Sunday, September 14, 2014

Death of A wrist watch.......एक हाथ घडी की मौत !!

'' आप  की चाहत के मुन्तजिर है  हम हर पल हर घड़ी '' ( i am  waiting for your love every second every moment ) '' राष्ट्र के समय प्रहरी  '' या '' देश की धड़कन '' (Time keeper of the nation , pulse of the nation ) इन पंक्तियों को पढ़ कर आपको कुछ याद आया ? ये है अस्सी के दशक देश की सबसे बड़ी घडी( watch ) निर्माता कंपनी HMT के विज्ञापन की झलक। वह दौर ऐसा था जब पिता परीक्षा में अव्वल आने पर पुत्र को हाथ घडी दिलाने का वादा करते थे। विवाह लायक लड़कियों की इच्छा हुआ करती थी कि शादी में उन्हें घडी का एक जोड़ा( couple set for both husband and wife ) अवश्य मिले . और थोड़ा पीछे लौटते है तो हमें हाजी मस्तान का नाम सुनाई देता है जिसने अपने जीवन की शुरुआत बंदरगाह पर महज पांच रूपये रोज पर एक कुली के रूप में की थी . यह दौर था जब देश में रेडिओ ,हाथ घडी , परफ्यूम आदि जहाजो में लदकर चोरी छिपे हिन्दुस्तान आया करता था। मस्तान ने इसी व्यवसाय को  बढ़ाया और आगे चलकर इसी मस्तान का रोल अमिताभ बच्चन ने अपनी फिल्म  '' दीवार '' में इतनी शिद्दत से निभाया कि फिल्म कालजयी हो गई।
                                      स्वतंत्रता प्राप्ति  के बाद के दौर में आधुनिक भारत के  निर्माण में जिन उद्योगों पर सरकार की विशेष कृपा रही उनमे एम्बेसडर कार( hindustan motors limited ) के बाद HMT घड़िया ही थी। समय के साथ ताल मेल न बैठाने के क्या परिणाम हो सकते है यह इन दोनों कंपनियों के पतन से ज्ञात होते है।  एम्बेसडर ने पिछले साल अपना उत्पादन बंद किया है और हाल ही में भारत सरकार ने HMT को बंद करने का निर्णय किया है। 247 करोड़ के घाटे के बाद देश की धड़कन कही जाने वाली कंपनी की टिक टिक बंद हो गई जबकि इसकी प्रतिद्वंदी  ''टाइटन ''ने गत वर्ष 1775 करोड़ का व्यवसाय किया है।
                                 परिवर्तन का चक्र कितनी कुर्बानिया लेता है इसका हिसाब रखने की जवाबदारी सिर्फ इतिहास  के पास  है। गत दिनों इस क्षण को सहेजने लिए बैंगलोर में HMT के बिक्री केन्द्रों पर लोगो की भीड़ उमड़ पड़ी।  इतिहास का हिस्सा बनने के लिए लोग  HMT हाथ घड़िया खरीद रहे थे . दूर संचार विभाग ने जब '' टेलीग्राम '' सेवा बंद की थी तब लोग '' तार ' करने के लिए पोस्ट ऑफिस पर टूट पड़े थे। 'हिंदी फिल्मों के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना की मृत्यु पर मीडिया के साथ पूरा देश ग़मगीन हो उठा था।  इतना प्यार उन्हें जीतेजी मिल जाता तो शायद उनकी साँसों को कुछ और वक्त मिल जाता। इत्तेफाक से गोपाल दास नीरज के गीत की पंक्ति याद आरही है -
स्वप्न झरे फूल से
मीत  चुभे  शूल से
लूट गए श्रृंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे ...

2 comments:

  1. Jama badal gaya hai:

    http://www.apple.com/watch/

    :-)

    ReplyDelete
  2. अच्छा लगा आपका ब्लॉग ....
    सबका एक दौर होता है .....

    ReplyDelete

दिस इस नॉट अ पोलिटिकल पोस्ट

शेयर बाजार की उथल पुथल में सबसे ज्यादा नुकसान अपने  मुकेश सेठ को हुआ है। अरबपतियों की फेहरिस्त में अब वे इक्कीसवे नंबर पर चले गए है। यद्ध...