सिल्वर स्क्रीन पर एक्टर की बोली गई लाइन कब लोकप्रिय हो जाती है यह बात दावे से डॉयलॉग राइटर भी नहीं कह सकता। बरसो बाद फिल्म भले ही दर्शक के दिमाग से उतर जाए डॉयलॉग अक्सर याद रह जाता है। 1950 से लेकर आजतक ऐसी दर्जनों फिल्में आ चुकी है जिनके डॉयलॉग समय के पार जाकर अमर हो गए है। आप किसी प्रोजेक्ट को तमाम बाधाओं के बावजूद मुकाम पर ले जा रहे है और कोई सलाह देता है कि ' यार इसे छोड़ क्यों नहीं देते - आप मुस्कुरा कर कह उठते है'' शो मस्ट गो ऑन '' ( मेरा नाम जोकर ) बगैर यह जाने कि यह बात स्वयं राज कपूर कह चुके है। बुजुर्ग अक्सर बच्चों को नसीहत देते नजर आते है '' जिन के घर शीशे के होते है वे दूसरों के घरों में पत्थर नहीं फैंकते '' ( वक्त ) . याद कीजिये आपको कितनी ही बार याद दिलाया गया है कि '' जिंदगी बड़ी होना चाहिए लम्बी नहीं ''( आनंद ) . प्रेम में आसक्त इस गैजेट युग में भी बोल ही देते है '' नाजनीन आपके पैर बहुत सुन्दर है इन्हे जमीन पर मत रखना मैले हो जाएंगे '' ( पाकीजा ) खुद्दार टाइप का आपका दोस्त कितनी बार अमितजी के टोन में दोहरा चूका है '' में आज भी फैके हुए पैसे नहीं उठाता हु डावर साहब ''( दिवार )
साधारण बोलचाल की भाषा में किसी डॉयलॉग का उपयोग होना इस माध्यम की ताकत दर्शाता है।
इस तरह के सैकड़ो उदाहरण है। डॉयलोग्स को लेकर कोई शोध आज तक नहीं हुआ है कि वे किस तरह भाषा को सरल बना रहे है। मेने इस विषय पर काफी गूगल किया परन्तु कोई सामग्री नहीं मिली। भाषा वैज्ञानिकों और हिंदी के विद्वानों के लिए यह अच्छा विषय हो सकता है।
इस ब्लॉग के समस्त पाठको से भी मेरा विनम्र आग्रह है कि अगर उनके पास इस संबंध में कोई जानकारी है तो कृपया कमेंट बॉक्स में अवश्य ही शेयर करे।
साधारण बोलचाल की भाषा में किसी डॉयलॉग का उपयोग होना इस माध्यम की ताकत दर्शाता है।
इस तरह के सैकड़ो उदाहरण है। डॉयलोग्स को लेकर कोई शोध आज तक नहीं हुआ है कि वे किस तरह भाषा को सरल बना रहे है। मेने इस विषय पर काफी गूगल किया परन्तु कोई सामग्री नहीं मिली। भाषा वैज्ञानिकों और हिंदी के विद्वानों के लिए यह अच्छा विषय हो सकता है।
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