खबर है कि ब्रिटेन के पूर्व एवं आकर्षक व्यक्तित्व के धनी प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की पत्नी चेरी ब्लेयर ( जो स्वयं भी काफी सुन्दर है ) ने ढेर सारी साड़ियां खरीदी है। यह बात हम भारतीयों प्रभावित कर सकती है कि एक ऐसे देश के शासक की पत्नी अपने परिधान में भारतीय कपड़ों को शामिल करे जिसने दो सौ वर्षों तक भारत को गुलाम बना के रखा था . और वह देश अभी टूट्ते टूट्ते बचा है।
अमेरिकन टेलेविज़न की सबसे चर्चित महिला ओप्रा विनफ्रे जब भारत आई थी तो उन्होंने ऐश्वर्या रॉय से साड़ी बांधना सीखा था। ऐसे उदाहरण अनेकों है जो बताते है कि भारत और उसकी जीवन शैली को पश्चिम ने (भले ही फैशन के तौर पर ) अपनाना आरम्भ कर दिया है। परन्तु फिल्मो के मामले में स्थिति अब तक उलट ही रही है। बरसों से हॉलीवुड फिल्मो से कथानक उठाने का कर्म हमारे फिल्म निर्माता करते रहे है। एक भी उदाहरण ऐसा नहीं मिलता जहां किसी अमेरिकी स्टूडियो ने हमारी किसी कहानी में दिलचस्पी दिखाई हो। हाँ हमारी कुछ फिल्मों को उन्होंने काफी सराहा है। दुनिया के बड़े स्टूडियो पिछले दशक से ही बॉलीवुड में अपनी आमद महसूस कराने का प्रयास करते रहे है। भारत के बड़े बैनरो से उनके समझोते इस बात का उदहारण है। लेकिन यहां भी कारण दूसरा है। भारत की विशाल जनसँख्या उन्हें एक बड़े बाजार के रूप में नजर आती है। हालांकि अभी हमारे देश में फिल्मो को लेकर वह संस्कृति विकसित नहीं हुई है जैसी यूरोप और अमेरिका में है। सालाना सिनेमा टिकिट बिक्री मामले में हम उनसे अभी भी बहुत पीछे है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ की फिल्मो को लेकर एक रिपोर्ट आई है जिसमे भारत को नारी पात्रों के चित्रण में सबसे बदतर स्थिति में रखा गया है। रिपोर्ट का मानना है की नारी पात्रो को अश्लील , अशालीन , उपभोग की वस्तु , कामुक , दर्शाने के मामले में भारत पहले नंबर पर है। यहां बनने वाली फिल्मो में से पैंतीस प्रतिशत फिल्मों में नारी पात्रो को उपरोक्त भूमिकाओं में ही प्रस्तुत किया जाता है। भारतीय फिल्मों की नारी पात्र कभी कैरियर को लेकर चिंता करती नहीं दिखाई जाती। यह रिपोर्ट उस वर्ग के लिए एक बड़ा प्रश्न है जो नग्नता और सेक्स के लिए पश्चिम की फिल्मों को दोषी ठहराते रहे है।
यूनाइटेड नेशन ने हमारे फिल्मकारों को आईना दिखने का प्रयास किया है , देखना है कितने लोग इस रिपोर्ट की गंभीरता को समझेंगे ?
image courtesy google .
अमेरिकन टेलेविज़न की सबसे चर्चित महिला ओप्रा विनफ्रे जब भारत आई थी तो उन्होंने ऐश्वर्या रॉय से साड़ी बांधना सीखा था। ऐसे उदाहरण अनेकों है जो बताते है कि भारत और उसकी जीवन शैली को पश्चिम ने (भले ही फैशन के तौर पर ) अपनाना आरम्भ कर दिया है। परन्तु फिल्मो के मामले में स्थिति अब तक उलट ही रही है। बरसों से हॉलीवुड फिल्मो से कथानक उठाने का कर्म हमारे फिल्म निर्माता करते रहे है। एक भी उदाहरण ऐसा नहीं मिलता जहां किसी अमेरिकी स्टूडियो ने हमारी किसी कहानी में दिलचस्पी दिखाई हो। हाँ हमारी कुछ फिल्मों को उन्होंने काफी सराहा है। दुनिया के बड़े स्टूडियो पिछले दशक से ही बॉलीवुड में अपनी आमद महसूस कराने का प्रयास करते रहे है। भारत के बड़े बैनरो से उनके समझोते इस बात का उदहारण है। लेकिन यहां भी कारण दूसरा है। भारत की विशाल जनसँख्या उन्हें एक बड़े बाजार के रूप में नजर आती है। हालांकि अभी हमारे देश में फिल्मो को लेकर वह संस्कृति विकसित नहीं हुई है जैसी यूरोप और अमेरिका में है। सालाना सिनेमा टिकिट बिक्री मामले में हम उनसे अभी भी बहुत पीछे है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ की फिल्मो को लेकर एक रिपोर्ट आई है जिसमे भारत को नारी पात्रों के चित्रण में सबसे बदतर स्थिति में रखा गया है। रिपोर्ट का मानना है की नारी पात्रो को अश्लील , अशालीन , उपभोग की वस्तु , कामुक , दर्शाने के मामले में भारत पहले नंबर पर है। यहां बनने वाली फिल्मो में से पैंतीस प्रतिशत फिल्मों में नारी पात्रो को उपरोक्त भूमिकाओं में ही प्रस्तुत किया जाता है। भारतीय फिल्मों की नारी पात्र कभी कैरियर को लेकर चिंता करती नहीं दिखाई जाती। यह रिपोर्ट उस वर्ग के लिए एक बड़ा प्रश्न है जो नग्नता और सेक्स के लिए पश्चिम की फिल्मों को दोषी ठहराते रहे है।
यूनाइटेड नेशन ने हमारे फिल्मकारों को आईना दिखने का प्रयास किया है , देखना है कितने लोग इस रिपोर्ट की गंभीरता को समझेंगे ?
image courtesy google .
बहुत सही कहा आपने .....
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