Monday, March 21, 2016

सच में मुझे नहीं मालूम

मुझे नहीं मालुम
यह क्या है ?
तुम जो चाहे  नाम दो इसे /
अपलक तुम्हे ताकना
और आँखें बंद कर लेना /
 हवा में तुम्हारी गंध
महसूसना और
गहरी सांस भर लेना /
कागज पर यूँ ही
कुछ लकीरें खींच देना
और उसमे तुम्हारा चेहरा
तलाशना /
सच में मुझे नहीं मालूम
यह क्या है /
  तुम हो तो
ये साल , महीने , दिन
जिंदगी लगते है /
जैसे समंदर के  किनारे
नावों की वजह से
भरोसेमंद लगते है।



 

5 comments:

  1. Replies
    1. सर आपका उत्साहवर्धन अतुलनीय है। कोटिश साधुवाद , धन्यवाद।

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  2. एक कशिश है, एक आवाज़ है
    कविता नहीं, ये तो जीवंत अहसास है

    बहुत खूब

    ReplyDelete
    Replies
    1. तुम कहाँ गुम हो मै कभी कभी तुम्हे बहुत मिस करता हु। थैंक्स।

      Delete

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