
हरेक चैनल का अपना एक सिद्ध पुरुष है जिसके पास हर समस्या का हल है। चटकीले कुर्ते और गले में ढेर सारे रुद्राक्ष वाला यह शख्स किसी की भी कुंडली ' ऑन एयर ' बांच देता है। कुछ अंतर्यामी टाइप के लोग डायबिटीज दूर करने के लिए हरी चटनी के साथ समोसा खाने का आग्रह करते है , तो कुछ एक विशेष रंग की किताब से दुखों को मुक्त करने की मार्केटिंग करते है। व्यापार में प्रगति के लिए श्री यन्त्र है तो किसी को अपने प्रेम में गिरफ्त करने के लिए तावीज है , समस्त ग्रहों को महज कुछ रंगीन रत्नो से काबू करने के लिए अंगूठियों का संसार भी है। यह सब उस टेलीविज़न पर हो रहा है जिस पर Discovery और National geographic देख कर जीवन में तार्किकता के साथ अंधविश्वास को नकारा जा सकता है।
परालौकिक शक्तियों से संवाद करने का दावा करने वाले ये मध्यस्थ आम जीवन में ही नहीं वरन राजनीति के गलियारों और फ़िल्मी दुनियां में भी अपनी जड़े गहरे जमाये हुए है। धीरेंद्र ब्रह्मचारी , चंद्रा स्वामी , का जलाल सभी को याद होगा। महा नायक अमिताभ भी इनके प्रभाव से बच नहीं सके , जबकि एक समय अपनी फिल्मों ' जादूगर ' और ' शान ' में उन्होंने इस पाखंड की डट कर खिल्ली उड़ाई थी। यह विडम्बना ही है कि फिल्मों और टेलीविज़न के सब्जेक्ट आधुनिक होते है पर उन्हें बनाने वाले लोग ही ज्यादा अंधविश्वासी होते है ,फिर वे एकता कपूर हो या राजकपूर का घराना या खान तिकड़ी।
चूँकि मीडिया ने पाखण्ड और अंधविश्वास को फैलाने में अहम भूमिका अदा की है तो उसे ही इसकी सफाई के लिए आगे आना होगा। बेहद सफल फिल्म ' स्पीड ' के खलनायक हॉवर्ड पायने का डॉयलॉग याद रखिये '' टेलीविज़न भविष्य का हथियार है ''- अगर सम्भाल कर नहीं चलाया तो भस्मासुर साबित होगा
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