खबर जर्मनी से है। यह ऐसी खबर है जिसे में अपने जीवन के आखरी क्षणों में भी याद रखना चाहूंगा। न्याय का ऐसा आग्रह और ऐसी मिसाल बिरले ही सुनने मिलेगी। जर्मन अदालत ने 94 साल के बुजुर्ग को पांच वर्ष के कारावास की सजा सुनाई। इस बुजुर्ग Reinhold Hanning का जुर्म 70 साल पुराना है।इन्होने पोलैंड के औश्विट्ज में हिटलर के दुर्दांत कॉनसन्ट्रेशन कैंप में एस एस गार्ड के रूप में काम किया है। इस जगह पर लगभग ग्यारह लाख यहूदियों को हिटलर के आदेश पर मौत के घाट उतार दिया गया था। 1945 में दूसरे विश्व यद्ध की समाप्ति के बाद से ही जर्मन सरकार उन सभी लोगों को ढूंढ कर सजा दे रही है जिन्होंने यहूदियों पर अत्याचार किये थे। सजा उन लोगों को भी दी जारही है जो नाजियों के समर्थक थे और जिन्होंने हिटलर को मूक समर्थन दिया था। रेनहोल्ड हंनिंग भी उन सात हजार गॉर्डो में शामिल था जिन पर यहूदियों को गैस चैम्बर में ले जाने की जिम्मेदारी थी।
संभवतःनाजी अत्याचारों पर यह आखरी अदालती कार्यवाही है क्योंकि उस दौर के महज दर्जन भर लोग ही अब जीवित बच्चे है। ये लोग भी पीड़ित है जिन्हे अक्सर प्रत्यक्ष दर्शी के तौर पर गवाही देने के लिए बुलाया जाता रहा है। कोर्ट की कार्यवाही के दौरान एक गवाह ने रेनहोल्ड को सम्बोधित करते हुए कहा '' दुनिया सच जानना चाहती है। मुझसे नजर मिला कर एक बार वह सब कह दो जिसे तुम इतने साल से छुपाए हुए हो क्योंकि कुछ ही दिनों के बाद हमें खुदा के सामने पेश होना है '' परन्तु रेनहोल्ड फर्श पर नजरे गड़ाये सिर्फ ' आई एम सॉरी ' कह कर चुप हो गए। और कोई देश होता तो शायद अपराधी की उम्र को ध्यान में रखकर सजा माफ़ी दे देता। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर मानव वध के दोषियों को इसलिए सजा दी जारही है ताकि जर्मन कानून व्यवस्था पर कोई आंच न आने पाये। भले ही न्याय देरी से हुआ परन्तु हुआ अवश्य। यह एक नैतिक सन्देश भी माना जासकता है।
इससे ठीक उलट कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने यहूदियों को बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। इन्ही में से एक थे ऑस्कर शिंडलर ( oskar schindler ) इस धनी व्यवसायी ने एक हजार से ज्यादा यहूदियों को बचाने के लिए अपनी फैक्ट्री में काम पर रख लिया था। ऑस्कर स्वयं नाजी पार्टी के सदस्य थे और बहुत पैसा बनाना चाहते थे परन्तु बाद में उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य लोगों की जान बचाना हो गया था। इन लोगों को बचाने के लिए ऑस्कर शिंडलर नाजियों को भारी रिश्वत देते थे। एक समय ऐसा भी आया जब उनका सारा पैसा ख़त्म हो गया। इस सत्य घटना पर 1993 में स्टीवन स्पीलबर्ग ने फिल्म बनाई '' schindlers list '' . स्पीलबर्ग ने इस फिल्म को डॉक्युमेंट्री की शक्ल में ' ब्लैक एंड वाइट ' बनाया था। सिर्फ एक दृश्य रंगीन था जहां लाल कोट पहने एक नन्ही लड़की नाजी सिपाहियों से छुपती नजर आती है। बाद में शिंडलर उस लड़की की लाश देखते है। फिल्म को ओरिजिनल लोकेशन पोलैंड में ही शूट किया गया था। स्पीलबर्ग चाहते थे कि दर्शक उस आतंक और मौत को महसूस करे जिसे साठ लाख यहूदियों ने भोगा था। आज दो दशक बाद भी '' schindlers list '' सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शामिल है। सात ऑस्कर अवार्ड विनर इस फिल्म को अमेरिका की श्रेष्ठ सौ फिल्मों में आठवा स्थान प्राप्त है।
संभवतःनाजी अत्याचारों पर यह आखरी अदालती कार्यवाही है क्योंकि उस दौर के महज दर्जन भर लोग ही अब जीवित बच्चे है। ये लोग भी पीड़ित है जिन्हे अक्सर प्रत्यक्ष दर्शी के तौर पर गवाही देने के लिए बुलाया जाता रहा है। कोर्ट की कार्यवाही के दौरान एक गवाह ने रेनहोल्ड को सम्बोधित करते हुए कहा '' दुनिया सच जानना चाहती है। मुझसे नजर मिला कर एक बार वह सब कह दो जिसे तुम इतने साल से छुपाए हुए हो क्योंकि कुछ ही दिनों के बाद हमें खुदा के सामने पेश होना है '' परन्तु रेनहोल्ड फर्श पर नजरे गड़ाये सिर्फ ' आई एम सॉरी ' कह कर चुप हो गए। और कोई देश होता तो शायद अपराधी की उम्र को ध्यान में रखकर सजा माफ़ी दे देता। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर मानव वध के दोषियों को इसलिए सजा दी जारही है ताकि जर्मन कानून व्यवस्था पर कोई आंच न आने पाये। भले ही न्याय देरी से हुआ परन्तु हुआ अवश्य। यह एक नैतिक सन्देश भी माना जासकता है।
इससे ठीक उलट कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने यहूदियों को बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। इन्ही में से एक थे ऑस्कर शिंडलर ( oskar schindler ) इस धनी व्यवसायी ने एक हजार से ज्यादा यहूदियों को बचाने के लिए अपनी फैक्ट्री में काम पर रख लिया था। ऑस्कर स्वयं नाजी पार्टी के सदस्य थे और बहुत पैसा बनाना चाहते थे परन्तु बाद में उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य लोगों की जान बचाना हो गया था। इन लोगों को बचाने के लिए ऑस्कर शिंडलर नाजियों को भारी रिश्वत देते थे। एक समय ऐसा भी आया जब उनका सारा पैसा ख़त्म हो गया। इस सत्य घटना पर 1993 में स्टीवन स्पीलबर्ग ने फिल्म बनाई '' schindlers list '' . स्पीलबर्ग ने इस फिल्म को डॉक्युमेंट्री की शक्ल में ' ब्लैक एंड वाइट ' बनाया था। सिर्फ एक दृश्य रंगीन था जहां लाल कोट पहने एक नन्ही लड़की नाजी सिपाहियों से छुपती नजर आती है। बाद में शिंडलर उस लड़की की लाश देखते है। फिल्म को ओरिजिनल लोकेशन पोलैंड में ही शूट किया गया था। स्पीलबर्ग चाहते थे कि दर्शक उस आतंक और मौत को महसूस करे जिसे साठ लाख यहूदियों ने भोगा था। आज दो दशक बाद भी '' schindlers list '' सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शामिल है। सात ऑस्कर अवार्ड विनर इस फिल्म को अमेरिका की श्रेष्ठ सौ फिल्मों में आठवा स्थान प्राप्त है।
सर मैंने ये फ़िल्म देखी है और आपकी बात से पूर्ण इत्तफाक रखता हूँ । यहूदियों पर हुए बर्बर अत्याचार को स्पीलबर्ग साहब ने बड़ी सूक्ष्मता से फिल्माया है । कहीं कहीं तो आँखों में आंसू आ जाते हैं, बशर्ते कि आप में संवेदना का वास हो ।
ReplyDeleteThànk you for making aware of such facts.
ReplyDeleteThànk you for making aware of such facts.
ReplyDeleteआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति रानी दुर्गावती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeletethanks harshvardhanji ...i am honored .
Deleteबढ़िया लेख अॉर Remarkable fact.
ReplyDeletethanks naveenji ...
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