Wednesday, February 13, 2019

अभिनय की आधी सदी : अमिताभ बच्चन

तारीखों के साथ घटनाएं न जुडी हो तो वे सिर्फ कोरी  तारीख ही रहती है। किसी प्रसंग के जुड़ने से तारीखे  इतिहास बन जाया करती है। 15 फरवरी एक ऐसी ही तारीख है जिसने अमिताभ बच्चन की जिंदगी तय कर दी थी। अमिताभ अपनी अच्छी भली नौकरी छोड़ ख्वाजा अहमद अब्बास के दर पर इस उम्मीद से पहुंचे थे कि यहाँ जरूर काम मिल जाएगा।  परन्तु इतना आसान नहीं था। ख्वाजा साहब ने उन्हें यह कह कर लौटा दिया कि साहबजादे ! पहले अपने वालिद से फिल्मों में काम करने के लिए  लिखित अनुमति की चिट्ठी लेकर आओ। चिट्ठी आई और अमिताभ नाम मात्र की फीस पर ' सात हिन्दुस्तानी ' के लिए अनुबंधित कर लिए गए। तारीख थी 15 फ़रवरी 1969 ! महानायक 15 फ़रवरी 2019 को फिल्मोद्योग में अपनी अभिनय यात्रा के  पचास वर्ष पूर्ण कर रहे है।  
परदे पर आने से  पहले मृणाल सेन उनकी आवाज भुवन शोम ' में उपयोग कर चुके थे । यह वही आवाज थी जिसे आल इंडिया रेडियो ने खारिज कर दिया था । यहां अमीन सयानी ने अमिताभ को पीछे छोड़ कर एनाउंसर की नॉकरी हासिल की थी । ' जुरासिक पार्क ' में सैम निल एक जगह कहते हैं ' जिंदगी अपना रास्ता ढूंढ लेती है ' अमिताभ के संदर्भ में आज हम कह सकते हैं कि नियति अपना रास्ता तलाश लेती है ।  उस दौर की परिस्थितियों का  अगर आज आकलन किया जाय तो समझ आता है कि कायनात उन्हें सफल और लोकप्रिय  होते देखना चाहती थी ! 
' सात हिन्दुस्तानी ' शुरुआत थी एक बड़े सफर की जिसमे आगे कई उतार चढ़ाव आना थे। अगली ही फिल्म में वे उन लोगों के साथ काम कर रहे थे जो उस दौर के बड़े नाम थे।  वहीदा रहमान की सुंदरता पर मोहित अमिताभ को ' रेशमा और शेरा ' में अपनी चहेती  नायिका के साथ एक ही फ्रेम में आना पुरूस्कार से कम नहीं था। आज भी जब  उनसे दुनिया की सबसे सुंदर महिला का नाम पूछा जाता है तो वे आदर के साथ वहीदा रहमान का ही जिक्र करते है।
 ' आनंद ' का घटना इस लिहाज से भी  महत्वपूर्ण था कि यह  ऋषिकेश मुखर्जी जैसे निर्देशक के साथ नये रिश्ते की नींव रखने की शुरुआत थी जिसकी वजह से अमिताभ की कुछ कालजयी फिल्मे इस दौर में सामने आई। साथ ही सामने आया अमिताभ का भावप्रणय अभिनय। वक्त के कई मुकाम ऐसे भी आये जब अमिताभ अपनी राह से भटकने लगे या यह कहे कि ' एंग्री यंग ' के मुखोटे ने उनकी ' इंटेंस एक्टिंग ' पर ग्रहण लगा दिया तब तब उनके लिए दुआ की जाने लगी कि उन्हें ऋषि दा जैसे निर्देशक के यहाँ हाथ जोड़कर काम माँगना चाहिए। ऋषिकेश मुखर्जी इकलौते निर्देशक थे जिन्होंने बच्चन जी को दस फिल्मों में निर्देशित किया था। इन सभी फिल्मों की विशेषता थी शानदार कहानी , लाजवाब अभिनय और मीनिंगफुल माधुर्य से सजे गीत। उनकी लोकप्रिय ब्लॉकबस्टर से उलट इन फिल्मों में  वे  किसी खलनायक की कुटाई पिटाई करते नजर नहीं आते। समय के बहाव और उनकी मेहनत से  गढ़ी छवि ने बाद के वर्षों में अभिनय की इस रेंज को लील लिया। यधपि उनके इंटेंस अभिनय के शेड  रह रहकर सामने आते रहे है , फिर चाहे  वे ' ब्लैक ' के देवराज सहाय के रूप में हो या ' पा ' के आरो के रूप में  या ' सरकार ' के सुभाष नागरे के रूप में।शुक्र है !  जब जब सितारा अमिताभ उन पर हावी होने लगता है तब तब अभिनेता अमिताभ उन्हें आलोचना से बचाने सामने आ जाता है। 
सलीम खान ने ' जंजीर ' लिखी थी और क्रेडिट्स में जावेद अख्तर का नाम दिया । इस लेखक जोड़ी ने राजेश खन्ना की ' हाथी मेरे साथी ' भी लिखी थी। समय का यह ऐसा दौर था जब राजेश खन्ना खुद  को भगवान मान चुके थे और  निसंदेह वे लोकप्रियता के आसमान पर थे । उनके अहं की कोई इंतेहाँ नहीं थी। काका के अहंकार ने सबसे पहले सलीम जावेद को आहत किया था। इस घटना के बाद इन दोनों ने तय कर लिया कि वे बच्चन को खन्ना से बड़ा स्टार बनायेगे। समस्या यह थी कि सत्तर के दशक का कोई भी अभिनेता इस फिल्म को करने को राजी नहीं था धरमजी , देव साहब , राजकुमार तो दूर नवीन निश्चल जैसे एक्टर भी इस कहानी का हिस्सा बनने को तैयार नहीं थे। चरित्र अभिनेता प्राण और ओमप्रकाश की सिफारिश पर अनमने मन से प्रकाश मेहरा ने ' जंजीर ' बनाई।  बस उसके बाद का इतिहास बताने की जरुरत नहीं है। 


 सलीम जावेद की जोड़ी ने अमिताभ बच्चन के लिए अपनी पार्टनरशिप शुरू की थी और उनके लिए ही लिखी स्क्रिप्ट को लेकर मतभेद के चलते उसे ख़त्म किया। ' मि इंडिया ' की पटकथा अमिताभ को ध्यान में रखकर लिखी गई थी परन्तु उनके इनकार के बाद पनपी  गलतफहमियों ने इस सुपरहिट जोड़ी को अलग कर दिया।
  हरेक उतार के बाद जिस तरह अमिताभ ने वापसी की है यह उनके  सहज व्यक्तित्व की उपलब्धि रही है। लोग हमेशा जानने को उत्सुक रहे है कि क्या चीज है जो उन्हें अमिताभ बच्चन बनाती है। टूटकर भी न बिखरना उनके डी एन ए में ही घुला हुआ है संभवतः। डॉ हरिवंशराय बच्चन ने एक साक्षात्कार में अपने पुत्र के व्यक्तित्व को कुछ इस तरह परिभाषित किया था कि अमिताभ चीजों को गहराई तक उतर कर समझने की कोशिश करते है फिर वह चाहे आधुनिक कविता हो या जिंदगी , शायद इसीलिए वे हार नहीं मानते। यही समझ उन्हें उस समय और  परिपक्व बना देती है जब वे शादीशुदा होते हुए प्रेम करने का दुस्साहस कर बैठते है और बात बिगड़े उससे पूर्व अपने घर लौट आते है। 
अमिताभ के प्रशंसकों को अक्सर इस बात का गिला रहा है कि उनका इतना प्रभाव और पहुँच होने के बाद भी उन्होंने भारतीय सिनेमा के  ख्यातनाम निर्देशकों के साथ काम नहीं किया। यधपि उन्होंने अब तक दो सौ से अधिक फिल्मों में काम किया है परन्तु बिमल रॉय , बासु चटर्जी , राजकपूर , सत्यजीत रे एवं गुलजार   के साथ उनकी एक भी फिल्म नहीं है। गुलजार साहब ने तो कोशिश भी की थी परन्तु पटकथा से आगे बात नहीं बढ़ पाई। सत्यजीत रे उनके लिए फिल्म बनाना चाहते थे परन्तु संकोच के चलते पहल नहीं कर पाए। उन्होंने जया बच्चन को अपनी हिचकिचाहट कुछ इस तरह बताई थी कि ' में जमाई बाबू को लेकर एक फिल्म बनाना चाहता हु परन्तु उनकी मार्केट प्राइस अदा करने की मेरी हैसियत नहीं है !
 फोर्ब्स पत्रिका के धनाढ्यों की सूची में टॉप टेन में रहे अमिताभ अपनी सिनेमाई छवि में 'अभिजात्य विरोधी ' भूमिकाओं में ज्यादा सराहे गए। मेगा स्टार , मिलेनियम स्टार जैसे विशेषणों के बावजूद उनके पैर हमेशा  जमीन पर नजर आये है। के बी सी में सामान्य से प्रतियोगी को विशिष्ट होने का अहसास दिलाती उनकी ' बॉडी लैंग्वेज ' हो  या फिर उनके ब्लॉग पर आने वाले पाठकों को सहजता से  जवाब देने की शैली , उन्हें देश विदेश के आमजन में ऐसे ही लोकप्रिय नहीं बनाती। इन सबसे जुदा एक गुण जो उन्हें अपने समकालीन अभिनेताओं से अलग खड़ा करता है वह है अनुशासन ! काम के प्रति समर्पण ! फिल्मों से इतर जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी उनके इस गुण को सराहा अपनाया जाता है।  जनमानस में इतनी लोकप्रियता और स्नेह अन्य सितारों के लिए अब भी एक स्वप्न से कम नहीं है।
उनके लाखों प्रशंसकों की यही कामना है कि अपने हॉलीवुड के समकालीनों मॉर्गन फ्रीमेन , जैक निकोलसन , क्लिंट ईस्टवूड और रोबर्ट रेडफोर्ड की तरह वे नए चरित्रों में उतर कर सिनेमाई माध्यम को पचास साला सफर के बाद भी रोशन करते रहे। 

No comments:

Post a Comment

दिस इस नॉट अ पोलिटिकल पोस्ट

शेयर बाजार की उथल पुथल में सबसे ज्यादा नुकसान अपने  मुकेश सेठ को हुआ है। अरबपतियों की फेहरिस्त में अब वे इक्कीसवे नंबर पर चले गए है। यद्ध...