Tuesday, December 27, 2016

टाइटेनिक के डेक पर खड़ा देश !!

अर्थशास्त्र के नोबेल विजेता ' मिल्टन फ़्रीडमैन ' का लोकप्रिय कथन है '' सरकार मौजूदा समस्याओं के ऐसे समाधान लेकर आती है जो कभी कभी समस्याओं से भी ज्यादा घातक होते है '' . मौजूदा आर्थिक संकट महज इसलिए आया है कि महत्वाकांक्षी सरकार कालेधन और भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना चाहती है। नोटबंदी वाली रात ऐसा समां बंधा था मानो अगली सुबह निराली होगी। गरीब खुश होंगे और भ्रष्ट सिर पर हाथ रखकर विलाप कर रहे होंगे। अफ़सोस ऐसा कुछ भी नहीं हुआ   , बल्कि हुआ ठीक इसके विपरीत। देश का मध्यम वर्ग और वंचित तबका कभी न ख़त्म होने वाली बैंक की कतार में आज भी लगा हुआ है। संपन्न और रसूखदार ' गुलाबी मुद्रा ' को आत्मसात कर निश्चिंत हो  चूका है।
एक मास्टर स्ट्रोक से सब  कुछ बदल देने और खुद को इतिहास में  'नायक ' की तरह दर्ज कर देने की लालसा ने प्रधानमंत्री से बड़े साइड इफ़ेक्ट के संकेतों को नजरअंदाज करवा दिया। अर्थशास्त्र का सामान्य ज्ञान रखने वाला शख्स भी इस बात को समझता है कि मांग और पूर्ति की असमानता ही भ्रष्टाचार और कालेधन की गंगोत्री है। सीमेंट , लैंडलाइन टेलीफोन,कुकिंग गैस , कार , बाइक, आदि की सहज उपलब्धता ने इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार की संभावना को जड़ से समाप्त कर दिया है। वह पीढ़ी आज भी मौजूद है जिसने एक दौर में  इन  सभी चीजों में ' प्रीमियम ' चुकाया है।
नोटबंदी और फिर उसके असमान वितरण ने यही हाल ' मुद्रा ' का किया है। मुद्रा की कमी सभी चीजों की मांग में कमी ले आती है यह बात अखबार की हैडलाइन और आर्थिक पन्ने पर बखूबी नजर आती है। बेरौनक बाजार , कम उत्पादन के चलते श्रमिकों की छुट्टी ,पर्यटन और सेवा उद्योग में पाताल छूती गिरावट , शेयर बाजार को जुकाम , जीडीपी का घटता पूर्वानुमान , ऐसे कुछ परिणाम है जो अब स्पस्ट नजर आने लगे है।
लोकप्रिय हॉलीवुड फिल्म '' टाइटेनिक '' का एक मर्म स्पर्शीय दृश्य है। जहाज डूब रहा है परंतु जहाज पर  मौजूद संगीत मंडली लोगों की बदहवासी और चीख पुकार के बावजूद संगीत बजाने में मशगूल है।
मिल्टन फ़्रीडमैन का ही एक  और कथन है '' सरकार कोई नसीहत नहीं लेती सिर्फ जनता ही लेती है ''  ऐसा ही कुछ इस समय हमारे  साथ हो रहा है।


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