Thursday, December 15, 2016

शाहरुख़ की विनम्रता और राज ठाकरे की अकड़ !!




 में डटकर फिल्मे देखता हूँ परंतु शाहरुख़ खान की कोई सी भी फिल्म  ' चक दे इंडिया '( 2007 ) के बाद नहीं देखी।  कारण कोई विशेष नहीं , बस उनका बड़बोलापन  मुझे ज्यादा अखरता है। इस फिल्म में  उन्होंने ऐसे हॉकी कोच का किरदार निभाया था जो मुस्लिम होने के   कारण प्रताड़ित होता है। निसंदेह वे सफल और लोकप्रिय सितारे है और लोग उन्हें पसंद भी करते है तभी तो उनकी फिल्मे बॉलीवुड के तथाकथित ' करोड़ ' क्लब में आसानी से शामिल हो जाती है।
हाल ही में इस धुंआधार अंग्रेजी बोलने वाले सितारे का विनम्र रूप देखने  को मिला। शाहरुख़ मनसे प्रमुख राज ठाकरे से मिलने  उनके दादर स्थित निवास पर गए थे ताकि अगले माह रिलीज़ होने वाली फिल्म ' रईस ' निर्विध्न रूप से सिनेमा का मुँह देख सके . इस फिल्म की नायिका ' माहिरा खान ' का पाकिस्तानी होना प्रदर्शन की राह में  रुकावट बन सकता था .  राज ठाकरे से अभयदान पाकर शाहरुख़ तो निश्चिंत हो गए है परंतु कई अनुतरित्त प्रश्न हवा में उछाल गये .यह अपमान झेलने वाले शाहरुख़ पहले अभिनेता नहीं है। पूर्व में बच्चन  परिवार भी इस परीक्षा से गुजर कर ' सॉरी ' बोल चूका है।
 क्या शाहरुख़ को  भी करन जौहर की तरह अपनी जेब ढीली करना पड़ी ? ऐश्वर्या अभिनीत उनकी फिल्म ' ऐ दिल है मुश्किल ' पांच करोड़ आर्मी फण्ड में जमा कराने के  आश्वासन के बाद रिलीज़ हो पाई थी . क्या मुम्बई की कानून व्यवस्था माफिया सरगनाओं के रहमों करम पर निर्भर हो गई है ? भाजपा की बहुमत प्राप्त सरकार में इतना भी साहस नहीं कि वो ठाकरे परिवार की उदंडता को रोक सके ? बहरहाल मेरी सहानुभूति शाहरुख के साथ है . उन्होंने झुककर आसन्न संकट को टाल दिया . 
ठाकरे परिवार ने जिस तरह से मुम्बई पर अपना दबदबा जमाया है वह काबिले तारीफ़ है . ताज्जुब है कि केंद्र और राज्य की तमाम सरकारे इस परिवार के प्रभाव को महसूस करती रही है परंतु इन पर लगाम नहीं लगा सकी। इस परिवार का उभार तमाम सरकारों की सामूहिक नजरअंदाजी का परिणाम है।
भारत दुनिया का अकेला देश है जहाँ फिल्मों को दो सेंसर बोर्ड का सामना करना पड़ता है।  पहला केंद्र सरकार का सेंसर बोर्ड जिसका अध्यक्ष उनका ही कोई कृपा पात्र होता है जो अपने नियम खुद तय करता है दूसरा संस्कृति के तथाकथित स्वयंभू पहरुए जो अपनी गाइडलाइन फिल्मों पर थोपते है।
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