Tuesday, August 21, 2018

पराया माल अपना !

सफलता के लिए जायज तरीके आजमाना सामान्य बात  है। सफल की नक़ल भी स्वीकार्य है अगर उसे अपनी मौलिकता के साथ हासिल करने के प्रयास किये गए हो तो ।  किसी के आईडिया को चुराकर अपने नाम से चला देना इंटरनेट युग में संभव सबसे आसान काम हो गया है परन्तु इतना ही आसान उसका पकड़ा जाना भी संभव हुआ है।  दुनिया के हरेक व्यवसाय में सफलता के अनुसरण की स्वाभाविक प्रवृति रही है ।  एप्पल के कर्ता धर्ता बनने से पहले स्टीव जॉब ने एनीमेशन  कंपनी ' पिक्सर एनीमेशन स्टूडियो ' बनाई थी।  इस कंपनी ने पारंपरिक हाथ  से  बनाये एनीमेशन को छोड़कर कंप्यूटर की मदद से एनीमेशन फिल्मे बनाने की शुरुआत की । नब्बे के दशक तक एनीमेशन की दुनिया के सरताज ' वाल्ट डिज़्नी ' भी अपने एनीमेशन के लिए आर्टिस्ट पर ही निर्भर थे।  परन्तु ' पिक्सर ' की घनघोर सफल फिल्म ' टॉय स्टोरी (1995 ) ने एनीमेशन की दुनिया के नियम बदल दिये।  आज एनीमेशन की दुनिया कंप्यूटर में सिमट गई है। एनीमेशन बनाने वाली सभी कंपनियां और स्टूडियो कंप्यूटर जनरेटेड इमेजेस से सफलता के नए कीर्तिमान रच रहे है।  अपनी मौलिकता की वजह से सभी कंपनियों के पास काम की कमी नहीं है। 
पाकिस्तानी फिल्म ' एक्टर इन लॉ (2016 ) इस समय भारत में अलग  कारणों से  चर्चा में है। पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री पिछले कुछ समय से अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है ।  वर्षभर में  ब- मुश्किल   पचास फिल्मे बनाने वाला पाकिस्तानी फिल्म उद्द्योग भारतीय फिल्मों की तस्करी के चलते अपने  अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। बावजूद इसके  वहाँ की कई फिल्मे और गीत भारतीय फिल्मों के लिए प्रेरणा या कहे आसान शिकार बनते रहे है । कुछ समय पूर्व एक भारतीय  टीवी चैनल ने पाकिस्तानी सीरियल का भारत में प्रदर्शन करना आरम्भ किया था। अपनी मौलिकता और मानवीय रिश्तों की तह तक जाने की कहानियों पर आधारित इन धारावाहिकों ने खासी लोकप्रियता भी अर्जित की थी। इन धारावाहिकों ने यह भी रेखांकित किया था कि जुदा मजहब  और खींची सरहद के बावजूद सतह के नीचे सबकुछ एकसार है।  सितंबर में प्रदर्शित होने वाली टी सीरीज निर्मित फिल्म ' बत्ती गुल मीटर चालू ( शाहिद  कपूर , श्रद्धा कपूर ) पर आरोप लगा है कि वह ' फ्रेम -टू - फ्रेम ' पाकिस्तानी फिल्म ' एक्टर इन लॉ ' की कॉपी है। पाकिस्तानी निर्माता नबील कुरैशी का कहना है कि न तो उनसे फिल्म के अधिकार ख़रीदे गए न ही उन्हें क्रेडिट देने की ओपचारिकता निभाई गई।  एक तरफ हम चाहते है कि दुनिया हमारी फिल्मों को हॉलीवुड फिल्मों की तरह सर आँखों पर बैठाये दूसरी तरफ कुछ फिल्मकार इस तरह चोरी के माल पर अपनी मोहर लगाकर वाही वाही लूटना चाहते है। दोनों बाते एकसाथ नहीं हो सकती। किसी विचार से प्रेरणा लेना और किसी कहानी को ज्यों का त्यों परोस देना अलग अलग बाते है। यह पहला प्रसंग नहीं है जब किसी भारतीय फिल्मकार ने इस तरह हाथ की सफाई दिखाई है। 1985 में आई लोकप्रिय फिल्म ' प्यार झुकता नहीं ( मिथुन , पद्मिनी कोल्हापुरी ) 1977 में बनी पाकिस्तानी फिल्म ' आईना "  की सीन टू सीन और संवाद तक कॉपी की हुई थी।  


इसी तरह 1977 में पाकिस्तानी सुपरहिट पारिवारिक ड्रामा फिल्म ' सलाखे ' को हिन्दुस्तानी निर्देशक अनिल सूरी ने कार्बन पेपर लगाकर ' बेगुनाह (1991 ) के नाम से भारत में बना दिया था। राजेश खन्ना, फराह अभिनीत यह फिल्म बाप बेटी के रिश्ते पर आधारित थी। सूरी साहब ने इस फिल्म के लिए गीतकार को भी तकलीफ नहीं दी।  सीन, संवाद के साथ गीत भी हूबहू उठा लिए थे। हमारे कुछ सफल और लोकप्रिय संगीतकारों ने भी  पाकिस्तानी कलाकारों   नुसरत फ़तेह अली , हसन जहांगीर , नाजिया हसन ,  रेशमा के  प्राइवेट एलबमों से  और नई पुरानी पाकिस्तानी  फिल्मों से संगीत  उठाने में कभी शर्म महसूस नहीं की। नदीम - श्रावण , अनु मलिक , प्रीतम आदि पर लगे चोरी और सीनाजोरी के  आरोपों को इंटरनेट पर सरलता से तलाशा जा सकता है। 
सामान्य सिने दर्शक के पास कभी इतना समय नहीं रहता कि वह फिल्म को लेकर कोई शोध करे। वह शुद्ध मनोरंजन की आस में सिनेमा का रुख करता है। लेकिन जब कभी उसे पता चलता है कि जिस कहानी या गीत पर उसने वाह -वाह लुटाई थी उसका वास्तविक हकदार सरहद पार बैठा है तो उसका विश्वास अपने देश के फिल्मकार के प्रति दरक जाता है। 

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