यह बात मुझे बहुत ही अफ़सोस के साथ कहना पड़ रही है कि आरएसएस और स्वदेशी जागरण मंच द्वारा राष्ट्रभक्ति की भावना से चलाया गया ' बॉयकॉट चाइना ' अभियान सफल नहीं रहा। दिवाली पूर्व इस तरह के आंकड़े ' व्हाट्सएप्प ' और 'फेसबुक ' पर इफरात से घोंषणा कर रहे थे कि इस अभियान से प्रेरित हो कर देशवासियों के बहिष्कार से चीनी सामान के आयात में सत्तर प्रतिशत की गिरावट आगई है और जल्दी ही चीनी प्रधानमंत्री घुटनों के बल बैठकर भारत से दया की भीख मांगने वाले है। जैसा की सभी जानते है , इन सोशल नेटवर्किंग साइट पर गंभीर चर्चाये कम ही होती है। खूबसूरती से लिखे गए इन संदेशों की हकीकत स्वयं भारत सरकार ने जाहिर करदी है। भारत में चीनी सामान का आयात 7 % की दर से बढ़ रहा है। इस बात की पुष्टि कॉमर्स मिनिस्टर निर्मला सीतारमण के बयानों से भी होती जो उन्होंने नवम्बर में संसद में दिया था। 2016 में भारत ने चीन से 81 अरब डॉलर का आयात किया है।
बॉयकॉट चाइना अभियान के संचालकों का आग्रह था कि चीनी सामान का बहिष्कार करके देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को देश के विकास में लगाया जा सकता है। लेकिन विदेश व्यापार के जानकारों का कहना है कि आप इस तरह किसी भी देश की वस्तुओ को इस तरह बहिष्कृत नहीं कर सकते। चीन भी भारत की तरह वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन ( WTO ) का प्रतिबद्ध मेंबर है। दो सदस्य देशों के बीच व्यापार रोकने के लिए अहम् सबूतों की जरुरत होती है। जिसे फिलहाल भारत जुटा नहीं सकता।
दूसरी और अभी हम स्वयं अपने पैरो पर खड़े होने की स्थिति में नहीं है। मिसाल के तौर पर हमारा टेलीकॉम सेक्टर अपनी जरुरत का 65 % और मेडिकल सेक्टर ( दवाइयां ) 100% चीन पर निर्भर है। गौर तलब है कि जो देश दुनिया की जरुरत के आधे कंप्यूटर ,दो तिहाई मोबाइल हैंडसेट और साठ प्रतिशत खिलोने बनाता हो उसे सिर्फ नारेबाजी से दरकिनार नहीं किया जा सकता ।
मेड इन चाइना से लड़ने का सिर्फ एक मात्र शॉर्टकट हमारी आत्मनिर्भरता हो सकती है। हम यहां चीन की ही पॉलिसियों की नक़ल कर अपने आधारभूत ढाँचे को मजबूत बना सकते है . भारत से पांच गुना बड़ी अर्थव्यवस्था को महज उन्मादी राष्ट्रभक्ति और नारेबाजी से परास्त नहीं किया जा सकता। हमें बातों के अलावा काम भी करना होगा।
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