सरकार ' आत्म मुग्ध ' महिला की तरह होती है। किसी भी काल की सरकार को आप इस कसौटी पर परख सकते है ।कोई भी आत्म मुग्ध महिला कभी इस बात को स्वीकार नहीं करेगी कि वह सामान्य शक्ल सूरत की है और दुनिया में प्रभावशाली व्यक्तित्व के लोग बहुतायत में है। वह हमेशा अपनी खूबियों का ही बखान करेगी और इस बात पर जोर देगी कि उस जैसा दूजा नहीं है।
सरकारे अपने आंकड़ों पर मोहित रहती है। उसे अपने फिगर पर इतना नाज रहता है कि उसके खिलाफ बोलने वाला ' गुस्ताख़ ' माना जाता है। पूरी सरकारी मशीनरी इस बात को ही सिद्ध करने में समय गुजार देती है कि उनके द्वारा दिए गए आकलन सोलह आने सच है।' नोट बंदी पर इतने प्रतिशत जनता हमारे साथ है ' , इतने प्रतिशत लोगों ने कैशलेस अपना लिया , नवंबर के बाद प्रत्यक्ष करों में इतने फीसदी का उछाल आया , आदि इत्यादि। निसंदेह सरकारी आंकड़े देश की सुनहरी तस्वीर बयां करते है तभी तो वित् मंत्री से लेकर पार्षद तक का आग्रह रहता कि इन आंकड़ों को ' जस के तस ' स्वीकार लिया जाए !
आंख मूंद लेने से हकीकत नहीं बदल जाया करती। सरकारी ' सच ' के खिलाफ कुछ आर्थिक अखबारों की राय एक अलग कहानी कहती है। गुजिश्ता हफ़्तों में ' फाइनेंसियल एक्सप्रेस ' ने बताया कि नोट बंदी की सर्जिकल स्ट्राइक ने लघु और मध्यम उधोग के 35 प्रतिशत कामगारों को घर बैठा दिया है। 'बिजनेस स्टैण्डर्ड ' कहता है कि ऑटोमोबाइल सेक्टर 20 प्रतिशत डाउन हो गया है , यह गिरावट 16 बरस में पहली बार हुई है। देश का सबसे बड़ा आर्थिक अखबार ' इकनोमिक टाइम्स ' डराता है कि महज नवंबर माह में ही फॉरेन इन्वेस्टर 17 अरब डॉलर पूंजी बाजार से निकाल ले गए ,इतना ही नहीं एन आर आई ( NRI ) ने भी साबित कर दिया कि धन्धे में कोई सगा नहीं होता। ये परदेसी पंछी तकरीबन 5 अरब डॉलर स्टॉक मार्केट से निकाल ले गए। अकेले नवंबर माह में जितना पैसा देश के बाहर गया है उतना 2008 के लेहमन ब्रदर के पतन के बाद आयी मंदी में भी नहीं गया था।
सरकार कभी इस बात को नहीं मानेगी।
सरकार यह भी कभी स्वीकार नहीं करेगी कि मोदी की दर्जनों विदेश यात्राओ के बावजूद विदेशी निवेश क्योंकर इतना कम आया ?
आत्म मुग्ध सरकारे और आत्म मुग्ध महिला यह नहीं जानती कि यह ' मुग्धता ' मानसिक बीमारी है। और यह बीमारी मरीज की इच्छा शक्ति से ही दूर हो सकती है।
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