भारत पाकिस्तान के रिश्तों में नफरत और महोब्बत साथ चलती है । यह विचित्रता दुनिया में कही और नहीं पायी जाती । संभवत इस लक्षण की वजह इनका डी एन ए है जो सरहद के दोनों और के लोगों में सामान रूप से पाया जाता है । कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो दोनों और के कलाकारों को एक दूसरे के मुल्क में भरपूर सम्मान और स्नेह मिला है । तमाम पूर्वाग्रहों के बावजूद गुलाम अली और नुसरत फ़तेह अली को चाव से इस तरफ सुना जाता है । वही लता मंगेशकर और हिंदी फिल्में उस तरफ पसंद की जाती है ।
राजनीतिक मजबूरियों के चलते रिश्तो में कड़वाहट मुमकिन है परंतु दोनों और ऐसे तत्व भी है जो इस नफरत को हवा देते रहते है। हेडिलबर्ग यूनिवर्सिटी के असिस्टेन्ट प्रोफेसर जुरगेन शफलकमर ने पकिस्तान में रहकर एक दिलचस्प रिसर्च की है।The Conversation वेब साइट पर छपी उनकी रिसर्च सिद्ध कर देती है की दोनों तरफ की सरकारे कड़वाहट कम करने के कितने ही जतन करले परंतु कभी सफल नहीं होंगी। उनकी यह रिसर्च गैर साहित्यिक उपन्यासों पर आधारित है। रेलवे स्टेशनों और सड़क किनारे बिकने वाली किताबो या सनसनी फैलाने वाली इन डाइजेस्ट में छपी कहानियों में खलनायक का किरदार आमतौर पर हिन्दू निभाते है। 30 से 50 हजार की संख्या में छपने वाली ये किताबे पाकिस्तान के सभी प्रमुख शहरों में पढ़ी जाती है। हॉरर और जासूसी कहानियों से भरी इन किताबों में बुरे काम करने वाले सभी पात्र भारतीय या हिन्दू होते है। मोहन, शंकर , निशा , महेंद्र आदि नाम के पात्र मुसलमानों का परेशान करते है या जिन्न , भूत चुड़ैल बनकर लोगों को तंग करते है। इन लोंगो को मारने वाला इस्लाम का नेक फरिश्ता होता है जो अमन और मोहब्बत का पैगाम सारी दुनिया में फैलाता है।
भारत-पाकिस्तान दोनों के बीच रिश्तों में इतने बड़े उतार चढ़ाव आ चुके है कि इस ' लुगदी साहित्य ' पर चर्चा की गुंजाइश शायद ही कभी आये। नफरत और चरित्र ह्त्या का सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा।जावेद अख्तर , जगजीत सिंह और गुलजार को सुनने वाले लोग भारतीयों से बिला वजह नफरत करते रहेंगे . हिंदुस्तानी कभी नहीं जान पाएंगे कि आखिर आम पाकिस्तानी उनसे इतनी दुश्मनी क्यों रखता है ?
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