ईरान के प्रतिष्ठित फ़िल्मकार मजिद माजिदी की फिल्मे देखना सादगी को सादगी के साथ देखना है। उनका कैमरा जब ग्रामीण ईरान को देखता और जो रूपक गढ़ता है तो एक पल के लिए आपको लगता है - आप मुंशी प्रेमचंद की कोई कहानी पढ़ रहे है। हॉलीवुड के चोटी के फिल्म समीक्षक जब उनकी फिल्मो की बात करते है तो विशवास नहीं होता कि एक दुश्मन देश के नागरिक को इस तरह सर पर बैठाया जा सकता है। यूँ तो माजिदी की लगभग सभी फिल्मे ईरान की भोगोलिक सीमाओ के पार सराही गई है परंतु ख़ास तौर पर ग्रामीण पृष्ठ भूमि पर बनी फिल्मों में वे कमाल कर जाते है। ताज्जुब होता है कि आर्थिक रूप से लड़खड़ाते और कठमुल्लाई ईरान में वे विश्व स्तर की फिल्मे बना लेते है ,जबकि विकासशील भारत के फ़िल्मकार उनके घुटनो तक भी नहीं पहुँच पाते।
Song Of Sparrow (2008 ) माजिदी की ऐसी ही सादगी से भरी फिल्म है। फिल्म का नायक करीम एक गरीब किसान है जो अपनी बीबी नरगिस और तीन बच्चों के साथ रहता है। जीवन यापन के लिए वह एक शतरमुर्ग के बाड़े की देखभाल करता है। एक दिन उसे बताया जाता है कि उसकी किशोर बेटी ने अपने सुनने की मशीन(hearing aid ) गुमा दी है। घर के रास्ते पर एक भूमिगत तालाब में बच्चे उस मशीन को ढूंढ रहे है। करीम भी उनके साथ शामिल हो जाता है। उसका आठ साल का बेटा प्लान बनाता है कि इस तालाब की सफाई कर मछलिया पाली जाये। करीम बच्चों को झिड़क देता है कि इस तरह के सपने देखकर करोड़पति नहीं बना जा सकता। बच्चे मशीन ढूंढ देते है। परन्तु वह बेकार हो चुकी है। एक दिन एक शतर्मुर्ग बाड़े से भाग जाता है और करीम को अपनी नोकरी से हाथ धोना पड़ता है। अपनी बेटी की मशीन सुधरवाने के लिए करीम को तेहरान जाना पड़ता है जहां उसे बाइक टेक्सी ड्राइवर समझ लिया जाता है।अब करीम पैसा कमाने लगता है परंतु उसके अंदर का भोलापन और विनम्रता ख़त्म होने लगती है और लालच पसर जाता है। वह अपनी बेटी की मशीन भी भूल जाता। रोजाना तेहरान से लौटते हुए वह अपनी बाइक पर कुछ न कबाड़ा लेकर घर आता है। एक दिन इसी कबाड़ में दबकर वह अपनी टांग तुड़वा लेता है। घर चलाने के लिए आठ साल के बेटे को काम करना पड़ता है। परंतु बेटा अभी भी मछलिया पालने के अपने सपने को जीवित रखे हुए है। अपने हम उम्र दोस्तों के साथ वह एक ड्रम में मछलियां खरीद कर लाता है परंतु ड्रम लीकेज हो कर टूट जाता है। मछलियों को मरने से बचाने के लिए उन्हें पानी के नाले में छोड़ना पड़ता है। यह द्र्श्य करीम को बहुत कुछ समझा देता है ,और दर्शक को अंदर तक भीगो देता है। इसी तरह के और भी द्रश्य है जो दर्शक की आँखे तरल कर देते है।
'' सांग ऑफ़ स्पैरो '' एक आदमी के अंदर मौजूद इंसान को सहेजने की कोशिश है।
यह फिल्म ईरान की ऑस्कर में एंट्री कराने वाली फिल्म थी। यधपि बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्मो के टॉप फोर में शामिल होने के बाद भी ऑस्कर नहीं पा सकी थी परंतु उसी वर्ष बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में पुरूस्कार जीत कर अपनी धाक जमा दी थी।
Song Of Sparrow (2008 ) माजिदी की ऐसी ही सादगी से भरी फिल्म है। फिल्म का नायक करीम एक गरीब किसान है जो अपनी बीबी नरगिस और तीन बच्चों के साथ रहता है। जीवन यापन के लिए वह एक शतरमुर्ग के बाड़े की देखभाल करता है। एक दिन उसे बताया जाता है कि उसकी किशोर बेटी ने अपने सुनने की मशीन(hearing aid ) गुमा दी है। घर के रास्ते पर एक भूमिगत तालाब में बच्चे उस मशीन को ढूंढ रहे है। करीम भी उनके साथ शामिल हो जाता है। उसका आठ साल का बेटा प्लान बनाता है कि इस तालाब की सफाई कर मछलिया पाली जाये। करीम बच्चों को झिड़क देता है कि इस तरह के सपने देखकर करोड़पति नहीं बना जा सकता। बच्चे मशीन ढूंढ देते है। परन्तु वह बेकार हो चुकी है। एक दिन एक शतर्मुर्ग बाड़े से भाग जाता है और करीम को अपनी नोकरी से हाथ धोना पड़ता है। अपनी बेटी की मशीन सुधरवाने के लिए करीम को तेहरान जाना पड़ता है जहां उसे बाइक टेक्सी ड्राइवर समझ लिया जाता है।अब करीम पैसा कमाने लगता है परंतु उसके अंदर का भोलापन और विनम्रता ख़त्म होने लगती है और लालच पसर जाता है। वह अपनी बेटी की मशीन भी भूल जाता। रोजाना तेहरान से लौटते हुए वह अपनी बाइक पर कुछ न कबाड़ा लेकर घर आता है। एक दिन इसी कबाड़ में दबकर वह अपनी टांग तुड़वा लेता है। घर चलाने के लिए आठ साल के बेटे को काम करना पड़ता है। परंतु बेटा अभी भी मछलिया पालने के अपने सपने को जीवित रखे हुए है। अपने हम उम्र दोस्तों के साथ वह एक ड्रम में मछलियां खरीद कर लाता है परंतु ड्रम लीकेज हो कर टूट जाता है। मछलियों को मरने से बचाने के लिए उन्हें पानी के नाले में छोड़ना पड़ता है। यह द्र्श्य करीम को बहुत कुछ समझा देता है ,और दर्शक को अंदर तक भीगो देता है। इसी तरह के और भी द्रश्य है जो दर्शक की आँखे तरल कर देते है।
'' सांग ऑफ़ स्पैरो '' एक आदमी के अंदर मौजूद इंसान को सहेजने की कोशिश है।
यह फिल्म ईरान की ऑस्कर में एंट्री कराने वाली फिल्म थी। यधपि बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्मो के टॉप फोर में शामिल होने के बाद भी ऑस्कर नहीं पा सकी थी परंतु उसी वर्ष बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में पुरूस्कार जीत कर अपनी धाक जमा दी थी।
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