Wednesday, February 20, 2019

गर फिरदौस बर रुए जमीं अस्त ..!



पुलवामा की घटना के बाद माहौल में है -  शोक ! निराशा !  नाराजगी ! और स्तब्धता ! यह मान लिया गया था कि सब कुछ ठीक है। सुरक्षाबलों की नियमित चलने वाली  कार्रवाई से ढाई सौ दशहत गर्दों को परलोक रवाना कर दिया गया था। कश्मीर शांत लगने लगा था। परन्तु यह तूफ़ान के पहले की शांति थी। एक ऐसी पटकथा लिखी जा रही थी जिसके जख्म जल्दी नहीं भरने थे। लगभग ऐसा ही हुआ जैसा आतंक के रहनुमाओ ने सोंचा था। कश्मीर की फ़िज़ाए हमेशा की तरह मनभावन थी। वातावरण में कोहरा और पार्श्व में आसमान छूते चिनार के दरख़्त। कोई और समय होता तो इस पल ली हुई सेल्फी जीवन भर अलबम के साथ यादों में दर्ज रहती। परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं था। यह एक स्वप्न के टूटने की तरह था। जिस वाहन में जवान थे वह विस्फोट के बाद स्टील  की टूटी फ्रेम के ढेर में बदल चूका था। चवालीस बदन बिखर चुके थे। जिस किसी ने भी इस दृश्य को अपने टेलीविज़न  स्क्रीन पर देखा है उसके मानस में यह पल एक दुःस्वप्न की तरह टंक गया है। 
सोशल मीडिया और मुख्यधारा के मीडिया पर इस नृशंस नरसंहार के विरोध में गुस्सा महसूस किया जा सकता है । देश का साधारण नागरिक भी अपने सुझाव इस उम्मीद से सरकार की तरफ  सरका रहा है कि कैसे
करके भी इस समस्या का समाधान होना चाहिए। इस समाधान के लिए कुछ अलग तरह की सोंच और कड़े कदम उठाये जाने चाहिए। हम मानकर चलते है कि आतंक की सभी घटनाओ में  पाकिस्तान का अदृश्य हाथ मौजूद रहा है । हमें यह भी मान लेना चाहिए कि पाकिस्तान कभी भी अपनी प्रवृति नहीं बदलने वाला है। भले ही आप कितनी ही सदाशयता दिखालो वह अपना स्वभाव नहीं  बदलने वाला। हमें इसी बिंदु से अपनी रणनीति की शुरुआत करनी होगी। 
लोकप्रिय टीवी धारावाहिक ' गेम ऑफ़ थ्रोन ' की कई समानांतर कहानियों में से एक कहानी की नायिका सांसा स्टार्क नेत्रहीन है।  एक दृश्य में खलनायिका सांसा को लकड़ियों से पीटती है। निरीह सांसा उससे जान की भीख मांगते हुए कहती है - कम से कम मेरे अंधेपन पर तो रहम करो , में अपना बचाव भी नहीं कर सकती। खलनायिका वास्प का जवाब होता है ' तुम्हारा अंधापन तुम्हारी समस्या है ! मेरी नहीं ! पाकिस्तान तो अपने मंसूबे हर हाल में पुरे करेगा ही , हमें ही  सजग रहकर उसकी चाल को निष्फल करना है। 
हमें याद रखना चाहिए कि एक जमाने में पंजाब भी कुछ इसी तरह से आतंक के चुंगल में था। उसका समाधान पंजाब में ही तलाशा गया था।  हमेशा की तरह सरहद पार से खालिस्तानियों को दाना पानी मिलता रहा था। जब भारत अफगानिस्तान में तालिबान से बातचीत के अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों को समर्थन देता है तो भारत सरकार कश्मीर पर बात करने से क्यों घबराती है। भारत सरकार को उतरी आयरलैण्ड से सबक लेना चाहिए जिसने हिंसक हो जाने की हदे पार करदी थी। ब्रिटेन सरकार ने इस समस्या को सौहाद्रपूर्ण तरीके से ही सुलझाया था। कश्मीर समस्या का हल कश्मीर से ही निकलेगा।वहां हुर्रियत जैसा राजनीतिक समूह और
मजबूत सिविल सोसाइटी के लोग भी है जिन्होंने इस विवाद पर शांतिपूर्ण पहल की है।  अब तक की समस्त  सरकारों ने मान लिया था कि आतंक को खत्म करने के लिए आतंकियों का सफाया जरुरी है। इस नीति ने आतंकियों को तो कम किया परन्तु भारतीय फौज का भी काफी  नुक़सान किया लेकिन  नए हथियार उठाने वालों को हतोत्साहित नहीं कर पाये।   
कश्मीर चुनावी समस्या नहीं है जिसे चुनाव बाद हाशिये पर रख दिया जाए। न ही इसे किसी युद्ध से सुलझाने की जोखिम ली जा सकती है। भारत पाकिस्तान दोनों का ही परमाणु संपन्न होना युद्ध को किस विस्फोटक अंत की और ले जा सकता है , सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। मोस्ट फेवर्ड नेशन ' का दर्जा पाकिस्तान से वापस लेकर भारत ने देर से ही सही, एक सही दिशा में कदम उठाया है। अब इसे आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने का साहस और कर लेना चाहिए। यह न हो सके तो  कम से कम सिंधु जल संधि को ही निरस्त कर देना चाहिए। जब तक आप अपनी ताकत नहीं दिखाएंगे तब तक कमजोर ही समझे जायेगे।  
भारत के नेताओ को एक बात और समझ लेनी चाहिए कि ' शी जिनपिंग ' को झूला झुलाने , नवाज शरीफ के पारिवारिक विवाह में बिन बुलाये  शामिल  होने या डोनाल्ड ट्रंप से गले मिलना  उन्हें ख़बरों में तो ला देता है परन्तु कूटनीतिक बढ़त नहीं दिलाता है। 
सनद रहे ! 1989 से 2018 तक 47000 लोग कश्मीर में आतंकवाद का शिकार हो चुके है। गायब हुए या पलायन कर गए लोगों की संख्या इसमें शामिल नहीं है। मानवाधिकार संगठन इस संख्या को तिगुनी बताते है। नरक बन चुके इस राज्य को मुख्यधारा में लाने के लिए कड़े कदम उठाने ही होंगे।
  बहादुर शाह जफ़र ने कश्मीर के लिए  कभी फ़ारसी में  यु ही नहीं कहा था ' गर फिरदौस बर रुए जमीं अस्त , हमीं अस्त ओ हमीं अस्त ओ ! ( धरती पर कही स्वर्ग है तो वह यही है यही है ) अपनी जन्नत में आग लगाने वालों को हम माफ नही करेंगे । अपने सुरक्षाबलों के जीवन की रक्षा के लिए हर मुमकिन ताकत का इस्तेमाल करेंगे !   यह संकल्प सरकार का भी है और इस देश के आम नागरिक का भी ! 

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