भानु रेखा गणेशन जिन्हे अब सिर्फ रेखा नाम से जाना जाता है। वे ऐसे माता पिता की संतान थी जिन्होंने विधिवत विवाह नहीं किया था । इस तरह के बच्चे सारी उम्र एक अपराध बोध लिए घूमते है। भारतीय परिवेश में अंततः माँ को ही दोहरी भूमिका निभानी होती है। इस तरह के बच्चे आमतौर पर समय से पहले परिपक्व हो जाते है , साथ ही उनका मिजाज भी विद्रोही हो जाता है। रेखा के साथ भी यही हुआ। उन्हें महज तेरह वर्ष की उम्र में ही कैमरे के सामने धकेल दिया गया था क्योंकि सात लोगों के परिवार का पेट भरने के लिए किसी को तो कमाना ही था। उनकी पहली हिंदी फिल्म ' सावन भादो ' जब आई तब वे मात्र सोलह बरस की थी। न ठीक से हिंदी बोल पाती थी न अपनी पसंद का खा सकती थी क्योंकि दक्षिण भारत और बम्बई के खान पान में जमीन आसमान का अंतर था। फ़िल्मी पत्रिकाओं ने उन्हें ' मोटी बतख ' कहकर पुकारा तो उनकी ही फिल्म के नायक ने उन्हें ' काली कलूटी ' का खिताब दिया। |
आज अगर रेखा के बारे में बात की जाये और उनके जीवन को कुछ शब्दों में समेटने का प्रयास किया जाए तो वह होगा ' पहाड़ी नदी '. पहाड़ों पर बहने वाली नदिया अक्सर वेगवान और चंचल होती है। वे एकदम से उथली हो जाती है और अचानक से गहरी। रेखा के स्वाभाव में परस्पर विरोधी भाव मौजूद रहे है। अल्हड़ता और गंभीरता।
वे सारी उम्र ऐसी ही रहती , मोटी , अपनी शक्लों सूरत से बेपरवाह अगर उनके जीवन में अमिताभ का आगमन नहीं हुआ होता। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के प्रसिद्ध नाटक ' पिगमेलियन ' में प्रमुख पात्र प्रो हिंगिस एक उज्जड गंवार लड़की को तराश कर इतना सभ्य बना देते है कि राजपरिवार भी उसे नहीं पहचान पाता। अमिताभ के आभा मंडल का प्रभाव था कि रेखा ने उसमे खुद को तलाशा और निखर गई। अमिताभ रेखा के जीवन में प्रो हिंगिस की तरह ही आये और चले भी गए। ठीक ' पिगमेलियन ' के अंत की तरह।
जब रेखा खुद को निखार रही थी तब हॉलिवुड में ' जेन फोंडा ' ने अपनी देह के कायाकल्प का वीडियो जारी किया था। जेन फोंडा से प्रेरित होने वाली रेखा पहली भारतीय नायिका थी जिन्होंने रेखा :माइंड एंड बॉडी टेम्पल नाम से किताब लिखी थी। अपनी देह को मंदिर मानने की बाते भारतीय आख्यानों में पहले से मौजूद है परन्तु उस पर अमल करने वाली रेखा संभवतः पहली नायिका बनी। उन्होंने खुद को इतना निखारा कि सौंदर्य के नए प्रतिमान स्थापित होते चले गए। उमराव जान ' कामसूत्र ' खूबसूरत ' उत्सव ' आस्था - अभिनय के साथ उनकी देह के सुंदरतम हो जाने के रेकॉर्डेड दस्तावेज की शक्ल में चिर स्थाई हो गए है। एक नेशनल अवार्ड तीन फिल्म फेयर अवार्ड और देश की सर्वश्रेष्ठ दस अभिनेत्रियों में स्थान पाने वाली रेखा ने सब कुछ हासिल किया परन्तु कोई एक स्थायी रिश्ता नहीं कमा सकी। जीतेन्द्र , विनोद मेहरा ,किरण कुमार , मुकेश अग्रवाल और अमिताभ रेखा के जीवन में पड़ाव की तरह आये और गुजर गए। अमिताभ के साथ उनका रिश्ता ' नेशनल डिबेट ' बना और पत्र पत्रिकाओं ने उनके तथाकथित रोमांस पर इतने पेज काले किये कि एक लाइब्रेरी बन जाए। पद्मश्री से सम्मानित इस अभिनेत्री ने व्यावसायिक सिनेमा के साथ ' समानांतर ' सिनेमा में भी अपनी अमिट उपस्तिथि दर्ज की। गंभीर सिनेमा के हस्ताक्षर श्याम बेनेगल ( कलयुग 1981 ) गोविन्द निहलानी ( विजेता 1982 ) गिरीश कर्नार्ड ( उत्सव 1984 ) गुलजार ( इजाजत 1987 ) ने साबित किया कि रेखा सार्थक फिल्मों को भी अपने नाम से चला सकती है।
कुछ अरसे पहले बीबीसी ने हॉलीवुड अभिनेत्री ' मेरिल स्ट्रिप ' को ऑस्कर मिलने पर सवाल किया था कि जब चौंसठ वर्ष की मेरिल को ध्यान में रखकर भूमिकाए लिखी जा सकती है तो पचपन की रेखा के लिए बॉलीवुड प्रयास क्यों नहीं करता। यह हमारे सिनेमा की विडंबना ही है कि 'खून भरी मांग ' जैसी महिला प्रधान फिल्मों की सफलता के बावजूद नायिका को केंद्र में रखकर बनने वाली फिल्मो की संख्या नगण्य है। एक समय बॉक्स ऑफिस पर धन बरसाने वाली जोड़ी अमिताभ रेखा में से अमिताभ आज भी बेहद व्यस्त है और रेखा लगभग बेरोजगार हो चुकी है।
पिछले हफ्ते तिरसठ वर्ष की यह सुंदर अभिनेत्री राजयसभा से अपना कार्यकाल पूरा कर विदा हुई। लेकिन यह विदाई ऐसी थी जिसे रेखा कभी याद रखना नहीं चाहेगी। देश के लगभग सभी समाचार पत्रों ने देश के उच्च सदन के प्रति रेखा की उदासीनता पर कठोर टिका टिपण्णी की। अस्सी के दशक में अपने करियर के उतार पर इस शोख अभिनेत्री ने गंभीरता ओढ़ ली थी। फ़िल्मी अवार्ड्स में वे जरूर शिरकत करती रही परन्तु सार्वजनिक समारोह में यदाकदा ही नजर आती रही। वही रवैया उन्होंने राजयसभा के प्रति अपनाया। एक बेहतरीन अदाकारा अपनी सम्मानीय भूमिका को सलीके से नहीं निभा पाई । jnrajneesh@gmail.com
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एयर मार्शल अर्जन सिंह जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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