whatsapp पर एक मेसेज था , क्या ऐसा जरुरी है कि हम हमेशा सफल ही हो ? क्या कही ऐसा लिखा है कि हर रिश्ता अटूट हो ? क्या ऐसा कानून है कि आप हमेशा सेलेक्ट ही हो ?लाख चाहने पर भी लोग असफल हो जाते है। प्रेम में ठुकरा दिए जाते है। अपने आईडिया को असमय मरते देखते है, हर चीज परफेक्ट हो हर ईच्छा पूर्ण हो , कतई संभव नहीं है। गंभीरता से मनन करने वाली बात है।
सफलता के हमेशा 50 प्रतिशत चांस तो होते ही है। यह अलग बात है कि आपने प्रयास कितने गम्भीर तरीके से किये है -दुनिया आपको उन्ही प्रयासों के माध्यम से आंकती है। क्योंकि एक समय गुजरने के बाद आपके व्यक्तित्व का आकलन आपके किये प्रयासों से ही होने वाला है। जिन लोगों में कुछ कर गुजरने का माद्दा होता है या जो लोग अपनी सफलता को लेकर जुनूनी होते है वे ही सफलता के अनुभव को महसूस कर पाते है। इस बात को हमेशा गाँठ बाँध कर रखिये।
चूँकि यह एक फिल्म ब्लॉग है लिहाजा मेने एक फिल्म को ही जीवंत उदाहरण बनाया है। अधिकाँश सिने दर्शकों को राजकपूर की अभिनीत और निर्देशित फिल्म ' मेरा नाम जोकर ' याद होगी या उन्होंने इसके बारे में कभी तो सुना ही होगा भले ही वे इस फिल्म के रिलीज़ होने के बाद पैदा हुए हो। इस फिल्म को राजकपूर ने अपनी सफलतम फिल्म ' संगम ' के बाद बनाया था। इस फिल्म को लेकर वे कितने पसेसिवे थे इस बात का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसे बनाने में उन्होंने 6 साल का लम्बा समय लिया और बेशुमार धन सेट्स बनाने में लगाया। पहली बार किसी हिंदी फिल्म के लिए तकनीशियन और एक्टर्स सोवियत रूस से भारत लाये गए । यह फिल्म राजकपूर के लिए इतनी अहम थी कि धन की कमी के चलते उन्होंने अपना प्रसिद्ध आर के स्टूडियो गिरवी रख दिया था।
इस फिल्म को लेकर सिर्फ राजकपूर ही नहीं वरन पूरा देश आश्वस्त था कि यह बड़ी सुपर हिट साबित होगी। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। 18 दिसंबर 1970 को जब यह फिल्म रिलीज़ हुई तो देश के साथ राजकपूर को भी हिला गई। ' मेरा नाम जोकर ' उस समय की सबसे बड़ी फ्लॉप साबित हुई। फिल्म समीक्षकों और दर्शकों , दोनों को ही राजकपूर का ' जीवन दर्शन ' समझ में नहीं आया। यद्धपि उस वर्ष के 6 फिल्मफेयर ' पुरूस्कार और एक नेशनल अवार्ड ' इस फिल्म को मिले परन्तु पैसा नहीं मिला। भारतीय दर्शक जीवन की कड़वाहट को पर्दे पर नहीं देखना चाहता था। बेहतरीन संगीत और यादगार गीतों बावजूद फिल्म को नकार दिया गया।
इस असफलता का क्या परिणाम हुआ? राजकपूर आर्थिक रूप से बिखर गए। परिवार सड़क पर आने की नौबत आगई। उन्होंने अपनी असफलता पर मनन करना आरम्भ किया। वे अपना दर्शन दर्शकों पर थोप रहे थे हालांकि वे सही थे परन्तु समय से आगे चल रहे थे। उन्होंने अपनी सोंच को बदला बजाये दर्शकों को बदलने के। एक नए प्रोजेक्ट पर उसी मेहनत से काम करना शुरू किया, और जोकर के हादसे के मात्र तीन बरस के बाद '' बॉबी ' प्रदर्शित कर दी। यह फिल्म उनकी सफलता का नया आयाम था।
इस उदाहरण का सार यही है कि आप जो भी कर रहे है पूरी तरह डूब कर करे। अगर असफल भी हो जाते है तो लोग आपकी असफलता को भी मिसाल के रूप में लेंगे - मेरा नाम जोकर ' की तरह।
सफलता में लोग आपके नए ढंग से काम करने को सराहेंगे और आपका अनुसरण करने की कोशिश करंगे - बॉबी ' की तरह जिसने बॉलीवुड को ' टीन ऐज लव स्टोरी ' नाम की एक नयी श्रेणी दी और राजकपूर को उनका खोया पैसा और आत्मविश्वास भी लौटाया।
( अपनी असफलता पर डट कर मनन कीजिये उसी में अक्सर आगामी सफलता के सूत्र छिपे होते है )
सफलता के हमेशा 50 प्रतिशत चांस तो होते ही है। यह अलग बात है कि आपने प्रयास कितने गम्भीर तरीके से किये है -दुनिया आपको उन्ही प्रयासों के माध्यम से आंकती है। क्योंकि एक समय गुजरने के बाद आपके व्यक्तित्व का आकलन आपके किये प्रयासों से ही होने वाला है। जिन लोगों में कुछ कर गुजरने का माद्दा होता है या जो लोग अपनी सफलता को लेकर जुनूनी होते है वे ही सफलता के अनुभव को महसूस कर पाते है। इस बात को हमेशा गाँठ बाँध कर रखिये।
चूँकि यह एक फिल्म ब्लॉग है लिहाजा मेने एक फिल्म को ही जीवंत उदाहरण बनाया है। अधिकाँश सिने दर्शकों को राजकपूर की अभिनीत और निर्देशित फिल्म ' मेरा नाम जोकर ' याद होगी या उन्होंने इसके बारे में कभी तो सुना ही होगा भले ही वे इस फिल्म के रिलीज़ होने के बाद पैदा हुए हो। इस फिल्म को राजकपूर ने अपनी सफलतम फिल्म ' संगम ' के बाद बनाया था। इस फिल्म को लेकर वे कितने पसेसिवे थे इस बात का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसे बनाने में उन्होंने 6 साल का लम्बा समय लिया और बेशुमार धन सेट्स बनाने में लगाया। पहली बार किसी हिंदी फिल्म के लिए तकनीशियन और एक्टर्स सोवियत रूस से भारत लाये गए । यह फिल्म राजकपूर के लिए इतनी अहम थी कि धन की कमी के चलते उन्होंने अपना प्रसिद्ध आर के स्टूडियो गिरवी रख दिया था।
इस फिल्म को लेकर सिर्फ राजकपूर ही नहीं वरन पूरा देश आश्वस्त था कि यह बड़ी सुपर हिट साबित होगी। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। 18 दिसंबर 1970 को जब यह फिल्म रिलीज़ हुई तो देश के साथ राजकपूर को भी हिला गई। ' मेरा नाम जोकर ' उस समय की सबसे बड़ी फ्लॉप साबित हुई। फिल्म समीक्षकों और दर्शकों , दोनों को ही राजकपूर का ' जीवन दर्शन ' समझ में नहीं आया। यद्धपि उस वर्ष के 6 फिल्मफेयर ' पुरूस्कार और एक नेशनल अवार्ड ' इस फिल्म को मिले परन्तु पैसा नहीं मिला। भारतीय दर्शक जीवन की कड़वाहट को पर्दे पर नहीं देखना चाहता था। बेहतरीन संगीत और यादगार गीतों बावजूद फिल्म को नकार दिया गया।
इस असफलता का क्या परिणाम हुआ? राजकपूर आर्थिक रूप से बिखर गए। परिवार सड़क पर आने की नौबत आगई। उन्होंने अपनी असफलता पर मनन करना आरम्भ किया। वे अपना दर्शन दर्शकों पर थोप रहे थे हालांकि वे सही थे परन्तु समय से आगे चल रहे थे। उन्होंने अपनी सोंच को बदला बजाये दर्शकों को बदलने के। एक नए प्रोजेक्ट पर उसी मेहनत से काम करना शुरू किया, और जोकर के हादसे के मात्र तीन बरस के बाद '' बॉबी ' प्रदर्शित कर दी। यह फिल्म उनकी सफलता का नया आयाम था।
इस उदाहरण का सार यही है कि आप जो भी कर रहे है पूरी तरह डूब कर करे। अगर असफल भी हो जाते है तो लोग आपकी असफलता को भी मिसाल के रूप में लेंगे - मेरा नाम जोकर ' की तरह।
सफलता में लोग आपके नए ढंग से काम करने को सराहेंगे और आपका अनुसरण करने की कोशिश करंगे - बॉबी ' की तरह जिसने बॉलीवुड को ' टीन ऐज लव स्टोरी ' नाम की एक नयी श्रेणी दी और राजकपूर को उनका खोया पैसा और आत्मविश्वास भी लौटाया।
( अपनी असफलता पर डट कर मनन कीजिये उसी में अक्सर आगामी सफलता के सूत्र छिपे होते है )
Bahut khubsurat, mahatwapurn Jaankari!Subhkamnayen!!
ReplyDeleteआभार सरजी । स्नेह बनाये रखिये ।
Deleteआज की बुलेटिन विश्व दूरसंचार दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDelete