
इस प्रतिकूल हालात के जिम्मेवार स्वयं डोनाल्ड थे।
अपने नामांकन से लेकर वाइट हाउस में दाखिल होने तक ट्रम्प को अपने देश के साथ पूरी दुनिया से जोरदार विरोध झेलना पड़ रहा है। वजह- उनके बयान जिन्होंने सारा वातावरण खराब किया। बात यही ख़त्म नहीं होती , उनकी अपरिपक्व कार्य शैली भी उनके खिलाफ बन रहे विरोध का कारण बनती जा रही है। विशिष्ट सलाहकार के रूप में दामाद का चयन , मेक्सिको और यूरोप में डर पैदा कर देना , यू एन ओ और नाटो से रिश्ते ख़त्म कर देने की धौंस , ताइवान को तवज्जो देकर चीन को चिड़ा देना , मीडिया और महिलाओ के खिलाफ हल्के शब्दो का प्रयोग , एशियाई मूल के लोगों से काम छीन कर अमेरिकियों को देने का वादा जैसी कई बाते है जो उनकी डरावनी इमेज को गहरा रही है।
अमेरिकी राजनीति पर तीखे लेख प्रकाशित करने वाली वेब पत्रिका ' द इंटरसेप्ट ' ने उनके शपथ समारोह की तुलना बराक ओबामा के सत्तारोहण से करते हुए दिलचस्प आंकड़े जुटाए है। ओबामा की शपथ में मात्र दो अरबपति शामिल हुए थे जबकि ट्रम्प के साथ अरबपति मित्रों की भीड़ थी। इंटरसेप्ट लिखता है कि ट्रम्प ' बर्बर पूंजीवाद ' की पैदाइश है उनसे 'आम अमेरिकियों ' के राष्ट्रपति बनने की उम्मीद करना बेमानी है। ट्रम्प जिस आलिशान 'ट्रम्प टावर ' में निवास करते थे उसके सामने वाइट हाउस की हैसियत सरकारी गेस्ट हाउस से ज्यादा की नहीं है।
इस समय दुनिया के सामने एक नोसिखिये राष्ट्रपति को सहन करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है। वे रोज एक फैसले को पलटेंगे रोज एक नया दुश्मन बनायेगे। ट्रम्प को समझने के लिए फिल्म '' चौहदवीं का चाँद '' का गीत ' बदले बदले से मेरे सरकार नजर आते है , घर की बरबादी के आसार नजर आते है - सुनना जरुरी है।
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