फिल्म थ्री इडियट का गीत ' बहती हवा सा था वो , उड़ती पतंग सा था वो ' पार्श्वगायक किशोर कुमार के अवसान के दो दशक बाद आया था परन्तु इस हरफनमौला व्यक्तित्व पर सटीक बैठता है। किशोर अगर उस जानलेवा हार्ट अटैक को झेल गए होते तो इस बरस (4 अगस्त ) एक कम नब्बे के हो गए होते। अनिश्चित जीवन को ग़लतफ़हमी में अक्सर स्थायी मान लिया जाता है। तयशुदा जिंदगी जीते हुए लोग जीवन के उतार चढ़ावों को नियति मानकर खुद को खर्च करते रहते है। परन्तु कुछ होते है जो अपने सपनो को हासिल किये बगैर दुनिया को टाटा नहीं करते। किशोर का इकलौता सपना पार्श्व गायकी था और अपने आदर्श ' के एल सहगल ' से मुलाक़ात। यह मुलाक़ात कभी हो न सकी और किशोर एक्टर बन गए। जबकि सहगल की ही तरह वे नेचुरल गायक थे। गायकी में जिस संजीदगी और अनुशासन की दरकार थी वह उनमे जन्मजात नहीं थी। खिलंदड़ और अल्हड़ता किशोर के व्यक्तित्व में ताउम्र शामिल रहे। बड़े भाई अशोक कुमार स्टार हैसियत वाले थे तो किशोर को फिल्मों में नायक के रोल आसानी से मिल गए। यह वह दौर था जब ' कॉमेडी ' फिल्मों में फीलर का काम किया करती थी परन्तु किशोर ने अपनी चुलबुली हरकतों से खुद के लिए ' कॉमिक एक्टर ' का खिताब हासिल कर लिया था। किशोर की फिल्मे चली और बहुत चली। इस दौर में ऐसा नायक कहाँ मिलता जो मजाकिया भी हो ,गाना भी गा सकता हो और भरपूर मनोरंजन भी कर सकता हो। अपनी फिल्मों से उन्होंने हास्य को एक कला में विकसित कर दिया था , न्यू देहली ( 1956 ) श्रीमान फंटूश (1956 ) आशा ( 1957 ) चलती का नाम गाडी ( 1958 ) झुमरू ( 1961 ) हाफ टिकिट ( 1962 ) पड़ोसन ( 1968 ) जैसी फिल्मे उनके अपरंपरागत चेहरे और मजाकिया हावभाव की वजह से दर्शकों को बेहद लुभाती थी। सही मायने में वे ब्रिटिश एक्टर बॉब हॉप और अमेरिकन एक्टर डेनी के का भारतीय अवतार बन चुके थे।
किशोर की गायकी को सबसे पहले अनुभवी संगीतकार खेमचंद प्रकाश ने पहचाना था या कह सकते है निखारा था। उन्होंने ही किशोर को उनके जीवन का पहला गीत ' जगमग जगमग करता निकला चाँद पूनम का प्यारा ( जिद्दी 1948 ) दिया था। आज इस गीत को सुनते हुए कोई भी यह अंदाजा लगा सकता है कि सहगल उनके मिजाज पर किस हद तक हावी थे। 1931 में जर्मन फिल्म मेकर फ्रैंक ओस्टेन द्वारा निर्देशित अशोक कुमार और देविका रानी अभिनीत ' जीवन नैय्या ' के लिए अशोक कुमार ने गाया था ' कोई हमदम ना रहा कोई सहारा ना रहा , हम किसी के ना रहे कोई हमारा ना रहा ' यह गीत किशोर कुमार को बचपन से ही बहुत पसंद था। चूँकि यह गीत कठिन श्रेणी का था , इसमें चौदह मात्राए थी -संगीत के लिहाज से दुरूह परन्तु एक महीने घर पर रियाज करते हुए किशोर ने इसे ' झुमरू '(1961 ) में कुछ इस तरह गाया कि आज साठ वर्ष बाद भी इसकीताजगी और उदासी बरकरार है।
कभी कभी लगता है कि किशोर कुमार को पिता पुत्र बर्मन का साथ नहीं मिला होता तो क्या होता ? खेमचंद प्रकाश ने किशोर की प्रतिभा को पहचाना था लेकिन उन्हे ऊंचाई पर बैठाया सचिन देव बर्मन ने। आराधना (1969 ) राजेश खन्ना के लिए लॉन्चिंग पैड मानी जाती है तो उतनी ही किशोर कुमार के लिए भी महत्वपूर्ण रही है। ' रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना ' या ' मेरे सपनो की रानी कब आएगी तू ' ऐसे गीत है जो आसानी से बिसारे नहीं जा सकते। किशोर के टैलेंट पर जितना भरोसा एस डी को था उतना ही उनके पुत्र राहुल ( आर डी ) को भी था। आर डी ने किशोर से उन लोगों के लिए भी गवा दिया जिन पर मोहम्मद रफ़ी की आवाज सूट करती थी। धर्मेंद्र ( दो चोर , ब्लैकमेल ) संजीव कुमार ( सीता और गीता , अनामिका ) शशि कपूर ( आ गले लग जा ) जीतेन्द्र ( कारवां , परिचय , जैसे को तैसा ) यही नहीं नए नवेले रणधीर कपूर , नविन निश्चल , विजय अरोरा , विनोद मेहरा , अमिताभ बच्चन , राकेश रोशन आदि भी किशोर के गीतों पर होंठ हिलाते नजर आये।
अपनी आवाज को नायक के हिसाब से ' मोल्ड ' करने का हुनर किशोर का नैसर्गिक गुण था। कई बार उन्हें सनकी और तुनकमिजाजी समझा गया परन्तु उनके अंदर पसरी गहरी गंभीरता को कम ही लोगों ने नोटिस किया। उनकी निर्देशित ' दूर गगन की छाँव में ' (1964 ) उनकी मूडी और सनकी छवि के मिथक को ध्वस्त कर देती है। जो लोग मानते है कि किशोर सिर्फ प्रदर्शनकारी गानो की वजह से ही याद किये जायेगे तो इस धारणा को तोड़ने के लिए भी पर्याप्त गीत मौजूद है। शुरूआती गीत ' मेरी नीदों में तुम मेरे ख़्वाबों में तुम (नया अंदाज 1956 ) से लेकर ' जीवन से भरी तेरी आँखे ' (सफर 1970 ) और ' बड़ी सूनी सूनी है जिंदगी '( मिली 1975 ) जैसे मधुर मद्धम आवाज से सजे गीत सदियों तक सुधि श्रोताओ के लिए मरहम का काम करते रहेंगे।
रोचक पोस्ट !
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