Saturday, April 21, 2018

मुसाफिर हु यारो ! मुझे चलते जाना है




सिनेमाई इतिहास में सत्तर के दशक के एक बड़े हिस्से पर तीन अलग अलग लोगों ने अपनी गहरी छाप छोड़ी है। सुपर स्टार राजेश खन्ना , गायक किशोर कुमार एवं संगीतकार राहुल देव बर्मन। राहुल देव बर्मन के पिता सचिन देव बर्मन  स्वयं जाने माने संगीतकार थे तो राहुल को संगीत की विरासत मिलना तय थी। फिल्म इंडस्ट्री की एक दिलचस्प विशेषता है कि इसमें संतान को पहचान बनाने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता। बल्कि  यहाँ अपनी जगह बनाने के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष की दरकार होती है। राहुल ने महज नौ वर्ष की उम्र में एक धून रच डाली थी जिसका उपयोग उनके पिता ने ' फंटूश  (1956 ) में किया था। आर डी या पंचम के नाम से लोकप्रिय इस संगीत के उस्ताद की रची धूने उनके अवसान के दो दशक बाद भी संगीत प्रेमियों के जेहन में बसी हुई है। इस लोकप्रियता की वजह थी पंचम की अपनी विकसित की हुई शैली। अपने समकालीन संगीतकारों से उलट  ' एक्सपेरिमेंटल ' वाद्य यंत्रों का प्रयोग सबसे पहले आर डी ने ही किया। मिसाल के तौर पर फिल्म ' शोले ' के हेलन और जलाल आगा पर फिल्माये गीत ' मेहबूबा मेहबूबा ' की धून उन्होंने बीयर की खाली बोतल से निकाली थी।  इसी तरह  ' यादों की बारात ' के बेहद रोमांटिक गीत  ' चुरा लिया है तुमने जो दिल को ' के लिए उन्होंने चाय के कप प्लेट का प्रयोग किया था। फिल्म  ' पड़ोसन ' के कालजयी गीत ' एक चतुर नार  के लिए कंगे को रगड़ कर संगीत रचा था। सिर्फ मादक और रोमांस की चाशनी में भीगे गीत ही नहीं वरन  तहाकथित सैड सांग  में भी पंचम ने अपने सिग्नेचर शैली का प्रयोग किया है । ' प्यार का मौसम ' के लिए मोहम्मद रफ़ी का गाया गीत ' तुम बिन जाऊ कहाँ ' नायक की घोर उदासी के बावजूद जीवंत बन पड़ा है। इसी तरह विरह को टालने की मनुहार करता ' तू मइके मत जइयो ' या फिर ' नाम गुम  जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा ' या ' सागर किनारे दिल ये पुकारे ' जैसे गीत उदासियों के बावजूद  हमारे दिल में कही गहरे उतर जाते है। इसके विपरीत ' ओ  हसीना जुल्फों वाली ' ' दिल विल प्यार व्यार ' प्रफुल्लित और तीव्र संगीत का श्रेष्ठ उदाहरण है। 
पंचम के जीवन में आशा भोंसले का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। व्यक्तिगत रूप से भी और पेशेवराना भी।  इस जोड़ी ने मधुरतम और हिट  गीत दिए है। 'नहीं नहीं अभी करो थोड़ा इंतजार ' ' रोज रोज आँखों तले एक ही सपना चले ' ' ये लड़का हाय अल्लाह कैसा है दीवाना ' ' मेरा कुछ सामान  तुम्हारे पास है ' ' पिया तू अब तो आजा ' इस जोड़ी के  सैंकड़ों गीतों में से कुछ उल्लेखनीय उदाहरण है। 
2010 में पंचम के प्रशंसक फिल्मकार ब्रम्हानंद सिंह ने पंचम के जीवन के हरेक पहलु को छूती और उनके समकालीन लोगों के इंटरव्यू के आधार पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई। ' पंचम अनमिक्सड ' नाम की यह डॉक्यूमेंट्री दो नेशनल अवार्ड जीत चुकी है। पिछले दिनों इस डॉक्यूमेंट्री को बाकायदा पी वी आर सिनेमा में फीचर फिल्म की ही तरह रिलीज किया गया। ऑनलाइन फिल्मे उपलब्ध कराने वाली साइट ' नेटफ्लिक्स ' के कैटलॉग में भी इस डॉक्यूमेंट्री ने जगह बना ली है। ऍफ़ एम् रेडियो स्टेशन उनके संगीतबद्ध किये गीतों के बगैर एक दिन भी गुजारा नहीं कर सकते। यही हाल रीमिक्स बनाने वालों का भी है। देर रात तक चलने वाली पार्टिया उनके संगीत के बिना अधूरी मानी जाती है। पंचम यु ही भविष्य के संगीतकार नहीं कहे गए थे। 
फिल्मो की दुनिया में लगातार कोई शीर्ष पर नहीं बना रह सकता। यहां कब ढलान आजाए , दावे से नहीं कहा जा सकता। सत्तर से नब्बे के दशक तक सिरमौर रहे पंचम बप्पी लहरी के आगमन के साथ  अपना सुर खोने लगे थे। विधु विनोद चोपड़ा इस डॉक्यूमेंट्री में कहते नजर आते है कि किस तरह सब तरफ से ख़ारिज कर दिए गए पंचम ' 1942 ए लव स्टोरी ' के लिए संगीत रचते है। इस फिल्म के लिए पंचम का  रचा संगीत  उन्हें उसी स्थान पर वापस बैठा देता है जिसके वे हकदार थे। अफ़सोस ! अपनी सफलता को देखने के लिए पंचम जीवित नहीं रहे।   ' 1942 ए लव स्टोरी ' की रिलीज के पहले ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था। ' कुछ ना कहो , कुछ भी ना कहो ' उनका विदाई  संगीत है । 

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