कल्पना सदैव सुहानी होती रही है और वास्तविकता ( यथार्थ ) हमेशा कठोर और खुरदरी । सिनेमा के परदे
पर चुनचुनाती रोशनी ने सपनो की इतनी मोहक दुनिया बनायी है कि बरसों से करोडो दर्शक अपने जीवन की आपा-धापी , समस्याएं , तनाव , अधूरे सपनो की कसक , से मुक्ति के लिए सिनेमा के घाट पर आते रहे है। यह एक तरह से घर छोड़े बगैर पलायन कर जाने जैसा है। सिनेमा यथार्थ को तो नहीं बदल सकता परंतु आईना अवश्य दिखा सकता है। ये सपने दर्शक को तनाव मुक्त करने का सबब बनते है , बावजूद इन सपनों के कुछ फिल्मकार ' यथार्थ ' चित्रण का आग्रह लेकर फिल्म बनाते रहे है। और यह काम सिनेमा के हर काल में होता रहा है।
इसी तरह की एक पहल 1949 में हुई थी जिसने इटालियन सिनेमा को सम्मानजनक स्थान पर बैठा दिया। सेकंड वर्ल्ड वार की समाप्ति 1945 के बाद युद्ध में शामिल अधिकाँश देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। गरीबी , बेरोजगारी , भुखमरी अपने चरम पर थी। यह यथार्थ था जिसे यूरोप के धनी देश भुगत रहे थे। और इसकी परिणीति हो रही थी आम आदमी की असहायता , कुंठा और निराशा में। निर्देशक विटोरी डी सिका ने इस सब को नजदीक से महसूस किया था और यही उनकी फिल्म The Bicycle Thief की विषय वस्तु बना। नायक की भूमिका एक फैक्ट्री में काम करने वाले मजदुर ( Lamberto Maggiorani ) ने निभाई थी 6 वर्षीय पुत्र(Enzo Staiola) की भूमिका में सड़क पर फूल बेचने वाले के बेटे को चुना गया . ये थे Realistic फिल्म के रियल किरदार .
फिल्म की कहानी बहुत ही साधारण है . एंटोनियो रिक्की एक बेरोजगार है जिसका एक 6 साल का बेटा है घर पर पत्नी और एक बेटी गोद में है . काम मिलने की एक मात्र शर्त है साईकल का होना . घर की एक मात्र कीमती धरोहर पलंग की बेड शीट गिरवी रखकर सेकंड हैण्ड साइकिल खरीदी जाती है . दर्शक को मालूम है कि यह साइकिल चोरी होगी और ऐसा ही होता है . एक चोर साइकिल लेकर भाग जाता है . विकट हालात का और अधिक विकराल हो जाना . एंटोनियो अपने बेटे ब्रूनो के साथ बदहवास साइकिल ढूंढता है . निराशा और पराजय से पस्त उनके चेहरे दर्शक को अंदर तक हिला देते है . कथानक रोम का है परंतु चमचमाते आम शहरो में गरीबी और निराशा के हालात आपके अपने शहर जैसे ही है .
आधुनिकता और चकाचौन्ध पहले मनुष्य को संवेदन शुन्य करते है फिर उसे अमीर गरीब की श्रेणी में बाँट देते है . महान चार्ली चैप्लिन ने अपनी साइलेंट फिल्मों में लाचारी और करुणा के भाव को उकेरा था . निर्देशक डी सिका ने इसी गहन पीड़ा दर्शाकर को चार्ली को अपनी आदरांजलि अर्पित की है .
पर चुनचुनाती रोशनी ने सपनो की इतनी मोहक दुनिया बनायी है कि बरसों से करोडो दर्शक अपने जीवन की आपा-धापी , समस्याएं , तनाव , अधूरे सपनो की कसक , से मुक्ति के लिए सिनेमा के घाट पर आते रहे है। यह एक तरह से घर छोड़े बगैर पलायन कर जाने जैसा है। सिनेमा यथार्थ को तो नहीं बदल सकता परंतु आईना अवश्य दिखा सकता है। ये सपने दर्शक को तनाव मुक्त करने का सबब बनते है , बावजूद इन सपनों के कुछ फिल्मकार ' यथार्थ ' चित्रण का आग्रह लेकर फिल्म बनाते रहे है। और यह काम सिनेमा के हर काल में होता रहा है।
इसी तरह की एक पहल 1949 में हुई थी जिसने इटालियन सिनेमा को सम्मानजनक स्थान पर बैठा दिया। सेकंड वर्ल्ड वार की समाप्ति 1945 के बाद युद्ध में शामिल अधिकाँश देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। गरीबी , बेरोजगारी , भुखमरी अपने चरम पर थी। यह यथार्थ था जिसे यूरोप के धनी देश भुगत रहे थे। और इसकी परिणीति हो रही थी आम आदमी की असहायता , कुंठा और निराशा में। निर्देशक विटोरी डी सिका ने इस सब को नजदीक से महसूस किया था और यही उनकी फिल्म The Bicycle Thief की विषय वस्तु बना। नायक की भूमिका एक फैक्ट्री में काम करने वाले मजदुर ( Lamberto Maggiorani ) ने निभाई थी 6 वर्षीय पुत्र(Enzo Staiola) की भूमिका में सड़क पर फूल बेचने वाले के बेटे को चुना गया . ये थे Realistic फिल्म के रियल किरदार .
फिल्म की कहानी बहुत ही साधारण है . एंटोनियो रिक्की एक बेरोजगार है जिसका एक 6 साल का बेटा है घर पर पत्नी और एक बेटी गोद में है . काम मिलने की एक मात्र शर्त है साईकल का होना . घर की एक मात्र कीमती धरोहर पलंग की बेड शीट गिरवी रखकर सेकंड हैण्ड साइकिल खरीदी जाती है . दर्शक को मालूम है कि यह साइकिल चोरी होगी और ऐसा ही होता है . एक चोर साइकिल लेकर भाग जाता है . विकट हालात का और अधिक विकराल हो जाना . एंटोनियो अपने बेटे ब्रूनो के साथ बदहवास साइकिल ढूंढता है . निराशा और पराजय से पस्त उनके चेहरे दर्शक को अंदर तक हिला देते है . कथानक रोम का है परंतु चमचमाते आम शहरो में गरीबी और निराशा के हालात आपके अपने शहर जैसे ही है .
आधुनिकता और चकाचौन्ध पहले मनुष्य को संवेदन शुन्य करते है फिर उसे अमीर गरीब की श्रेणी में बाँट देते है . महान चार्ली चैप्लिन ने अपनी साइलेंट फिल्मों में लाचारी और करुणा के भाव को उकेरा था . निर्देशक डी सिका ने इसी गहन पीड़ा दर्शाकर को चार्ली को अपनी आदरांजलि अर्पित की है .
1951 में ब्रिटिश पत्रिका sight & sound ने The Bicycle Thief को दुनिया की सर्वकालिक महान फिल्म घोषित किया था। 50 साल बाद 2001 में एक और सर्वे ने इसे बेस्ट फिल्मों की सूची में 6 टा स्थान दिया। दुनिया का ऐसा कोनसा पुरूस्कार नहीं है जो इस Black and White फिल्म को नही मिला , ऐसा कोई फिल्मकार , आलोचक ,समीक्षक नहीं है जो इससे प्रभावित न हुआ हो।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति मेजर ध्यानचन्द और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत जानकारी !
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