नब्बे और शताब्दी के दशक के आते आते प्रतिभाशाली महिला फिल्मकारों का सूखा हरियाली में बदल चूका था। न सिर्फ निर्देशन बल्कि कहानी और पटकथा लेखन में भी वे अपनी धाक जमा रही थी। कल्पना लाजमी ( रुदाली , दरमिया , दमन ) दीपा मेहता (फायर , अर्थ , वाटर ) मीरा नायर ( मिसिसिपी मसाला ,नेमसेक ,मानसून वेडिंग , सलाम बॉम्बे ) गुरिंदर चड्ढा ( बेंड इट लाइक बेकहम ,ब्राइड एंड प्रेजुड़ाइस , वाइसराय हाउस ) फराह खान ( मैं हूँ ना , ओम शांति ओम ,तीस मार खां , हैप्पी न्यू ईयर) तनूजा चंद्रा ( दुश्मन , संघर्ष ) किरण राव ( असिस्टेंट डाइरेक्टर -लगान , स्वदेस , डाइरेक्टर -धोबी घाट) रीमा कागती ( हनीमून ट्रेवल्स , गोल्ड ,असिस्टेंट डायरेक्टर लक्ष्य , जिंदगी ना मिलेगी दोबारा , दिल चाहता है ) अनुषा रिजवी (पीपली लाइव ) मेघना गुलजार ( फिलहाल ,जस्ट मैरिड , दस कहानियां , तलवार , राजी ) जोया अख्तर ( लक बाई चांस , जिंदगी ना मिलेगी दोबारा ) गौरी शिंदे ( इंग्लिश विंग्लिश , डिअर जिंदगी ) लीना यादव ( शब्द , तीन पत्ती , पार्चड ), अलंकृता श्रीवास्तव (टर्निंग 30 , लिपस्टिक अंडर बुरका ) , नंदिता दास ( फिराक , मंटो )आदि। अगर इसमें क्षेत्रीय भाषा की फिल्मकारों को जोड़ दिया जाए तो यह फेहरिस्त और लंबी जा सकती है। यहाँ हालिया प्रदर्शित फिल्म ' मनमर्जियां ' के एक प्रसंग का जिक्र करना जरुरी है। इस फिल्म की कहानी कनिका ढिल्लों ने लिखी है। निर्माता आनद एल राय चाहते थे कि फिल्म को कनिका ही डायरेक्ट करे क्योंकि वे फिल्म की क्रिएटिव डायरेक्टर भी थी । परन्तु अभिषेक बच्चन अपनी कमबैक फिल्म में किसी नए डायरेक्टर की जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। उन्हें अनुराग कश्यप पर ज्यादा भरोसा था , चुनांचे फिल्म इंडस्ट्री को एक बढ़िया स्टोरी राइटर तो मिला परन्तु एक बढ़िया महिला डायरेक्टर से वंचित होना पड़ा।
इन सभी फिल्मकारों में सिर्फ एक समानता है कि इन्होने बनी बनाई लीक पर चल रही कहानियों के बजाय ' रिअलिस्टिक कहानियों ' को प्राथमिकता दी। सुनने में अजीब और अविश्वसनीय लग सकता है कि फिल्म माध्यम में सदियों आगे चलने वाला हॉलीवुड इस क्षेत्र में बॉलिवुड से कही पीछे है। वहां महिलाओ को अपने उचित प्रतिनिधित्व के लिए अभी भी संघर्ष करना पड़ रहा है। सिर्फ अमेरिकन फिल्मों की ही बात की जाए तो पिछले दस वर्षों में किसी भी महिला निर्देशक ने एक से अधिक फिल्म को डाइरेक्ट नहीं किया है । प्रतिभा का ऐसा अकाल रहा है कि कैथरीन बिगेलो ( हर्ट लॉकर 2009) के बाद आज तक किसी महिला निर्देशक को ऑस्कर नहीं मिला है।
पिछले दो वर्षों में जब से वीडियो स्ट्रीमिंग साइट ' नेटफ्लिक्स ' और ' अमेज़न प्राइम ' ने भारत में अपने पैर पसारे है तब से फिल्मकारों को खासकर रचनात्मक और प्रतिभाशाली महिला फिल्मकारों को एक नया मंच मिल गया है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कुंवर नारायण और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteमहिलाएं हर क्षेत्र में बढिया काम कर रहीं हैं.
ReplyDeleteसार्थक आलेख
http://rohitasghorela.blogspot.com/2018/09/blog-post_19.html