Friday, August 17, 2018

थोड़ा है थोड़े की जरूरत है !



आज के दिन ( 15th August ) देशभक्ति का सूचकांक अपने उच्चतम बिंदु को स्पर्श कर रहा है। इसके पहले यह गणतंत्र दिवस पर कुलांचे भर चूका है। भारत का पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच हो तो यह आल टाइम हाई पर चला जाता है।  बाकी दिन इसकी सेहत कैसी रहती है , शायद ही किसी का ध्यान जाता हो। अचानक तीन दिन से अखबारों के विज्ञापनों में तिरंगा नुमाया होने लगा है। दो पहिया , तिपहिया चारपहिया वाहन कंपनियों , तेल मंजन शकर साबुन नमकीन  बनाने वालों ने देश को बताना आरम्भ किया कि वे भी  देश भक्त है और देशभक्ति के हवन में कुछ टका छूट देकर अपना योगदान देना चाहते है। इ कॉमर्स साइट्स ने पंद्रह  दिन पहले ही याद दिलाना आरम्भ कर दिया था कि स्वतंत्रता दिवस के पुण्य अवसर पर वे भी परोपकारी हो जाना चाहते है। अगर देश की जनता चाहती है कि वे वाकई परोपकारी हो जाये तो उन्हें इन साइट्स पर डटकर खरीदारी करना होगी। देश भक्ति के  इस हल्ले में देश के कुछ बड़े रिटेल चेन स्टोर भी पीछे नहीं रहना चाहते है। ' सबसे सस्ते दिन ' का नारा देकर वे महीने भर का स्टॉक दो दिन में बेच देना चाहते है। देश की मुख्यधारा में जुड़ने के उनके विनम्र प्रयास को संशय से नहीं देखा जाना चाहिए। मोबाइल हैंड सेट बनाने वाली कंपनिया अब इस हालत में नहीं रही है कि वे राष्ट्रीय अखबारों में फूल पेज के विज्ञापन देकर अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन कर सके।  उनका यह अधिकार उनके चीनी प्रतिद्वंदियों ने छीन लिया है। यही हाल पतंग बनाने वाले , रौशनी की लड़ियाँ बनाने वाले और फटाके बनाने वाले देसी कारीगरों का हुआ है। वे अपने चीनी भाइयों को कारोबार सौंपकर पहले ही तीर्थयात्रा पर निकल चुके है। इन लोगों से देशभक्ति की उम्मीद करना बेकार है। वैसे ही बी एस एन एल से उम्मीद करना कि  रोजाना  दामन छुड़ा कर भाग रहे अपने उपभोक्ताओं को अपने पाले में रोकने के लिए वह शुभकामनाओ के अतिरिक्त कुछ दे पाएगा। 
देशभक्ति की ज्वाला को दिन  भर धधकाने के लिए मनोरंजक चैनलों के प्रयासों की उन्मुक्त मन से सराहना की जाना चाहिए। भले ही हमें अंग्रेजों ने मुक्ति दी है परन्तु आज के दिन वे पाकिस्तान से युद्ध पर बनी कुछ सच्ची कुछ काल्पनिक फिल्मों का ' फिल्म फेस्टिवल ' आयोजित न करे तो उनपर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा कायम होने की संभावना बन सकती है। आज के दिन चैनल सर्फ़ करते समय देशवासियों के रक्त में उबाल लाने वाली फिल्मे भी नजर आ सकती है। किसी चैनल पर सनी देओल पाकिस्तान में  हैंडपंप उखाड़ते  नजर आ सकते है तो किसी चैनल पर ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह और इंस्पेक्टर शिवाजीराव  वाघले प्रलयनाथ की मिसाइल के फ्यूज निकालते देखे जा  सकते है। इस ' जंगे आजादी के इस्तकबाल ' में अगर विविध भारती  और ऍफ़ एम् चैनल सुर न मिलाये तो देशभक्ति की आंच शायद मंद पड़ सकती है।  अलसुबह ' पूरब पश्चिम '  और 'उपकार ' के गीत न बजे तो समां नहीं बंधता। आज के दिन कसबे से लेकर देश की राजधानी तक से  निकलने वाले अखबारों में छपे ' सरपंच पति '  ' सांसद प्रतिनिधि के जीजाजी ' के सचित्र शुभकामना संदेशों को न पढ़ना भी घोर अपराध माना जा सकता है। जो लोग आज के दिन अपनी फेसबुक पर तिरंगा पेस्ट नहीं करते , जो लोग अपने व्हाट्सप्प पर प्रोफइल में तिरंगा या ' आई लव इंडिया ' जैसा स्टेटस नहीं डालते वे देशभक्त नहीं माने जा सकते। बदलते वक्त के साथ देशभक्ति के मायने भी बदल गए है । हमारे पूरखों में यह स्वाभाविक थी परंतु हमारी पीढ़ी के लिए यह आभासी दुनिया की ही एक ' इवेंट' बन चुकी है । रोज डे ' प्रपोज़ डे , फ़्रेंडशिप डे , वेलेंटाइन डे जैसा कोई इवेंट ! उन्मुक्त आकाश से निकलकर अब यह संकरी गलियों में प्रवेश कर गई है । हम क्या खाते , पहनते , सोंचते , पसंद करते हैं , किसे वोट देते है , किससे प्यार करते है से तय होता है कि हमारी देशभक्ति किस डिग्री की है । निश्चित रूप से हम आजादी और देशभक्ति को लेकर रास्ता भटक चुके है । ये महज दो शब्द नही है वरन हमारे अस्तित्व के कारक है । अनेकता में सामंजस्य हो , सामाजिक न्याय के लिए आग्रह हो और लोकतंत्र बगैर किन्तु परंतु के हमारी आबोहवा मे घुला हुआ  हो ,  इससे ज्यादा हमे कुछ नही चाहिए । 

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