Thursday, June 23, 2016

Oldest fugitive : 94 साल पुराना अपराधी

खबर जर्मनी से है। यह ऐसी खबर है जिसे में अपने जीवन के आखरी क्षणों में भी याद रखना चाहूंगा। न्याय का  ऐसा आग्रह और ऐसी मिसाल बिरले ही सुनने मिलेगी। जर्मन अदालत ने 94 साल के बुजुर्ग को पांच वर्ष के कारावास की सजा सुनाई। इस बुजुर्ग Reinhold Hanning का जुर्म 70 साल पुराना है।इन्होने  पोलैंड के औश्विट्ज में हिटलर के दुर्दांत कॉनसन्ट्रेशन कैंप में एस एस गार्ड के रूप में काम किया है। इस जगह पर लगभग ग्यारह लाख यहूदियों को हिटलर के आदेश पर  मौत के घाट उतार दिया गया था।  1945 में दूसरे विश्व यद्ध की समाप्ति के बाद से ही जर्मन सरकार उन सभी लोगों को ढूंढ कर सजा दे रही है जिन्होंने यहूदियों पर अत्याचार किये थे। सजा उन  लोगों को भी दी जारही है जो नाजियों के समर्थक थे और जिन्होंने हिटलर को मूक समर्थन दिया था। रेनहोल्ड हंनिंग भी उन सात हजार गॉर्डो में शामिल था जिन पर यहूदियों को गैस चैम्बर में ले जाने की जिम्मेदारी थी।
संभवतःनाजी अत्याचारों पर यह आखरी अदालती कार्यवाही है क्योंकि उस दौर के महज दर्जन भर लोग ही अब जीवित बच्चे है। ये लोग भी पीड़ित है जिन्हे अक्सर प्रत्यक्ष दर्शी के तौर पर  गवाही देने के लिए बुलाया जाता रहा है। कोर्ट की कार्यवाही के दौरान एक गवाह ने रेनहोल्ड को सम्बोधित करते हुए कहा  '' दुनिया सच जानना चाहती है। मुझसे नजर मिला कर एक बार वह सब कह दो जिसे तुम इतने साल से छुपाए हुए हो क्योंकि कुछ ही दिनों के बाद हमें खुदा के सामने पेश होना है '' परन्तु रेनहोल्ड फर्श पर नजरे गड़ाये सिर्फ ' आई एम सॉरी ' कह कर चुप हो गए। और कोई देश होता तो शायद अपराधी की उम्र को ध्यान में रखकर सजा माफ़ी दे देता। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर मानव वध के दोषियों को इसलिए सजा दी जारही है ताकि जर्मन कानून व्यवस्था पर कोई आंच न आने पाये।  भले ही न्याय देरी से हुआ परन्तु हुआ अवश्य। यह एक नैतिक सन्देश भी माना जासकता है।
इससे ठीक उलट कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने यहूदियों को बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। इन्ही में से एक थे ऑस्कर शिंडलर ( oskar schindler ) इस धनी  व्यवसायी ने एक हजार से ज्यादा  यहूदियों को बचाने के लिए अपनी फैक्ट्री में काम पर रख लिया था। ऑस्कर स्वयं नाजी पार्टी के सदस्य थे और बहुत पैसा बनाना चाहते थे परन्तु बाद में उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य लोगों की जान बचाना हो गया था। इन लोगों को बचाने के लिए ऑस्कर शिंडलर   नाजियों को भारी रिश्वत देते  थे। एक समय ऐसा भी  आया जब उनका सारा  पैसा ख़त्म हो गया।  इस सत्य घटना पर 1993 में स्टीवन स्पीलबर्ग ने फिल्म बनाई '' schindlers list '' .  स्पीलबर्ग ने इस फिल्म को डॉक्युमेंट्री की शक्ल में ' ब्लैक एंड वाइट ' बनाया था।  सिर्फ एक दृश्य रंगीन था जहां  लाल कोट पहने एक नन्ही लड़की नाजी सिपाहियों से छुपती नजर आती है। बाद में शिंडलर उस लड़की की लाश देखते है। फिल्म को ओरिजिनल लोकेशन पोलैंड में ही शूट किया गया था। स्पीलबर्ग चाहते थे कि दर्शक उस आतंक और मौत को महसूस करे जिसे साठ लाख यहूदियों ने भोगा था। आज दो दशक बाद भी  '' schindlers list '' सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शामिल है। सात ऑस्कर अवार्ड विनर इस फिल्म को अमेरिका की श्रेष्ठ सौ फिल्मों में आठवा स्थान प्राप्त है।



Tuesday, June 21, 2016

Disaster Movie : हादसों पर बनी शानदार फिल्मे .

आपदा को केंद्र बनाकर कई फिल्मे बनी है .ख्यात हालीवुड प्रोडूसर माइक मेदयोव ने घोषणा की है कि उन्होंने लातिन अमरीकी देश चिली में गत वर्ष हुए खान हादसे ( जिसमे 33 खनिक 69 दिन के बचाव अभियान के बाद दुर्घटना ग्रस्त खान से सकुशल निकाले गए थे )पर फिल्म बनाने के अधिकार खरीद लिए है . फिल्म उन भुक्तभोगी श्रमिको के अनुभव पर आधारित होगी . विदित हो कि माइक मेदयोव अपनी अन्य फिल्मों के अलावा ' ब्लेक स्वान ' और 'शटरआइलैंड ' के लिए प्रसिद्धी पा चुके है . उन्होंने पटकथा लिखने का जिम्मा सोंपा है पुएरटो रिको के ओस्कर विजेता जोस रिवेरा को .
विध्वंस या कहे आपदा की श्रेणी में आने वाली पहली फिल्म भी अमेरिका से ही थी .1974 में होलीवुड के दो बड़े स्टूडियो '20th सेंचुरी फोक्स और वार्नर ब्रोदार्स ने मिलकर बड़े बजट की फिल्म ' द टावरिंग इन्फेर्नो ' बनाई थी . 138 मंजिला बिल्डिंग के उदघाटन की पार्टी में एक छोटे से शोर्ट सर्किट से आग लगती है और सारे मेहमान 81 वे माले पर फंस जाते है . सन फ्रांसिस्को के दमकल कर्मी अपनी जान पर खेल कर कुछ लोगों को बचाने में कामयाब होते है . इस फिल्म ने भवन निर्माण के दोरान सुरक्षा नियमों की अनदेखी को उठाया था और जनता को जागरूक करने में अहम् भूमिका अदा की थी . स्वाभाविक है , फिल्म ने शानदार कमाई की थी और ढेर सारे पुरूस्कार भी बटोरे थे .
द टावरिंग इन्फर्नो की सफलता ने भारत में यश चोपड़ा को प्रेरित किया था . यश राज फिल्म हमेशा से ही 'प्रेम' को केंद्र में रखकर कहानिया बुनते रहे थे . उनके इस निर्णय ने फिल्म इंडस्ट्री को चौंका दिया था .सलीम जावेद को कहानी लिखने का भार सौंपा गया और इस जोड़ी ने देश की भीषण त्रासदी चसनाला खान दुर्घटना जिसमे 372 खनिक कालकलवित हुए थे , को विषय बनाते हुए ' काला पत्थर '(1979 ) की पटकथा लिखी थी . बेहतर निर्देशन , यादगार संगीत और चुस्त पटकथा के बावजूद फिल्म को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी . अमिताभ बच्चन के करियर की यह एक मात्र फिल्म थी जिसमे वे एक बार भी नहीं मुस्कुराए थे .इस फिल्म के एक साल बाद बी . आर चोपड़ा 'द बर्निंग ट्रेन ' (1980 )लेकर आये . यह फिल्म उस समय बनी ' बुलेट ट्रेन' पर आधारित थी . यंहा प्रकृति खलनायक न होकर मनुष्य की इर्ष्या को हादसे का कारण बनाया गया था .दिल्ली से बम्बई के बीच चलने वाली ट्रेन को उदघाटन के दिन ही खलनायक के षड्यंत्र का शिकार होना पड़ता है. आग से घिरी बेकाबू ट्रेन को रोकने के प्रयास उस समय के हिसाब से अदभूत थे .चोटी के सितारों से सजी होने के बावजूद फिल्म दर्शकों की अपेक्षा पर खरी नहीं उतरी थी. परन्तु राहुल देव बर्मन का सुरीला संगीत आज तक ताजा है .
इन दोनों ही फिल्मों के साथ एक रोचक तथ्य भी जुड़ा हुआ है. चूँकि उस समय दोनों ही फिल्मे बमुश्किल अपनी लागत निकल पाई थी , परन्तु बरसों बाद जब टेलीविजन राईट बिकने की शुरुआत हुई तो दोनों ही फिल्मो के राईट उनकी मूल लागत से कंही ज्यादा में बिके थे. दोनों ही फिल्मे एक दशक बाद ' हिट' श्रेणी में आई थी


Thursday, June 16, 2016

GOD MUST BE CRAZY : भगवान गुस्सा होंगे

WHO IS GOD , AND WHAT DOES HE DO ? अक्सर लोग इस तरह की बहस में उलझते रहते है।  कुछ अपने स्तर पर उसे जानने की कोशिश करते है और जिन्हे वह नहीं मिलता वे लोग बिचोलियों की मदद लेते है। खोज की इस प्रक्रिया ने एक बाजार खड़ा कर दिया है।  ताजा हालातों में हम जो तमाम बाबाओ और तथाकथित संतो को देख रहे है वे इसी बाजार को अपने बल पर चला रहे है। परन्तु मूल प्रश्न अपनी जगह है। भगवान कौन है और वह आखिर करता क्या है ? ईसाई धर्म में उसे सर्वोच्च शक्ति माना गया है जबकि अन्य उसे अलौकिक शक्ति मानकर इसलिए पूजते है कि वह उनकी और प्रकृति की रक्षा करता है।
फिल्म निर्माता जेमी युवास ने भगवान की परिभाषा अपने ढंग से गढ़ने की कोशिश की। 1984 में उन्होंने एक मजेदार फिल्म बनाई जिसका शीर्षक हमें एक दम   चौंकाता  है . GOD MUST BE CRAZY ( भगवान को पागल होना चाहिए ) या भगवान गुस्सा होंगे , फिल्म देखते हुए जब हमारा पेट दुखने लगता है तब समझ आता है कि क्यों कर यह टाइटल चुना गया होगा। फिल्म धार्मिकता और धर्म से बहुत दूर है। शुक्र है कि इसे अफ्रीका में बनाया गया है।  अगर भारत में कोई इस तरह की पहल करता तो ? क्या मालुम ये बिचोलिये उसका क्या हस्र करते।
              इस फिल्म के लेखक , निर्माता , और निर्देशक - सब कुछ जेमी युवास ही थे।  जेमी एक एक प्रकृति वादी और जीव विज्ञानी भी थे।  अपने जीवन की शुरुआत में उन्होंने जीव वैज्ञानिक के रूप में काम किया था। यही वजह है कि कालाहारी का मरुस्थल उनकी फिल्म में जीवंत हो उठा है।
कोका कोला की एक खाली  बोतल , प्रकृति , और मासूम से वनवासी को लेकर जेमी ने हंसी का ऐसा तूफ़ान खड़ा किया है जो वर्षों बाद भी आपको मुस्कुराने पर मजबूर कर देता  है।
                      फिल्म की कहानी आरम्भ होती है कालाहारी के ऊपर उड़ते विमान से फेंकी गयी कोक की खाली  बोतल से। कालाहारी में रहने वालों के लिए यह आधुनिक जीवन की पहली वस्तु है।  वे इसे भगवान का उपहार मानने लगते है। धीरे धीरे कबीले का हर सदस्य बोतल को अपने पास रखना चाहता है।  विवाद बढ़ता देख बोतल को वापस भगवान को लौटाने का निश्चय किया जाता है।  यह काम सौपा जाता है 'झी ' नाम के व्यक्ति को।  झी निकल पड़ता है भगवान की तलाश में।
                 
  एक हैरान परेशान जीव विज्ञानी ( ऐन्ड्रू स्टाइन ) अपने अनुसंधान के लिए जंगल में डेरा डाले हुए है। बोत्स्वाना से एक युवा  स्कूल टीचर गाँव में पढ़ाने  आरही है। आतंकवादियों का एक दल संसद पर हमला कर जंगल में छिपा हुआ है। भगवान की खोज में निकला झी इन सभी के रास्ते में आता रहता है। जेमी ने फिल्म के हर दृश्य को मेहनत  से रचा है।  आप जरा सी नजरे घुमाते  है और ठठाकर हसने का एक कारण खो देते है . एक जीप है जो रोकने पर नहीं रूकती और कभी पेड़ पर लटक जाती है।  गेंडे को जलती आग पसंद नहीं। ऐन्ड्रू कभी स्कूल टीचर को अपने मन की बात नहीं कह पाता। आतंकवादियों के दल में दो लोग हमेशा ताश खेलते रहते है , पुलिस की गोलीबारी के दौरान भी पत्ते उनके हाथ में ही रहते है। इस तरह के ढेरों प्रसंग है जो आपको बांधे रखते है।
           अफ्रीकन अंग्रेजी में बनी इस फिल्म को दुनिया  की हरेक भाषा में डब किया गया है। पांच मिलियन डॉलर के बजट में बनी इस फिल्म ने पाँचों महाद्वीपों के अधिकाँश देशों में दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया । इस फिल्म के सह नायक एंड्रू स्टाइन ने फिल्म ' गांधी ' में भी छोटी सी भूमिका अदा की थी। फिल्म के नायक झी की भूमिका नाइजीरिया के ग्रामीण निक्साउ ने निभाई थी।  वे सारी उम्र अनपढ़ रहे और कभी बीस की संख्या से अधिक गिनना नहीं सीख  पाये।
                अमरीका में इस फिल्म की रिलीज के पूर्व 'न्यूयॉर्क टाइम्स 'और ' वाशिंगटन पोस्ट ' जैसे अखबारों  ने अपनी समीक्षा में इस फिल्म को बकवास बताया था।  परन्तु बॉक्स  ऑफिस के आंकड़ों ने सभी की बोलती बंद कर दी थी .
            इस फिल्म को बार बार देखे । इसे न देखकर आप बहुत कुछ खो देंगे।

Sunday, June 12, 2016

Distant cousin : माय अमेरिकन कजन

नई  भाषा सिखने के लिए फिल्मों से बेहतर माध्यम नहीं हो सकता। दो दशक पूर्व के माहौल और आज के समय में बहुत अंतर आगया है। तकनीक ने बहुत सी चीजे आसान कर दी है। नई  भाषा अगर अंग्रेजी है तो इंटरनेट उपयोग  करने वालो के लिए राह सरल है। आप अगर सही ढंग से सर्च करते है तो आपको किसी अंग्रेजी सिखाने वाले  प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट से ज्यादा मटेरियल मुफ्त में मिल सकता है। दूसरा , youtube पर मौजूद लाखों फिल्मों से अपनी पसंद की फिल्में देखकर भी आप अपने pronunciation को बेहतर बना सकते है। इतना ही नहीं language learning के हजारो वीडियो में से अपनी पसंद के टीचर के वीडियो को subscribe कर भी आप अपनी vocabulary बड़ा सकते है।
नई लर्निंग टेक्नीक को जब मेने google किया तो पाया कि वहां इतने पेज मौजूद जिन्हे इस जन्म में तो नहीं पढ़ा जा सकता है। फिर भी  कुछ  तरीको  ने मुझे काफी प्रभावित किया। अपने ब्लॉग पर उनमे से एक को शेयर कर रहा हु। 
इस मेथड में छात्रों को इंग्लिश फिल्मों के डायलाग सुनाये जाते हैऔर उन्हें दोहराने को कहा जाता है । यह तरकीब आमतौर पर एशियाई और अफ्रीकन देशों में ज्यादा लोकप्रिय है। उन्हें यह भी  बताया जाता कि इस डायलाग को अपने देश में किस परिस्तिथि में बोलना है। चुनिंदा डायलाग की बानगी पेश है। 
  1. Houston we have a problem.          (Movie - Apollo 13) लोग जब  किसी मुश्किल में होते है और मदद चाहते है तो यह वाक्य बोला जाता है। 
  2. I'll be back  (Movie - Terminator )   कही जा कर वापस आने के लिए बोल जाता है। फिल्म के नायक अर्नाल्ड श्वाजनेगर की तरह हस्की टोन में बोल कर देखिये। मजा आएगा। 
  3. I've got the feeling we're not in Kansas any more...( The wizard of oz ) यह डायलाग आमतौर पर लोग तब बोलते है जब वे अपने आप को किसी विपरीत परिस्थिति में पाते है। 
  4. '' Bond , James bond '' इस नायक को कौन नहीं जानता। परिचय देने का इससे बेहतर तरीका नहीं है। आपको पहले अपना Surname बोलना है उसके बाद एक पॉज लेकर नाम बोलना है। ट्राय करके देखिये , आप मुस्कुराए बगैर नहीं रह सकेंगे। 
  5. Wax on , Wax off ( Movie - Karate kid ) किसी काम को कैसे करना है बताने के लिए बोला  जाता है.
  6.  I'm gonna make him an offer he can't refuse ( The Godfather )  मर्लिन ब्रांडों ने जब यह डॉयलॉग बोला था तब सिनेमा हाल में बैठे दर्शक सहम गए थे। आप इस डायलाग को मजाक में किसी को धमकाने के लिए उपयोग कर सकते हो। 
  7. I think this is the beginning of a beautiful friendship . ( Casablanca ) यधपि यह एक रोमांटिक फिल्म थी परन्तु किसी के भी साथ नई शुरुआत करते वक्त यह लाइन बखूबी बोली जा सकती है। 
  8. You can't handle the truth ........ (A few Good man ) कोई कड़वी या खरी बात कहने के लिए बोला जाता है। 
  9. My Mama always said ' life was like a box of Chocolates . You never know what you gonna get ' .......... ( Forrest Gump ) जिंदगी की अनिश्चितता समझाने के लिए यह डायलाग बोला जाता है। 
       10  I am as mad as hell , and I am not gonna take this anymore ...( Network ) आपको सरकार या समाज से कोई परेशानी है और आप झुंझला रहे  है तो तेज आवाज में यह लाइन बोल सकते है। 
                                                                                                                                                                                 
 तो दोस्तों कोशिश कीजिये इस तरीके से इंग्लिश सिखने की। संभव है  आपका डबल फायदा हो जाए।  आप इंग्लिश भी सीख जायेगे और अच्छी फिल्में देखने का टेस्ट भी डेवेलप हो सकता है। 

         इस ब्लॉग पर अपनी राय अवश्य देवे।
       



Friday, June 10, 2016

Dialogues of Hindi movie

सिल्वर स्क्रीन पर एक्टर की बोली गई लाइन कब लोकप्रिय हो जाती है यह बात दावे से डॉयलॉग राइटर भी नहीं कह सकता। बरसो बाद फिल्म भले ही दर्शक के दिमाग से उतर जाए डॉयलॉग अक्सर याद रह जाता है।  1950 से लेकर आजतक ऐसी दर्जनों फिल्में आ चुकी है जिनके डॉयलॉग समय के पार जाकर अमर हो गए है।  आप किसी प्रोजेक्ट को तमाम बाधाओं  के बावजूद मुकाम पर ले जा रहे है और कोई सलाह देता है कि ' यार इसे छोड़ क्यों नहीं देते - आप    मुस्कुरा कर कह उठते है'' शो मस्ट गो ऑन '' ( मेरा नाम जोकर ) बगैर यह जाने  कि यह बात स्वयं राज कपूर कह चुके है।  बुजुर्ग अक्सर बच्चों को नसीहत देते नजर आते है '' जिन के घर शीशे के होते  है वे दूसरों के घरों में पत्थर नहीं फैंकते '' ( वक्त )  याद कीजिये आपको कितनी ही बार याद दिलाया गया है कि '' जिंदगी  बड़ी होना चाहिए लम्बी नहीं ''( आनंद ) . प्रेम में आसक्त इस गैजेट युग में भी बोल ही देते है '' नाजनीन आपके  पैर बहुत सुन्दर है इन्हे जमीन  पर मत रखना मैले हो जाएंगे '' ( पाकीजा ) खुद्दार टाइप का आपका दोस्त कितनी बार अमितजी के टोन में दोहरा चूका है '' में आज भी फैके हुए पैसे नहीं उठाता हु डावर साहब ''( दिवार )

साधारण बोलचाल की भाषा में किसी डॉयलॉग का उपयोग होना इस माध्यम  की ताकत दर्शाता है।
इस तरह के सैकड़ो उदाहरण है। डॉयलोग्स को लेकर कोई शोध आज तक नहीं हुआ है कि वे किस तरह भाषा को सरल बना रहे है।  मेने इस विषय पर काफी गूगल किया परन्तु कोई सामग्री नहीं मिली। भाषा वैज्ञानिकों और हिंदी के विद्वानों के लिए यह अच्छा विषय हो सकता है।
इस ब्लॉग के समस्त पाठको से भी मेरा विनम्र आग्रह है कि अगर उनके पास इस संबंध में कोई जानकारी है तो कृपया कमेंट बॉक्स में  अवश्य ही शेयर करे। 

Tuesday, June 7, 2016

'' आपने हाल ही में कौनसा उपन्यास पढ़ा है ?

एक ब्लॉग पढ़ने में आया '' do you still read news paper '' . किसी अमेरिकन ब्लॉगर ने चिंता व्यक्त करते हुए लिखा है कि लोग अब समाचार पत्र नहीं पढ़ते। समय और नित नये गैजेट्स के आने के बाद से अखबार के प्रति लगाव काम हुआ है। निसंदेह। चौवीसों घंटे चलने वाले न्यूज़ चैनल और स्मार्ट फ़ोन में नौजूद एप्प इस गिरावट के प्रति जिम्मेवार है।
                                    मुहे याद आता है , दस साल की उम्र में मुझे  अखबार पढ़ने का चस्का लग गया था।  शुरुआत सिर्फ हेड लाइन पड़ने से हुई थी। उन दिनों रंगीन अखबार के बारे में कोई सोंच भी नहीं सकता था। आवागमन के इतने साधन नहीं थे सो दोपहर तीन बजे के बाद अखबार बांटने वाले भैया की शकल दिखाई देती थी। मशहूर कॉमिक स्ट्रिप ' ब्लोंडी ' और मॉडेस्टी ब्लैज ' हमारी पहली पसंद हुआ करती थी। ''मॉडेस्टी ' दरअसल 'एडल्ट ' कॉमिक स्ट्रिप हुआ करती थी  यह बात बरसों बाद समझ आई। बहरहाल ' केजीबी' औरसीआईए ' शब्द का मतलब उन दिनों इतना समझ में आया की इनका  कही न कही जासूसी से  सम्बन्ध है , और इसी  साथ  जिंदगी में कर्नल रंजीत ओमप्रकाश शर्मा , इब्ने सफी आये।  कभी कभार जेम्स हेडली चेस भी पढ़ लिया करता था। जेम्स हेडली के उपन्यासों को कोई दूर से ही पहचान सकता था।  उसके कवर पर हमेशा एक लड़की की तस्वीर हुआ करती थी जिसके हाथों में गन हुआ करती थी।  कवर का कहानी से कोई लेना देना नहीं हुआ करता था। इन उपन्यासों को पढ़ने वालों को विशेष नजर से देखा जाता था। कर्नल रंजीत का किरदार बड़ा ही भव्य हुआ करता था। जब भी वे अपना सिगार जलाते थे , पाठक समझ जाता था कि अब यह केस हल होकर रहेगा।  रंजीत की असिस्टेंट सोनिया बड़ी ही सुन्दर हुआ करती थी।  हम लोग अक्सर आपस में सवाल किया करते थे कि '' ये लोग शादी क्यों नहीं कर लेते ? ' लिव इन रिलेशन ' का यह बेहतरीन उदहारण था जो उस समय समझ में नहीं आया था।
                                            अचानक एक दिन ' जेबकतरे ' हाथ लगा। अमृता प्रीतम ने यह उपन्यास कॉलेज के छात्रों के जीवन , सपनों और उम्मीदों को रेखांकित करते हुए लिखा था। तब से अमृता जीवन में आगई और साहित्य की समझ आने लगी।  उनके लिखे लगभग सभी उपन्यास पढ़ डाले है। उनकी आत्मकथा  'रसीदी टिकिट ' साहित्य और बेबाकी का शानदार मिश्रण है।
                               रांगेय राघव , श्रीलाल शुक्ल , कालिदास, सर आर्थर कॉनन डायल , शेक्सपिअर ,निर्मल वर्मा , अजित कौर , खुशवंत सिंह , भीष्म साहनी , शिवानी , फेहरिस्त लम्बी है।  यह सिलसिला ख़त्म नहीं हुआ है। इस पढ़ने- पढ़ाने की वजह से बहुत से यादगार मित्र बने है।  अब अक्सर में लोगों से पूछ बैठता हु   '' आपने हाल ही में कौनसा उपन्यास पढ़ा है ?

Saturday, June 4, 2016

The man who shoot Barack Obama :बराक ओबामा को शूट करने वाला

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का कार्यकाल समाप्त होने को है और नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए लम्बी प्रक्रिया ( प्राइमरी ) जारी है। भारत की तरह दोनों प्रमुख पार्टी के प्रत्याशी एक दूसरे को शिकस्त देने एक दूसरे पर आरोप -प्रत्यारोप की बौछार  कर रहे है। इस बात की पूरी सम्भावना है कि डेमोक्रेटिक उम्मीदवार श्रीमती हिलेरी क्लिंटन नवंबर में इस सर्वोच्च पद पर आसीन हो जायेंगी। कई लोगों को लगेगा कि में इस फिल्म के ब्लॉग में पॉलिटिक्स की बात क्यों कर रहा हु। फिल्म की ही तरह फोटोग्राफी भी अभिव्यक्ति का एक महत्त्व पूर्ण माध्यम है। राजनीति की तरह फोटोग्राफी भी अमेरिकी राष्ट्रपति से गहरे जुडी है।  यहां में कुछ ऐसी दिलचस्प जानकारी शेयर कर रहा हु जो अधिसंख्य लोगों को मालुम नहीं है।
अमेरिकी सरकार अपने राष्ट्रपति को ऐसी कई सुविधाए उपलब्ध कराती  है जिसकी आम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते। उन्हें तमाम सुख सुविधा और सुरक्षा के अलावा एक पूर्णकालिक फोटोग्राफर ( official photographer of white house ) भी दिया जाता है। यूँ तो हरेक अमेरिकी राष्ट्रपति दुनिया भर के मीडिया के आकर्षण का केंद्र होता है और उसकी हर  शारीरिक हरकत कैमरे में कैद होती है। परन्तु वाइट हाउस में हर किसी को प्रवेश नहीं मिलता। यहां सिर्फ उनका अधिकृत फोटोग्राफर ही फोटो ले सकता है।
 यह अकेला ऐसा व्यक्ति होता है जो सीक्रेट सर्विस के बनाये दायरे को भी आसानी से पार कर सकता है। इसे  राष्ट्रपति के साथ साये की तरह चलना होता है। राष्ट्रपति के बैडरूम के अलावा यह शख्स उनके  साथ कही भी बे-रोक टोक जा सकता है। यहां तक की ओवल ऑफिस भी  जहां राष्ट्रपति के स्टाफ के आलावा चुनिंदा लोग ही जा सकते है।
इस समय बराक ओबामा के साथ pete souza है।  pete souza एक फ्रीलान्स फोटोग्राफर है और life magzine के अतिरिक्त national geographic के लिये भी काम कर चुके है। राष्ट्रपति के फोटोग्राफर होने के बावजूद वे ऑहियो (ohio ) यूनिवर्सिटी में assistant professor के रूप में photo journalism पढ़ाते है। pete एक हफ्ते में  राष्ट्रपति के तकरीबन 20000 फोटो लेते है। इनमे से 50 फोटो white house के गलियारों में  महत्वपूर्ण जगहों पर लगाए जाते है व शेष फोटो राष्ट्रीय अभिलेखागार ( national archives) में राष्ट्रीय सम्पति की तरह सहेज दिए जाते है ।  pete के फोटो कलेक्शन को देखने के लिए white house की साइट पर लॉग  इन  किया जा सकता है। pete souzo के बारे में और अधिक जानने के लिए petesouza.com पर भी  जा सकते है। 

दिस इस नॉट अ पोलिटिकल पोस्ट

शेयर बाजार की उथल पुथल में सबसे ज्यादा नुकसान अपने  मुकेश सेठ को हुआ है। अरबपतियों की फेहरिस्त में अब वे इक्कीसवे नंबर पर चले गए है। यद्ध...