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टाइम्स ऑफ़ इंडिया में पिछले रविवार अतुल ठाकुर की दिलचस्प रिपोर्ट छपी है। अंग्रेजी के पत्रकार जितनी खोज कर खबर निकालते है उतनी मेहनत हिंदी के पत्रकार नहीं करते। ऐसा मेने महसूस किया है। टाइम्स ने हैडलाइन बनाई है '' आतंकी हमले से ज्यादा लोग प्यार में मरते है '' यह खबर उस देश की वास्तविक तस्वीर दिखाती है जहां आख्यानों में प्रेम भरा पड़ा है , पत्थरों के शिल्प में उकेरा गया है और हर दूसरी बॉलीवुड फिल्म में महिमा मंडित किया गया है। संगीत की दुनिया के ज्ञात इतिहास में 90 प्रतिशत गीत ( फ़िल्मी और गैर फ़िल्मी ) गजल , रूबाइयां , मुक्तक , शायरी के केंद्र में सिर्फ प्रेम रहा है।
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टाइम्स की रिपोर्ट में 2001 से 2015 के दौरान राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान के आंकड़े प्रकाशित किये है। इस अवधि में 38585 लोगों की हत्या प्रेम प्रसंगों की वजह से हुई। 79189 आत्महत्याओ की वजह प्यार बना। ढाई लाख से ज्यादा महिलाओ के अगवा या अपहरण के केस दर्ज हुए ( घर से भागने वाले प्रेमियो में लड़के पर अपहरण का ही केस दर्ज होता है ) प्रेम करने पर जान से मार दिए जाने के सबसे अधिक प्रकरण आंध्र प्रदेश , उत्तर प्रदेश , तमिलनाडु , और मध्य प्रदेश में ही हुए है।
दुनिया को प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले देश में एक दिन में सात हत्याए , चौदह आत्महत्या , और सेंतालिस अपहरण हो जाते है जिनकी वजह प्रेम प्रसंग होता है। राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ने आतंक वाद की वजह से इस अवधि में मरने वालो की संख्या 20000 बताई है। इसमें आतंकवादी , हमले में शहीद सेना और पुलिस के जवान और आम नागरिक शामिल है।
उपरोक्त आंकड़े किसी को भी दशहत में ला सकते है। परंतु यही हकीकत है। फिलहाल जो लोग प्रेम में है उनका दिल इन आंकड़ों से दहल सकता है। सरकार इन सब से क्या सबक लेगी , दावे से नहीं कहा जा सकता। भारतीय समाज शास्त्रियों को जरूर सजग होने की जरुरत है। भौतिक रूप से आधुनिक हो रहा समाज सिर्फ बाहर से बदल रहा है अंदर से आज भी वह सोलहवी शताब्दी की मानसिकता को ढो रहा लगता है।
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