एक मित्र ने प्रश्न किया है '' क्या बॉलीवुड कभी हॉलीवुड को शिकस्त दे पायेगा ? प्रश्न दिलचस्प है। एक दो फिल्मों के 300 या 500 करोड़ के कलेक्शन कर लेने से यह सवाल उठना स्वाभाविक है। परंतु हकीकत कुछ और है। आंकड़ों की जुबानी श्रेष्ठता साबित की जाए तो जवाब '' हाँ '' होगा और गुणवत्ता के लिहाज से '' ना '' .
बॉलीवुड कोई फिजिकल ( भौतिक ) जगह नहीं है। मुम्बई के पुराने नाम ' बॉम्बे ' की वजह से यह नाम पड़ा है। क्योंकि भारत की चर्चित फिल्म इंडस्ट्री यही मौजूद है। जबकि ' हॉलीवुड ' लॉस एंजिल्स शहर में मौजूद है और एक पहाड़ पर बाकायदा इसका नाम लिखा गया है।
बॉलीवुड ( इसे सम्पूर्ण भारत पढ़े ) में हर वर्ष तकरीबन 1000 फिल्मे बनाई जाती है। इसमें हिंदी की 200 \250 और शेष भारत ,खासकर दक्षिण में बनाई जाती है। हिंदी और क्षेत्रीय भाषा में बनी अधिकाँश फिल्मे भारत में ही देखी जाती है। चुनिंदा फिल्मे ही विदेशों में रिलीज़ होती है और उनका दर्शक वर्ग भी भारतीय ही होता है। इसके उलट हॉलीवुड मात्र 200 फिल्मे एक साल में रिलीज़ करता है परंतु इंग्लिश में होने की वजह से वे दुनिया के पाँचों महाद्विपों में पहुँच बना लेती है। यही नहीं उनके सब्जेक्ट की अपील इतनी व्यापक होती है कि उनके ' लोकल ' भाषा में डब संस्करण भी आसानी से बन जाते है।
सिनेमा टिकिटों की बिक्री के लिहाज से बॉलीवुड अवश्य आगे है परंतु फिल्मों के रेवेन्यू में हॉलीवुड से कोसों पीछे है। पिछले दस वर्षों की टॉप टेन फिल्मों ने भारत में जितना मुनाफ़ा कमाया है उसका पांच गुना अकेले ' अवतार ' या फैंटास्टिक फॉर ' या 'एवेंजर ' ने कमाया है।बॉलीवुड का सालना टर्न ओवर 12400 \ 12500 करोड़ का है जबकि हॉलीवुड 9/10 बिलियन डॉलर की इंडस्ट्री है। मन समझाने के लिए आप बॉलीवुड को अमीर हॉलीवुड का गरीब रिश्तेदार कह सकते है ।
बॉलीवुड का सबसे बड़ा माइनस पॉइंट है उसका पिटी पिटाई लकीर पर चलना। यहां रिस्क लेने की आदत नहीं है। क्षेत्रीय भाषा की सफल फिल्मों के रीमेक हिंदी में बनाकर परोसना , नई कहानी , नए सब्जेक्ट को हाथ नहीं लगाना, फिल्मों का अभी भी संगीत और रोमांस प्रधान होना , सेक्स से बिचकना , ये ऐसे कुछ दायरे है जिनमे बॉलीवुड काम कर रहा है।
ऐसा नहीं है कि हॉलीवुड में कचरा फिल्मे नहीं बनती है। बनती है परन्तु उनका अनुपात कम होता है। वहां लगभग सभी जेनर ( श्रेणी ) की फिल्मे बनती है। प्रोडक्शन से पूर्व डट कर रिसर्च किया जाता है। यही वजह है कि काल्पनिक विषयों पर बनी हॉलीवुड फिल्मे वास्तविकता के नजदीक जान पड़ती है। कभी भी google कर लीजिये , दुनिया की टॉप मूवीज में हॉलीवुड की 25 /50 फिल्मे हमेशा मिलेगी।
बॉलीवुड की तरह हॉलीवुड भी घोर कमर्शियल है परन्तु उन्होंने अपना एक स्टैण्डर्ड तय किया हुआ है। यह बात उनके फ़िल्मी पुरुस्कारों में साफ़ झलकती है।ऑस्कर जैसा विख्यात पुरूस्कार आज भी ऑस्कर अकादमी ही प्रायोजित करती है। भारत में फ़िल्मी पुरुस्कारों के व्यवसायी करण ने सारी हदे पार करते हुए 'पान मसाला ' और साबुन तेल बंनाने वाली कंपनियों को अपना प्रायोजक बनाकर पुरुस्कारो की विश्वसनीयता ही ख़त्म कर दी है।
बॉलीवुड को हॉलीवुड के सामने खड़े होने में अभी दो -तीन दशक लगेंगे। तब तक किसी तरह की तुलना बेमानी है।
बॉलीवुड कोई फिजिकल ( भौतिक ) जगह नहीं है। मुम्बई के पुराने नाम ' बॉम्बे ' की वजह से यह नाम पड़ा है। क्योंकि भारत की चर्चित फिल्म इंडस्ट्री यही मौजूद है। जबकि ' हॉलीवुड ' लॉस एंजिल्स शहर में मौजूद है और एक पहाड़ पर बाकायदा इसका नाम लिखा गया है।
बॉलीवुड ( इसे सम्पूर्ण भारत पढ़े ) में हर वर्ष तकरीबन 1000 फिल्मे बनाई जाती है। इसमें हिंदी की 200 \250 और शेष भारत ,खासकर दक्षिण में बनाई जाती है। हिंदी और क्षेत्रीय भाषा में बनी अधिकाँश फिल्मे भारत में ही देखी जाती है। चुनिंदा फिल्मे ही विदेशों में रिलीज़ होती है और उनका दर्शक वर्ग भी भारतीय ही होता है। इसके उलट हॉलीवुड मात्र 200 फिल्मे एक साल में रिलीज़ करता है परंतु इंग्लिश में होने की वजह से वे दुनिया के पाँचों महाद्विपों में पहुँच बना लेती है। यही नहीं उनके सब्जेक्ट की अपील इतनी व्यापक होती है कि उनके ' लोकल ' भाषा में डब संस्करण भी आसानी से बन जाते है।
सिनेमा टिकिटों की बिक्री के लिहाज से बॉलीवुड अवश्य आगे है परंतु फिल्मों के रेवेन्यू में हॉलीवुड से कोसों पीछे है। पिछले दस वर्षों की टॉप टेन फिल्मों ने भारत में जितना मुनाफ़ा कमाया है उसका पांच गुना अकेले ' अवतार ' या फैंटास्टिक फॉर ' या 'एवेंजर ' ने कमाया है।बॉलीवुड का सालना टर्न ओवर 12400 \ 12500 करोड़ का है जबकि हॉलीवुड 9/10 बिलियन डॉलर की इंडस्ट्री है। मन समझाने के लिए आप बॉलीवुड को अमीर हॉलीवुड का गरीब रिश्तेदार कह सकते है ।
बॉलीवुड का सबसे बड़ा माइनस पॉइंट है उसका पिटी पिटाई लकीर पर चलना। यहां रिस्क लेने की आदत नहीं है। क्षेत्रीय भाषा की सफल फिल्मों के रीमेक हिंदी में बनाकर परोसना , नई कहानी , नए सब्जेक्ट को हाथ नहीं लगाना, फिल्मों का अभी भी संगीत और रोमांस प्रधान होना , सेक्स से बिचकना , ये ऐसे कुछ दायरे है जिनमे बॉलीवुड काम कर रहा है।
ऐसा नहीं है कि हॉलीवुड में कचरा फिल्मे नहीं बनती है। बनती है परन्तु उनका अनुपात कम होता है। वहां लगभग सभी जेनर ( श्रेणी ) की फिल्मे बनती है। प्रोडक्शन से पूर्व डट कर रिसर्च किया जाता है। यही वजह है कि काल्पनिक विषयों पर बनी हॉलीवुड फिल्मे वास्तविकता के नजदीक जान पड़ती है। कभी भी google कर लीजिये , दुनिया की टॉप मूवीज में हॉलीवुड की 25 /50 फिल्मे हमेशा मिलेगी।
बॉलीवुड की तरह हॉलीवुड भी घोर कमर्शियल है परन्तु उन्होंने अपना एक स्टैण्डर्ड तय किया हुआ है। यह बात उनके फ़िल्मी पुरुस्कारों में साफ़ झलकती है।ऑस्कर जैसा विख्यात पुरूस्कार आज भी ऑस्कर अकादमी ही प्रायोजित करती है। भारत में फ़िल्मी पुरुस्कारों के व्यवसायी करण ने सारी हदे पार करते हुए 'पान मसाला ' और साबुन तेल बंनाने वाली कंपनियों को अपना प्रायोजक बनाकर पुरुस्कारो की विश्वसनीयता ही ख़त्म कर दी है।
बॉलीवुड को हॉलीवुड के सामने खड़े होने में अभी दो -तीन दशक लगेंगे। तब तक किसी तरह की तुलना बेमानी है।
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