बॉलीवुड के लिए हॉलीवुड का जूनून किसी से छुपा नहीं है। अधिकांश भारतीय फिल्मकार अपने इस लगाव को जाहिर करने में संकोच भी नहीं करते। जब भी कभी हॉलीवुड की कोई खबर भारतीय फ़िज़ा में तैरती है तो यकायक कई कान चौकन्ने हो जाते है। और गर वह खबर भारत से सम्बंधित है तो पाली हिल से लेकर अँधेरी और बांद्रा के कई सुरक्षित और भव्य घरों में उम्मीदों को पंख लग जाते है। लॉस एंजेलिस की पहाड़ी पर मजबूती से जमाये हुए विशालकाय HOLLYWOOD के अक्षर सपनो को इंद्रधनुषि रंगो में रंग देते है।
पिछले दिनों अकडेमी ऑफ़ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसिज ( ऑस्कर पुरूस्कार प्रायोजित करने वाली संस्था ) के एक ईमेल ने कई फ़िल्मी सितारों को रोमांचित और कई को उदास कर दिया। अकडेमी ने अपने मौजूदा 6688 सदस्यों की संख्या को विश्व स्तर पर बढ़ाने का निर्णय लिया है। इसके लिए दुनिया भर के 774 फिल्मकारों को मेम्बरशिप प्रदान की। भारत की भी चौदह हस्तियों -अमिताभ बच्चन , आमिर खान , ऐश्वर्या , वयोवृद्ध मृणाल सेन ,प्रियंका चोपड़ा ,इरफ़ान खान ,सलमान खान , गौतम घोष ,सूनी तारापोरवाला ,बुद्धदेब दासगुप्ता ,अर्जुन भसीन ,आनंद पटवर्धन ,अमृत प्रीतम दत्ता और दीपिका पादुकोण -अकडेमी के अन्य सदस्यों की तरह अगले वर्ष होने वाले ऑस्कर समारोह में शामिल होने वाली चयनित फिल्मो के लिए वोट करेंगे। शाहरुख़ खान का इस सूची में शामिल न होना आश्चर्य में डालता है। जब इस बात को लेकर ट्विटर पर हंगामा बरपा तो अकडेमी ने टका सा जवाब उछाल दिया कि हम उन्ही लोगों को सदस्य बना रहे है जिन्होंने सिनेमा में अद्वितीय योगदान किया हो !!
एक तरह से यह निमंत्रण बॉलिवुड की वैश्विक सिनेमाई क्षितिज पर स्वीकार्यता दर्शाता है। परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। विगत वर्षों में ऑस्कर पर नस्लीय और लैंगिक भेदभाव के आरोप लगते रहे है। दुनिया भर के फिल्मकारों को जोड़ना उस अपराध बोध से मुक्ति का प्रयास मात्र है।
यद्धपि ऑस्कर श्रेश्ठतम अमरीकी फिल्मो को दिए जाने वाले पुरूस्कार है परन्तु इनकी भव्य प्रस्तुति ने इन्हे सारी दुनिया में लोकप्रिय बना दिया है। समारोह के हफ्तों पूर्व 'टॉप फाइव ' श्रेणियों के लिए अटकल और सट्टेबाजी का बाजार गर्म हो जाता है। लोकप्रियता की इस लहर को बनाये रखने के लिए 1956 में ' फॉरेन लैंग्वेज ' नाम की केटेगरी बनाई गई। इस केटेगरी में दुनिया के सभी देश अपनी भाषा की फिल्मे भेज सकते है। सन 2000 में ' लगान ' के टॉप फाइव में पहुँचने की घटना ने जैसे बॉलिवुड को नींद से जगा दिया।उसके बाद से हर वर्ष भेजी जाने वाली फिल्मों को लेकर उत्साह बनने लगा है। यह बात दीगर है कि इन फिल्मों के चयन को लेकर राजनीति और गर्म बहसों के अलावा कुछ नहीं होता। फिल्मों के कला पक्ष को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं होती। यहाँ यह याद रखना जरुरी है कि लगान से पूर्व 'मदर इंडिया ' और 'सलाम बॉम्बे ' टॉप फाइव में जगह बना चुकी है। परन्तु पुरूस्कार की दौड़ में पिछड़ गई।
भारतीय फिल्मकारों ने हाल ही में एक और हॉलिवुड जूनून से मन मारकर पल्ला झाड़ा है। कुछ वर्ष पहले तक हरेक निर्देशक यह कहता हुआ पाया जाता था कि ' मेरी फिल्म की स्क्रिप्ट ऑस्कर लाइब्रेरी के लिए सलेक्ट हुई है। सिने प्रेमियों को यह बात कभी समझ नहीं आई कि बंडल और बकवास फिल्मों की स्क्रिप्ट का ऑस्कर भला क्या करेगा। ' युवराज ' एक्शन रीप्ले ' गुजारिश ' रॉक ऑन ' खेले हम जी जान ' से जैसी फ्लॉप फिल्मे ऑस्कर का मान बड़ा सकती है क्या ? दरअसल इस लाइब्रेरी का नाम मार्गरेट हेर्रिक लाइब्रेरी है जो किसी भी रिलीज़ फिल्म की स्क्रिप्ट को स्वीकार लेती है। सिर्फ संग्रह के लिए।
भारतीय फिल्मकारों के लिए बेहतर है कि वे जल्द से जल्द अपने हॉलिवुड प्रेम से छुटकारा पाए। अकैडमी की सदस्य्ता से जरूर बॉलिवुड का मान बड़ा है परन्तु यह काफी नहीं है। हमारे फिल्मकारों को ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी और जफ़र पनाही से प्रेरणा लेनी चाहिए जिनकी फिल्मों को देखने के लिए दुनिया भर के फिल्मकार उतावले रहते है। जब तक हमारी फिल्मों से हमारी मिट्टी की सुगंध नहीं आएगी तब तक हमें हॉलीवुड से ही सर्टिफिकेट लेकर काम चलाना पड़ेगा।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : सुनील गावस्कर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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