानकर पूजा जाता है जापानी उन्हें स्त्री रूप मे पूजते है ) जापानी सम्राट को कोई संवैधानिक पद प्राप्त नहीं है परंतु बावजूद इसके वे देश के सर्वोच्च नागरिक माने जाते है। जो दर्जा भारत में राष्ट्रपति को है वही स्थान सम्राट अकिहितो का है।
सम्राट के पद त्याग से जनता का यूँ व्याकुल हो जाना समझ में आता है। उनकी लोकप्रियता के कई कारणों में सबसे प्रमुख है किसी भी दुर्घटना के बाद उनका आम जनता के बीच पहुंचना। अपनी इसी खूबी की वजह से वे आज तक आमजन में अपनी जगह बनाये हुए है। तेरासी साल की उम्र में अकिहितो स्वास्थ कारणों से रिटायर होना चाहते है परंतु दो तिहाई देश उन्हें बने रहने की मनुहार कर रहा है।
हम भारतीयों को यह बात कभी समझ नहीं आएगी। हमने बहुत कम लोगों को पद त्याग करते देखा है। हमारे यहां कोई रिटायर नहीं होना चाहता। वानप्रस्थ की कल्पना हमारे यहाँ केवल आख्यानों में है। बुजुर्ग नेता अपमानित होने की अवस्था तक पद त्याग नहीं करना चाहते। कहने को हम लोकतंत्र का ऊंचा झंडा उठाये हुए है परंतु अनुसरण राजशाही का करते है। वयोवृद्ध राजनेता इस बात को जानते हुए भी कि उसके वारिस में काबलियत नहीं है , अपनी गद्दी पर बैठा देखना चाहते है। इस परंपरा को चलाये रखने में अब तक गांधी परिवार बदनाम था परन्तु पिछले कुछ वर्षों में पचास से ज्यादा राजनीतिक परिवारों के नाम सामने आने लगे है। ठाकरे परिवार से लेकर यादव परिवार तक आप अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाने के लिए स्वतंत्र है।
जापानी सम्राट जैसे पद त्याग के उदाहरण हमारे लिए किस्से कहानियों से ज्यादा मायने नहीं रखते। हमारी मौजूदा राजनीतिक परिस्तिथिया भी हमें इस तरह के कड़वे निर्णय लेने की इजाजत नहीं देती।
माफ़ करना सम्राट हम इस प्रसंग को भूल जाना चाहेंगे !!
जन मान्यता के अनुसार सम्राट अकिहितो के पूर्वज सूरज देवी के वंशज माने जाते है।(भारत में सूरज को देवता मानकर पूजा जाता है जापानी उन्हें स्त्री रूप मे पूजते है ) जापानी सम्राट को कोई संवैधानिक पद प्राप्त नहीं है परंतु बावजूद इसके वे देश के सर्वोच्च नागरिक माने जाते है। जो दर्जा भारत में राष्ट्रपति को है वही स्थान सम्राट अकिहितो का है।
सम्राट के पद त्याग से जनता का यूँ व्याकुल हो जाना समझ में आता है। उनकी लोकप्रियता के कई कारणों में सबसे प्रमुख है किसी भी दुर्घटना के बाद उनका आम जनता के बीच पहुंचना। अपनी इसी खूबी की वजह से वे आज तक आमजन में अपनी जगह बनाये हुए है। तेरासी साल की उम्र में अकिहितो स्वास्थ कारणों से रिटायर होना चाहते है परंतु दो तिहाई देश उन्हें बने रहने की मनुहार कर रहा है।
हम भारतीयों को यह बात कभी समझ नहीं आएगी। हमने बहुत कम लोगों को पद त्याग करते देखा है। हमारे यहां कोई रिटायर नहीं होना चाहता। वानप्रस्थ की कल्पना हमारे यहाँ केवल आख्यानों में है। बुजुर्ग नेता अपमानित होने की अवस्था तक पद त्याग नहीं करना चाहते। कहने को हम लोकतंत्र का ऊंचा झंडा उठाये हुए है परंतु अनुसरण राजशाही का करते है। वयोवृद्ध राजनेता इस बात को जानते हुए भी कि उसके वारिस में काबलियत नहीं है , अपनी गद्दी पर बैठा देखना चाहते है। इस परंपरा को चलाये रखने में अब तक गांधी परिवार बदनाम था परन्तु पिछले कुछ वर्षों में पचास से ज्यादा राजनीतिक परिवारों के नाम सामने आने लगे है। ठाकरे परिवार से लेकर यादव परिवार तक आप अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाने के लिए स्वतंत्र है।
जापानी सम्राट जैसे पद त्याग के उदाहरण हमारे लिए किस्से कहानियों से ज्यादा मायने नहीं रखते। हमारी मौजूदा राजनीतिक परिस्तिथिया भी हमें इस तरह के कड़वे निर्णय लेने की इजाजत नहीं देती।
माफ़ करना सम्राट हम इस प्रसंग को भूल जाना चाहेंगे !!